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Saturday 22 July, 2023

यही दुनिया हमें ढूँढेगी हम जिस दम नहीं होंगे - मुकेश के गाये कमसुने-अनसुने गीत

हिन्दी फिल्मों के महान पार्श्व गायक, अभिनेता, निर्माता एवं संगीतकार  मुकेश जी की 100वीं जन्म जयन्ति है। मुकेश जी आज हमारे बीच होते तो 100 साल के होते। दिल्ली के माथुर कायस्थ परिवार के जोरावर चन्द एवं चाँदरानी माथुर की छठीं संतान के रूप में  मुकेश का जन्म 22 जुलाई 1923 को हुआ। मेट्रिक तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्हें भी अभिनेता बनने की इच्छा हुई और 1940 में मुंबई की ट्रेन पकड़ ली।


अभिनेता तो बने पर फिल्में चली नहीं, उनकी किस्मत  में तो कुछ और लिखा था और वे आखिरकार गायक बने और उनके गाए गीत हम आज भी गुनगुनाते हैं। उनके  गाए गीतों से उनका स्वर अमर हो गया। 



बतौर पार्श्व गायक फिल्मों में पहला ब्रेक मुकेश को महान संगीतकार अनिल विश्वास ने दिया। कहा जाता है कि पहले ही गीत की रिकॉर्डिंग के समय का ध्यान मुकेश को नहीं रहा और वे बहुत देर से स्टूडियो पहुंचे तो अनिल दा ने गुस्से में मुकेश को चाँटा मार दिया था, मुकेश रो पड़े और  बाद में राग दरबारी में निबद्ध इस गीत  को स्व. कुन्दल लाल सहगल की शैली में ऐसा गाया कि गीत और मुकेश दोनों ही अमर हो गये। जानते हैं वह गीत कौनसा है? वह गीत है पहली नज़र फिल्म का "दिल जलता है तो जलने दे"!



लेकिन मुकेश सिर्फ "दिल जता है तो जलने दे", या "आ लौट के आजा मेरे मीत" नहीं थे; मुकेश सिर्फ "एक प्यार का नग़मा" नहीं थे, मुकेश सिर्फ "हमने तुझको प्यार किया है इतना या "मैं पल तो पल का शायर हूँ", ही नहीं थे, परन्तु पर जब भी मुकेश की गायकी की चर्चा होती है उन्हें बस इन गिने चुने और सुपर हिट गीतों का गायक मान लिया जाता है। मुकेश जी के कई और भी बढ़िया गीत हैं जो अब समय की गर्द में गुमनाम हो गए हैं। कई गीत ऐसे भी हैं जो हिट नहीं हुए या जो खो गए हैं या अब दुर्लभ से हो चुके हैं। 



आज हम उन गीतों की चर्चा करेंगे जिनमें से कई गीत तो कई मुकेश प्रेमियों के लिए भी संभवत: अनसुने  होंगे। 


मुकेश के गाए सबसे पहले गीत के मामले में एक और गीत का नाम लिया जाता है और वह है  "दिल ही बुझा  हुआ हो तो फ़सले बहार क्या" यह भी  गीत (गज़ल )निर्दोष फिल्म का ही है लेकिन इसके संगीतकार हैं अशोक घोष  । 


1948 की फिल्म सुहागरात का गीत है "लखी बाबुल मोरे काहे को दिन्हीं बिदेस" जिसे अमीर खुसरो ने लिखा है। 


 आराम 1951 फिल्म का गीत "जमाने का दस्तूर है ये पुराना (लता के साथ)  एवं दूसरा लाजवाब 1949 फिल्म का "ऐ  जाने जिगर दिल मे समने आ जा" ये गीत भी आप समय निकाल कर अवश्य सुनें। 


अभिनेत्री तनुजा ने  फिल्म हमारी बेटी एवं छबीली में बतौर बाल कलाकार काम किया था लेकिन नायिका के रूप में उनकी पहली फिल्म थी 1961 की हमारी याद आएगी  और इस फिल्म का गीत है “सोचता हूँ ये क्या किया मैने" एवं  दूसरा गीत है "जवां मुहब्बत हसीन आंखों में किसलिए मुस्कुरा रही है"। इस गीत में नायक जब पहले आँखों में और फिर सीने पर अंगुली रख कर कहता है "ये चाहता है तुम्हें सजा लूं, यहां छुपा लूँ, बसा लूँ- यहाँ बिठा लूँ; और उससे पहले "ये भीगी-भीगी हसीन रातें, ये प्यारी प्यारी तिहारी बातें " पंक्तिया गाता है उसके तुरन्त बाद नायिका के लिए लता जी ने आ॒ऽऽ कर जो आलाप गाया है उससे पता चलता है कि संगीतकार स्नेहल भाटकर कितने उँचे दर्जे के संगीतकार थे जो लता जी और मुकेश जी की जुगलबन्दी से कितने सुन्दर और अमर गीत रच गए!


