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Monday 2 June, 2014

सावन गगने घोर घनघटा-एक सुंदर बांग्ला गीत

45-46 डिग्री की गर्मी से हाल बेहाल है। इंतजार है कब बादल आएं और बरसे जिससे तन और मन को शीतलता मिले। लेकिन कुदरत के खेल कुदरत जाने, जब इन्द्र देव की मर्जी होगी तभी बरसेंगे। गर्मी से परेशान तन को शीतलता भी तब ही मिल पाएगी लेकिन मन की शीतलता! 

उस का ईलाज तो है ना हमारे पास। सुन्दर गीत सुन कर भी तो मन को शीतलता दी जा सकती है ना तो आईये आज एक ऐसा ही सुन्दर गीत सुनते हैं जिससे सुन कर मेरे तपते-तरसे मन को बहुत सुकून मिलता है, आप भी सुनिए और आनन्द लीजिए। 

 यह सुन्दर बांग्ला गीत लता जी ने गाया है और लिखा है भानु सिंह ने.. यह तो पता होगा ही कि गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगौर अपनी प्रेम कवितायेँ भानुसिंह के छद्‍म नाम से लिखते थे। यह भी भानु सिंहेर पदावली का हिस्सा है।  

इस सुन्दर गीत के बोल के लिए व्योमा मिश्रा जी को और बोल के साथ इसका सरल अनुवाद बताने के लिए शुभ्रा शर्मा दी का बहुत-बहुत धन्यवाद  

सावन गगने घोर घन घटा निशीथ यामिनी रे  
कुञ्ज पथे सखि कैसे जावब अबला कामिनी रे।  

उन्मद पवने जमुना तर्जित घन घन गर्जित मेह  
दमकत बिद्युत पथ तरु लुंठित थरहर कम्पित देह  
घन-घन रिमझिम-रिमझिम-रिमझिम बरखत नीरद पुंज  
शाल-पियाले ताल-तमाले निविड़ तिमिरमय कुञ्‍ज।  

कह रे सजनी, ये दुर्योगे कुंजी निर्दय कान्ह  
दारुण बाँसी काहे बजावत सकरुण राधा नाम  
मोती महारे वेश बना दे टीप लगा दे भाले  
उरहि बिलुंठित लोल चिकुर मम बाँध ह चम्पकमाले।
 गहन रैन में न जाओ, बाला, नवल किशोर क पास  
गरजे घन-घन बहु डरपावब कहे भानु तव दास।  

भावार्थ  

लता जी के गीत को सुनते हुए पढ़िए तो पूरा दृश्य आँखों के सामने आ जायेगा। सावन की घनी अँधेरी रात है, गगन घटाओं से भरा है और राधा ने ठान लिया है कि कुंजवन में कान्हा से मिलने जाएगी। सखी समझा रही है, मार्ग की सारी कठिनाइयाँ गिना रही है - देख कैसी उन्मद पवन चल रही है, राह में कितने पेड़ टूटे पड़े हैं, देह थर-थर काँप रही है। राधा कहती हैं - हाँ, मानती हूँ कि बड़ा कठिन समय है लेकिन उस निर्दय कान्हा का क्या करूँ जो ऐसी दारुण बांसुरी बजाकर मेरा ही नाम पुकार रहा है। जल्दी से मुझे सजा दे। तब भानुसिंह कहते हैं ऐसी गहन रैन में नवलकिशोर के पास न जाओ, बाला।

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