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अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें कुछ दर्द कलेजे से लगने के लिये है स्व. मुकेश जी को पुण्य तिथी पर हार्दिक श्रद्धान्जली। आज मैं आपको मुकेशजी की गाई एक नायाब गैर फिल्मी गज़ल सुना रहा हूँ। इस गज़ल को लिखा है जानिंसार अख्तर ने और संगीत दिया है खैयाम साहब ने। आईये सुनते हैं।
अशआर मेरे यूं तो ज़माने के लिये है कुछ शेर फ़कत उनको सुनने के लिये है
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिये है
आँखो में जो भर लोगे तो काँटो से चुभेंगे ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के लिये है
देखुं जो तेरे हाथों को लगता है तेरे हाथ मन्दिर में फ़कत दीप जलने के लिये है
सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की वर्ना तो बदन आग बुझाने के लिये है
आज सुबह अपने खज़ाने में सेइकबाल बानो/Iqbal Bano की गज़लों को सुन रहा था, अचानक एक ऐसी गज़ल बजने लगी कि दिल झूमने लगा। इसे मैने पहले कभी भी नहीं सुना था, मेरे अपने संग्रह में होने के बावजूद...... एक बार से मन नहीं भरा.. बार बार सुनी। फिर मन हुआ कि क्यों ना आपको भी सुनवाया जाये। वैसे भी महफिल महीनों से सूनी पड़ी है।
गज़ल और गायिका के लिए कुछ भी नहीं कहा जायेगा, बस सुनिये और आनन्द लीजिये।
उल्फ़त की नई मंज़िल को चला तू बाहों में बाहें डाल के दिल तोड़ने वाले देख के चल हम भी तो पड़े हैं राहो में
क्या क्या ना जफ़ायें दिल पे सही पर तुम से कोई शिकवा न किया इस जुर्म को भी शामिल कर लो मेरे मासूम गुनाहों में
जहाँ चांदनी रातों में तुम ने खुद हमसे किया इकरार ए वफ़ा फिर आज है क्यों हमसे बेगाने तेरी बेरहम निगाहों में
हम भी है वोही, तुम भी वोही ये अपनी अपनी किस्मत है तुम खेल रहे हो खुशियों से हम डूब गये हैं आहों में
दिल तोड़ने वाले देख के चल हम भी तो पड़े है राहों में
फिल्म: कातिल (पाकिस्तान) १९५५ शायर:कतील शिफ़ाई इस गीत को हिन्दी फिल्म कामसूत्र में शोभागुर्टू ने भी गाया था।
आज की पोस्ट में कोई गाना नहीं सुनायेंगे पर आपको गाने के खजाने की चाबी नहीं बल्कि चाबियों का गुच्छा ही थमा देंगे। लूट लें जितना लूटने की हिम्मत आपमें है।
अन्तर्जाल पर गाने सुनाने वाले बहुत से जालस्थल हैं, पर वे सिर्फ फिल्मवाइज गाने ही सुनाते हैं या फिर गाने डाउनलोड करने की सुविधा देते हैं पर मैं आज आपसे एक ऐसे जालस्थल की बात करने जा रहा हूँ जो वास्तव में एक ओनलाईन रेडियो है.. नहीं था कहना चाहिये क्यों कि बदकिस्मती से अब यह बन्द हो चुका है।
इस जालस्थल का नाम है बोलीवुडओनडिमाण्ड.कॉम। यह साइट किन्हीं आभेश वर्मा की परिकल्पना थी। इस साइट पर हर तरह के संगीत के चाहकों के लिए कुछ ना कुछ था। मसलन अगर आप पॉप के दीवाने हैं तो आपके लिए Pop Up The Volume नामक कार्यक्रम था और इसके आर जे थे Shailabh। अगर आप गज़लों के शौकीन हैं तो आपके लिए प्रस्तुत है महफिल ए गज़ल! ये कार्यक्रम दैनिक होते थे, यानि जो कार्यक्रम सोमवार को आता है वह मंगलवार को नहीं; मंगलवार को कोई दूसरा कार्यक्रम आएगा! लेकिन आप एक हफ्ते के कार्यक्रम सुन सकते थे।
