रातें थी चाँदनी, जोबन पे थी बहार- हबीब वली मोहम्मद
मेरी चाहत में तो कोई भी कमी भी नहीं थी। मैने हर पल तुम्हें ही चाहा, हर पल तुम्हें ही पूजा। फिर भी जैसे ही मौका मिला तुमने मुझे टुकरा दिया।
वह दिन मुझे आज भी याद है
जब जब मेरी गोदी में सर रख कर सोते
और कहते कि
तुम्हारी गोद में दुनिया का सूकून है
मैं इतराती
अपनी ही किस्मत से इर्ष्या करती
क्या सुन्दर दिन होते थे वे
और रातें सुहानी
फिर अचानक एक दिन
शायद तुमने किसी और का दामन थाम लिया
सूकून किसी और में पा लिया
मेरी सुन्दर दुनियां तुमने उजाड़ी और
किसी और की बसा ली
मेरे सारे सपने बिखर गए
मुझे लगा इस गुलाब और
मेरी किस्मत में क्या फर्क है
उसकी दुनियां किसी भँवरे ने बर्बाद की
और मेरी भी !
रातें थी चाँदनी और जोबन पे थी बहार
स्वर : हबीब वली मोहम्मद
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