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मित्रों आज प्रस्तुत है आपके लिये मिरजा ग़ालिब की गज़ल ये ना थी हमारी किस्मत.. यह गज़ल आपने कई कलाकारों की आवाज में सुनी होगी। परन्तु मुझे सबसे ज्यादा बढ़िया लगती है स्व. तलत महमुद साहब के द्वारा गाई हुई भारत भूषण और सुरैया अभिनित फिल्म मिर्जा गालिब फिल्म की यही गज़ल.. ये ना थी। कुछ दिनों पहले मैने सलीम रज़ा और मल्लिका-ए-तरन्नुम (मैडम) नूरजहां के द्वारा गाई हुई 1961 में बनी पाकिस्तानी फिल्म गालिब की यह गज़ल सुनी। सुनने के बाद इस गज़ल का संगीत भी बहुत पसन्द आया तो आज आपके लिये यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। इस फिल्म की एक खास बात और है, और वह ये कि यह फिल्म नूरजहाँ की आखिरी फिल्म है।
मित्रों आज आपको एक बेहद मधुर और खूबसूरत गीत सुनवा रहा हूँ। जगमोहन की आवाज में मेरी आँखे बनी दीवानी और ओ वर्षा के पहले बादल सुन चुके हैं। जगमोहनजी की आवाज एकदम अलग पर इतनी खूबसूरत कि बस पूछे ना.. मीत के शब्दों में कहें तो
इस आवाज़ का जादू भी कमाल है. कविता में जान डाल देती है. आवाज़ की रवानी का जवाब नहीं. ये गीत तो भी लाजवाब है ही, जगमोहन की आवाज़ में तो बस .... कुछ न पूछें.
सुंदर हो कितनी सुंदर हो प्यारी तुम कितनी सुंदर हो..२
मंदिर सा तेरा जीवन है प्रतिमा जैसा तेरा मन है धूप कपूर के सद चन्दन से-२ बना हुआ तेरा तन है-२
कहे देवता तुम मनहर हो.. कहे देवता तुम मनहर हो.. प्यारी तुम कितनी सुंदर हो-२
रात समय की तुम हो लाली और अमृत की तुम हो प्याली तुम ही दशहरा तुम्ही दीवाली देवी हो इसीलिये अमर हो-२ प्यारी तुम-२
तुम दुनियां में रूप की राशि तुम गंगा हो तुम हो काशी बिधनाने की भूल जरा सी तुम्हे बनाया जग का वासी
कुछ भी हो तुम बड़ी मधुर हो कुछ भी हो तुम बड़ी मधुर हो प्यारी तुम कितनी... सुंद हो ... कितनी सुंदर हो प्यारी तुम
दोस्तों, पिछले कई दिनों से रोशन साहब के संगीत को सुनते सुनते मन में आया कि उनके दो गीत सुनवाये जायें |
पहला गीत फ़िल्म "बरसात की रात" का है जो १९६० में आयी थी | इसी फ़िल्म में रोशन साहब ने एक के बाद एक तीन शानदार कव्वालियां ("जी चाहता है चूम लूँ अपनी नजर को मैं", "निगाह-ऐ-नाज़ के मारों का हाल क्या होगा" और "ये इश्क इश्क है" ) प्रस्तुत की थीं | इस फ़िल्म में राग मल्हार में एक सुंदर सा गीत "गरजत बरसात सावन आयो, लायो न संग में अपने बिछडे बलमवा" है | इस गीत को सुमन कल्यानपुर ने गाया था |
लेकिन कमाल की बात है कि रोशन साहब ने इसी धुन पर लगभग यही गीत १९५१ की फ़िल्म "मल्हार" में पहले ही प्रस्तुत कर दिया था | इस गीत को स्वर साम्रागी लता मंगेशकरजी ने अपनी आवाज से सजाया था |
शकील बदायूँनी और नौशाद साहब ने १९५२ में बैजू बावरा फ़िल्म को अपने संगीत से अमर बना दिया था । १९५४ में इसी जोडी ने शबाब फ़िल्म में बेह्द मधुर संगीत दिया । मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, शमशाद बेगम, हेमन्त कुमार और मन्ना डे की आवाजों से नौशाद साहब ने शकील बदायूँनी के शब्दों के इर्द गिर्द एक संगीत का तिलिस्म सा बना दिया था । नौशाद साहब और शकील बदायूँनी की इसी जोडी ने मुगल-ए-आजम में भी संगीत का परचम लहराया था । इस कडी में आप सुनेंगे शबाब फ़िल्म के तीन सच्चे मोती ।
पहला गीत "आये न बालम वादा करके" मोहम्मद रफ़ी साहब की आवाज में है ।
आये न बालम वादा करके, -२ थक गये नैना धीरज धर के, धीरज धर के आये न बालम वादा करके-२
छुप गया चंदा लुट गयी ज्योति, तारे बन गये झूठे मोती, पड गये फ़ीके रंग नजर के, आये न बालम वादा करके-२
आओ के तुम बिन आँखो में दम है, रात है लम्बी जीवन कम है, देख लूँ तुमको मैं जी भरके, आये न बालम वादा करके-२
दूसरा गीत मन्नाडे जी की आवाज में एक भजन है, "भगत के बस में है भगवान"
भगत के बस में है भगवान मांगो मिलेगा सब को दान
भेद अनोखे तोरे दाता, न्यारे तोरे धन्धे कन्हैया, न्यारे तोरे धन्धे मूरख बुद्धिमान बने है, आंखो वाले अंधे दे तू इनको ज्ञान..