कुछ दिनों पहले मास्साब पंकज सुबीर जी के चिट्ठे पर, महान गायक पं कुमार गन्धर्व के सुपुत्र पं मुकुल शिवपुत्र के बारे में पढ़ा था कि कुमार गंधर्व के सुपुत्र मुकुल शिवपुत्र शराब के लिए भोपाल की सड़कों पर दो- दो रुपयों के लिए भीख मांग रहे हैं। यह समाचार पढ़ कर मन बहुत आहत हो गया। एक महान कलाकार के सुपुत्र पण्डित मुकुल शिवपुत्र जो स्वयं खयाल गायकी में बहुत जाने माने गायक हों, कि यह हालत! खैर, अब पता नहीं मुकुल जी कहां है किस हालत में है? मेरे संग्रह में एक मियां की मल्हार/ मल्हार राग पर कुछ गीत हैं जिन्हें मैने वर्षा ऋतु के आगमन पर एक पोस्ट लिखा कर सुनवाने की सोच रखी थी; में से एक गीत सुनते हुए मुझे लगा कि यूट्यूब पर इसका वीडियो देखना चाहिए... जब वीडियो देखा तो दंग रह गया, मानो फिल्म की निर्देशिका सई परांजपे जी ने मुकुल जी की कहानी को लेकर यह गीत फिल्माया हो, यह अलग बात है कि यह फिल्म 1998 में ही बन चुकी थी। तो क्या मुकुलजी.......? वर्षा ऋतु के आगमन तक मुझसे इंतजार नहीं होगा मैं आपको इस खूबसूरत गीत को सुनवा रहा हूँ। आप इस गीत को सुनिये और देखिये... मियां की मल्हार। साज़ फिल्म में संगीत राजकमल और भूपेन हजारिका दोनों का है। इस गाने का संगीतकार कौन है पता नहीं चला। अगर आप जानते हैं तो टिप्प्णी में जरूर बतायें। सुरेश वाडेकर जी की आवाज में गीत
बादल घुमड़ बढ़ आये-२ काली घटा घनघोर गगन में-२ अंधियारा चहुं ओर घन बरसत उत्पात प्रलय का प्यासा क्यूं मन मोर-२ बादल घुमड़ बढ़ आये-२
यही गीत फिल्म में बाद में वृंदावन (रघुवीर यादव) की बिटिया बंसी (शबाना आज़मी) भी एक समारोह गाती है। इस गीत में दो पैरा भी जोड़े गये हैं, आईये इस का भी आनन्द लीजिये। फिल्म में इसे सुप्रसिद्ध गायिका देवकी पण्डित ने अपनी आवाज दी है।
बादल बरस अब मौन भए-२ बादल रवि उज्जवल प्रज्वलित गगन में प्रज्वलित गगन में- गगन में-गगन में-गगन में -गगन में रवि उज्जवल प्रज्वलित गगन में कनकालंकृत मोर जय मंगल जय घोष गगन का जय घोष गगन का आऽऽऽऽऽऽऽऽ शुभ उत्सव चहूं ओर-२ बादल बरस अब मौन भए..
-गीतकार आदरणीय पंडित नरेन्द्र शर्माजी को उनकी पुण्यतिथी (11 फरवरी) पर सादर समर्पित- आप कल्पना कीजिये अगर हिन्दी के सुप्रसिद्ध गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्माजी (Pt. Narendra Sharma), जिनके अधिकांश गीत शुद्ध हिन्दी में लिखे गये हैं; अगर उर्दू में गीत लिखें तो! अच्छा ऐसा कीजिये कल्पना मत कीजिये नीचे दिये प्लेयर के प्ले बटन पर क्लिक कर शान्ति से पूरे गीत को सुनिये। देखिये फिल्म आंधियां (Andhiyaan-1952) का यह गीत कितना शानदार है। हो भी ना क्यों, इसमें पण्डितजी और लता जी (Lata Mangeshkar) के साथ संगीत की जुगलबंदी सुप्रसिद्ध सरोदवादक उस्ताद अली अकबर खाँ (Ustad Ali Akbar Khan) साहब ने जो की है। यानि इस गीत का संगीत अली अकबर खां साहब का दिया हुआ है। यह गीत तीन भागों में है। हर भाग एक अलग अलग मूड में है। इस फिल्म आंधियां में मुख्य भूमिकायें देवानन्द (Devanand), निम्मी( Nimmi) , दुर्गा खोटे( Durga Khote), कल्पना कार्तिक (Kalpana Kartik) और के. एन सिंह (K.N.Singh) ने निभाई थी। नवकेतन (Navketan)बेनर्स के तले बनी इस फिल्म का निर्देशन चेतन आनंद (Chetan Anand) ने किया था।
लीजिये गीत सुनिये-
