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Saturday 16 February, 2008

तेरी आँखों को जब देखा, कँवल कहने को जी चाहा

- मेहदी हसन की एक उम्दा गज़ल-

मेरा मानना है गज़लों के मामले में मेहदी हसन के मुकाबले शायद ही कोई गायक ठहरता होगा। एक से एक उम्दा गज़लें हसन साहब ने गाई है। किस का जिक्र करूं किस को छोड़ूं !!!! सूरज को आईना दिखाने का साहस मुझमें नहीं। मैं आज आपको मेहदी हसन साहब की सबसे बढ़िया गज़ल सुनवा रहा हूँ।

वैसे इसे गज़ल से ज्यादा प्रेम गीत कहना चाहिये, नायक ने नायिका के आँखो और होठों की किस सुन्दरता से तारीफ की है। बस आप गज़ल सुनकर ही आनंद लीजिये।

तेरी आँखो को जब देखा
कँवल कहने को जी चाहा
मैं शायर तो नहीं लेकिन
गज़ल कहने को जी चाहा

तेरा नाजुक बदन छूकर
हवाएं गीत गाती है
बहारें देखकर तुझको
नया जादू जगाती है
तेरे होठों को कलियों का
बदल कहने को जी चाहा

मैं शायर तो नहीं लेकिन
गज़ल कहने को जी चाहा

इजाजत हो तो आँखो में
छुपा लूं, ये हंसी जलवा
तेरे रुख़सार पे करले
मेरे लब़ प्यार का सज़दा
तुझे चाहत के ख्वाबों का
महल कहने को जी चाहा

मैं शायर तो नहीं लेकिन
गज़ल कहने को जी चाहा
तेरी आँखो में जब देखा..

Friday 8 February, 2008

दिले नाशाद को जीने की हसरत हो गई तुमसे... एक खूबसूरत मुजरा (गज़ल)

हिन्दी फिल्मों में महफिल (कोठे)में गाये एक से एक खुबसूरत गीतों और गज़लों की लम्बी फेहरिस्त है। मजबूर नायिका जब कोठे पर तवायफ बन कर गज़ल गाती है, तो दर्शकों की आंखे नम हो जाती है। आम बोल चाल की भाषा में इन्हें मुजरा कहा जाता है। वैसे मुजरा एक प्रकार की नृत्य शैली का नाम है।
कुछ प्रसिद्ध मुजरा इस प्रकार हैं नजर लागी राजा तोरे बंगले पर, फिल्म जहाँआरा में जब जब तुम्हे भुलाया,तुम और याद आये। फिल्म उमराव जान की दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिये.. फिल्म निराला में महफिल में जल उठी शमा परवाने के लिये और .. भी बह्त सारे इस तरह के मुजरा है जिनकी सूचि बहुत लम्बी है।
प्रदीप कुमार और नरगिस की फिल्म अदालत (1958) में कई (गीत) गज़लें हैं जो नायिका नरगिस पर फिल्माई और लता जी की गाई गज़ल- उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते और यूं हसरतों के दाग मुहब्बत में धो लिये और जा जा रे साजना काहे सपनों में आये प्रमुख हैं।
पिछले दिनों पारुल जी ने मदन मोहन का संगीतबद्ध एक खूबसूरत मुजरा हमें सुनवाया साथ ही मुजरे के बारे में जानकारी भी दी
आज मैं आपको एक खूबसूरत मुजरा गज़ल सुनवा रहा हूँ जो फिल्म चुनरिया (1948) में लता जी ने हंसराज बहल के संगीत निर्देशन में गाई है।

दिल-ए-नाशाद को जीने की हसरत हो गई तुम से
मुहब्बत की कसम हम को मुहब्बत हो गई तुम से
दम-ए-आख़िर चले आये बड़ा एहसाँ किया तुम ने
हमारी मौत कितनी ख़ूबसूरत हो गई तुम से
कहाँ तक कोई तड़पे मान जाओ, मान भी जाओ
कि दिल की बात कहते एक मुद्दत हो गई तुम से
दिल-ए-नाशाद को जीने की हसरत हो गई तुम से
मुहब्बत की कसम हम को मुहब्बत हो गई तुम से

Wednesday 6 February, 2008

भूल सके ना हम तुम्हें: मन्ना डे द्वारा संगीतबद्ध गीत

एक बार कहीं पढ़ा था कि मोहम्मद रफी साहब ने एक साक्षात्कार में कहा था कि "आप रफी को सुनते हैं और रफी मन्ना डे को सुनता है।" ऐसे महान गायक जिनकी तारीफ करें और जिनके प्रशंषक हों वह कितने महान होंगे?
मन्ना डे को हम एक महान शास्त्रीय गायक के रूप में जानते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि मन्ना डे एक कुशल संगीतकार भी हैं?  मन्ना डे ने कुछ फिल्मों में संगीत भी दिया है। दो फिल्मों के नाम मेरे ध्यान में है एक तो तमाशा और दूसरी चमकी         ( दोनों 1952) परन्तु मन्ना दा एक गायक के रूप में ही ज्यादा पहचाने जाते हैं।
आज महफिल में आपके लिये प्रस्तुत है  शास्त्रीय संगीत के इन विद्वान कलाकार मन्ना डे का संगीतबद्ध गीत जो फिल्म तमाशा  में गाया है लता मंगेशकर ने और इसे लिखा है भरत व्यास ने। इस फिल्म के मुख्य कलाकार हैं अशोक कुमार, मीना कुमारी और देवानंद
अब आपको ज्यादा नहीं तड़पायेंगे लीजिये सुनिये और गुनगुनाईये इस सुन्दर गीत को।


Bhool Sake Na Ham ...

क्यों अखियाँ भर आई, फिर कोई याद आया
क्यों अखियाँ भर आई 
भूल सके न हम तुम्हें, और तुम तो जाके भूल गये
रो रो के कहता है दिल , क्यों दिल को लगा के भूल गये
भूल सके न हम तुम्हें 
बेवफ़ा ये क्या किया , दिल के बदले गम दिया
मुस्कुरायी थी घड़ी भर , रात दिन अब रोऊँ पिया
एक पलक चन्दा मेरे . यूँ झलक दिखा के भूल गये
भूल सके न हम तुम्हें 
कौन सी थी बैरन घड़ी वो , जबके तुझ से उलझे नयन
सुख के मीठे झूले में रुमझुम , झूम उठा था पावन सा मन
दिन सुनहरे रातें रुपहली , तुम मिले मैं हुई मगन
आँख खुली तो मैं ने देखा , देखा था एक झूठा सपन
सपनों के संसार में , मेरा मन भरमाके भूल गये
भूल सके न हम तुम्हें 

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