भगत के बस में है भगवान मांगो मिलेगा सब को दान
मोहे पुकारे सब सन्सारी, और मैं तोहे पुकारूँ, कन्हैया आज लगी है लाज की बाजी जीता दाँव न हारू भगती का रख मान,
भगत के बस में है भगवान मांगो मिलेगा सब को दान
तू ही मारे तू ही जिलाये गोवर्धन गिरधारी आज दिखा दे संगीत की शक्ति रख ले लाज हमारी निर्जीव को दे जान
जय जय सीताराम, निर्जीव को दे जान जय जय राधेश्याम जय जय सीताराम, जय जय राधेश्याम...
तीसरा गीत लताजी की आवाज में है, "मर गये हम जीते जी, मालिक तेरे संसार में"
मर गये हम जीते जी, मालिक तेरे संसार में, चल दिया हम को खिवईया छोडकर मझधार में, मालिक तेरे संसार में, मर गये हम...
उनका आना उनका जाना खेल था तकदीर का, ख्वाब थे वो जिन्दगी के दिन जो गुजरे प्यार में, मालिक तेरे संसार में, मर गये हम...
ले गये वो साथ अपने साज भी आवाज भी, रह गया नग्मा अधूरा दिल के टूटे तार में, मालिक तेरे संसार में, मर गये हम...
नीरज रोहिल्ला जी को आप पहचानते ही होंगे.. मोटे होने की असफल कोशिश करते हुए नीरज भाई जितने बढ़िया चिट्ठे लिखते हैं उतने ही बढ़िया इन्सान हैं। पुराने गानों के बेहद शौकीन नीरज भाई के पास हजारों गीतों का संग्रह है। अभी पिछले दिनों अनिताजी के कहने पर अनूप जलोटा के स्वर में नीरज जी ने लक्ष्मण परशुराम संवाद भी हमें सुनाया था।
अब से कुछ देर पहले नीरज भाइ ने मुझे मेल भेजी कि ये कुछ गाने महफिल पर चढ़ाईये.. मैने कहा आप खुद ही क्यों नहीं चढ़ाते और इस तरह नीरज भाई महफिल का सदस्य बनने का मेरा आग्रह ठुकरा नहीं सके और उन्होने महफिल पर गीत चढ़ाने और पोस्ट लिखने का आग्रह स्वीकार कर लिया।
आगे से नीरज भाई भी गीतों की इस महफिल में दुर्लभ और मधुर गीत ले कर आयेंगे और हमें सुनायेंगे ऐसी आशा है।
आईये नीरज रोहिल्लाजी का गीतों की महफिल में हार्दिक स्वागत करते है।
अगर आप में से भी कोई मित्र जो हिन्दी फिल्मों के बेहद पुराने और मधुर गीतों को महफिल में चढ़ाने चाहते हों या महफिल के सदस्य बनना चाहते हों तो लिखें.. हमें खुशी होगी।
होली के दिन सबने अपने अपने चिट्ठों पर बढ़िया होली गीत, कविता या व्यंग्य लिखे। मैने भी दो गीत चढ़ाने का निश्चय किया पर जब लाईफलोगर पर अपलोड करने की कोशिश की तो लाईफलोगर ने फाइल को अपलोड करने से मना कर दिया और अड़ गया।
बाद में ईस्निप पर अपलोड करने की कोशिश की तो उसने भी नहीं लिया, आज अचानक लाईफलोगर पर अपनी प्रविष्टियाँ देखते समय वे फाइल नजर आई जिन्हें अपलोड करने से पहले लाईफलोगर ने मना कर दिया था। अत: आज मैं आपको यह दोनों मधुर गीत सुनवा रहा हूँ।
पहला गाना है फिल्म जोगन (1950) का जिसके संगीतकार थे बुलो सी रानी और गीत लिखा था पण्डित इंद्र ने। फिल्म के मुख्य कलाकार थे दिलीप कुमार और नरगिस। गाया है गीता दत्त ने और गीत के बोल है डारो रे रंग डारो रसिया फागुन के दिन आये रे..