है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ आती हैं दुनिया में सुख-दुख की सदा यूँ आँधियाँ, आँधियाँ -२ है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ
क्या राज़ है, क्या राज़ है- क्या राज़ है, क्या राज़ है आज परवाने को भी अपनी लगन पर नाज़ है, नाज़ है क्यों शमा बेचैन है, ख़ामोश होने के लिये -२ आँसुओं की क्या ज़रूरत-२ दिल को रोने के लिये-२ तेरे दिल का साज़ पगली-२ आज बेआवाज़ है-२ है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ
आऽहै कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ-२ आती हैं दुनिया में सुख-दुख की सदा यूँ आँधियाँ, आँधियाँ
आईं ऐसी आँधियाँ बुझ गया घर का चिराग़ धुल नहीं सकता कभी जो पड़ गया आँचल में दाग़ -२ थे जहाँ अरमान -थे जहाँ अरमान उस दिल को मिली बरबादियाँ, बरबादियाँ है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ -२
ज़िंदगी के सब्ज़ दामन में -२ कभी फूलों के बाग़ ज़िंदगी के सब्ज़ दामन में ज़िंदगी में सुर्ख़ दामन में कभी काँटों के दाग़ -२ कभी फूलों के बाग़ कभी काँटों के दाग़ फूल-काँटों से भरी हैं ज़िंदगी की वादियाँ
है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ आती हैं दुनिया में सुख-दुख की सदा यूँ आँधियाँ, आँधियाँ -२ है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ
ना; यह गुड्डी फिल्म वाला बोले रे पपीहरा नहीं है! यकीनन आपने यह गीत नहीं सुना होगा।
पिछली पोस्ट में गड़बड़ हुई थी ना, सुमन कल्याणपुर जी के गीत को रूना लैला का बता दिया और मैटर सुमनजी की गज़ल का लिख दिया था। बहुत बड़ा घोटाला हो गया था उस दिन।
उसे सुधारने का आज नये साल के दिन एकदम सही समय लग रहा है और उपर से १०१वीं पोस्ट। मेरे लिये जितनी खुशी की बात १०१वीं पोस्ट लिखना है उससे कई गुना ज्यादा उत्साहित मैं इस गाने को पोस्ट करने से हो रहा हूँ।
यह गीत राग तैलंग में उस्ताद गुलाम कादिर खान ने संगीतबद्ध किया है और अपनी खूबसूरत आवाज दी है रूना लैला ने। गुलाम कादिर खान साहब वही है जिनसे शहंशाह -ए-मौसिकी मेहदी हसन भी बहुत प्रभावित थे;होते भी क्यूं ना, खान साहब आपके बड़े भाई जो थे। (यह बात मैं पिछली पोस्ट में लिखने से चूक गया था) आपके कैरियर निर्माण में गुलाम कादिर की अहम भूमिका थी। गुलाम कादिर खान साहब ने मेहदी हसन की कई गज़लों की धुनें भी बनाईं।
हसन साहब की गाई हुई प्रसिद्ध गज़ल "गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले" का संगीत गुलाम कादिर खान साहब ने ही दिया था। यह लाहौर में 1959 में रिकार्ड की गई थी और बेहद हिट रही…। खैर वापस आते हैं आज की गीत पर... यह गीत बोले रे पपीहरा; रूना लैला के मधुर स्वरों में है, आप सुनिये और आनन्द उठाईये।
बोले रे पपीहरा-बोले रे पपीहरा पीहू-पीहू, पीहू, पीहू, पीहू बोले रे पपीहरा, बोले रे पपीहरा पीहू-पीहू, पीहू, पीहू, पीहू बोले रे पपीहरा-२
आज भी ना आये, आवन कह गये आज भी ना आये, आवन कह गये जियरा तरसे, बदरा गरजे, अँखियों से प्यार बरसे जियरा तड़पे रे... पीहू-पीहू, पीहू, पीहू, पीहू बोले रे पपीहरा-२
रूत सावन की सखी सब झूऽऽलें देखूं मैंऽऽऽ सपना, आयेऽऽ ना सजना शुगन बिचारऽऽ जियरा तड़पे रे पीहू-पीहू, पीहू, पीहू, पीहू बोले रे पपीहरा-२