मुकेश सिर्फ गायक या अभिनेता ही नहीं थे वरन संगीतकार भी थे, लेकिन उन्होने इस पक्ष पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया या मौके  ही नहीं मिले यह तो अब इतिहास की बातें रह गई लेकिन जब आप उनका संगीतबद्ध एवं उनका ही गाया फ़िल्म अनुराग का यह गीत  "किसे याद रखूं किसे भूल जाऊं" सुनते हैं तो पता चलता है कि कितने अच्छे संगीतकार भी थे। इस फिल्म का निर्माण भी स्वयं मुकेश ने ही किया था।



मुकेश गीतों में सबसे दुर्लभ और मधुर गीतों में से एक पर पता नहीं क्यों उतना लोकप्रिय नहीं हुआ। इन्टरनेट डेटाबेस के अनुसार इस फ़िल्म के गीत ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड “अंधकार” फ़िल्म के नाम से रिलीज़ हुए लेकिन यह फ़िल्म “ मानो या ना मानो (1955) “ के नाम से रिलीज़ हुई थी ! मास्टर जी हंसराज बहल का एक अलग ही शैली का संगीत संयोजन।



इस गीत को बहुत से मुकेश प्रेमी भी पहली बार सुनेंगे। गीत के बोल हैं "आवाज है ये प्यार की, तड़पोगी तो मुस्कुराऊंगा , तड़पा हूँ मैं, तड़पाऊंगा"।



 


 

शब्दों और स्थान की सीमा के कारण अब हम कुछ गीतों के सिर्फ मुखड़े  ही लिखेंगे।


बदरिया बरस गई उस पार_मूर्ति 1945


तय करके  पुरपेच डगरिया, ए इश्क़ चले आए हैं हम तेरी नगरिया _पहली नज़र 1945


दूर कहीं इस जग से _ बुत तराश 1947 ( हमीदा बानो के साथ)


कागज़  की मेरी नाव और दूर किनारा है_ दो दिल 1947 (सुरैया के साथ)


किसने छेड़ा मन का तार_तोहफ़ा 1947


धरती को आकाश  पुकारे_मेला 1948 (शमशाद बेगम  के साथ)


वो तीखी नज़रो से मेरे दिल पर कुछ ऐसे बिज़ली गिरा रहे हैं  जलन तो पहले ही थी मगर अब वो दर्द दिल में बढ़ा रहे हैं _वीणा 1948


मैने देखी जग की रीत मीत सब झूठे पड़ गए, एवं लो जी सुनलो तुमसे कहते हैं अब तुम बिन चैन नहीं आए_सुनहरे दिन 1949 (सुरिन्दर कौर के साथ)


ये दुनिया है यहाँ दिल का लगाना किस को आता है_शायर 1949 (लता के साथ)


जीवन सपना टूट गया एवं अब याद न कर भुल जा ए दिल वो फ़साना_अनोखा प्यार(1948)


लुट गया दिन रात का आराम क्यूं _लेख 1949


दिल  दो नैनों में खो गया_ सुनहरे दिन 1949 (सुरिन्दर कौर के साथ) और इसी फिल्म का  दो दिलों के मिल जाने का ये बहाना हो गया_ राज मुकुट 1950


जिसे हम याद करते हैं हमें उसने भूलाया है_ प्रीत का गीत 1950


पंजाबी बोलियां शैली में, काहे नैनों में कजरा भरो_ बड़ी बहू 1951 (लता जी के साथ ) 


हमें ए दिल कहीं ले चल बड़ा तेरा करम होगा_चाँदनी चौक 1954


झुकाए झुकाए बचा बचा के निशाने लगाए जाते हैं_मिस कोका कोला 1955


दम भर का दौर था खुशी का_मान 1954 


रात निखरी हुई , ज़ुल्फ़ बिखरी हुई, हर अदा तेरी  फुलों की डाली आज सुबह नहीं होने वाली _ हम हिन्दुस्तानी 1960 


काहे पगली बरखा छाई तेरे इन दो नैनन में  _ मुट्ठी भर चावल _खैयाम 1975


मुकेश जी ने गैर फ़िल्मी गीत, गज़लें एवं भजन भी गाए हैं उनमें से कुछ प्रमुख हैं- 


सुनाऊं क्या मैं ग़म अपना जबां तक ला नहीं सकता ( यह गीत फिल्म अंदाज के लिए संगीतकार नौशाद के संगीतबद्ध  किया नहीं लेकिन फिल्म में नहीं आया) 


तुझको यूँ देखा है_चाँद ग्रहण( अप्रदर्शित फ़िल्म) 


गैर फ़िल्मी गज़लें _खैय्याम 


न हुई गर मेरे मरने से तसल्ली  


हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते 


अशआर मेरे यूं तो ज़माने  के लिए हैं


भजन 


सुर की गति मैं क्या जानूं गैर फिल्मी _संगीतकार-नरेश भट्टाचार्य 



मुकेश जी ने 27  अगस्त 1976 के दिन मात्र 53 वर्ष की आयु में इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह दिया। आज उनके 100वें जन्मदिन पर हम सभी मुकेश प्रेमी उनहें नमन करते हैं।




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