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Sunday 21 December, 2008

आज उसे फिर देखा है, देखा है

पता नहीं क्यों आज शाम से ही मन उदास है, शायद उनकी याद में! आज अचानक उनकी झलक दिख गई, कुछ देर बाद भ्रम टूट गया, नहीं वो वो नहीं, कोई और ही...जब तुम नहीं थी तो मुझे तुम्हारे होने का अहसास क्यूं कर हुआ?
तुम्हारी इस झलक ने पता नहीं क्या क्या याद दिला दिया।
आज तुम्हे फिर देखा है- देखा है।




आज उसे फिर देखा है, देखा है -२
रोज किया करता था याद
लेकिन आज बहुत दिन बाद-२
गाँव के छोटे पनघट में-२
चांद सा चेहरा घूंघट में
मैने चमकते देखा है-२
आज उसे फिर देखा है, देखा है-२

शाम का बादल छाने को था
सूरज भी छुप जाने को था-२
उसके रूप के सूरज को जब
मैने उठते देखा है,
मैने उठते देखा है
आज उसे फिर देखा है, देखा है-२

नाम मुझे मालूम नहीं है
शर्मिली है कमसिन है वो-२
दिल की रानी बना चुका, बना चुका हूँ-२
कहने को पनहारिन है वो-२
एक नजर में दिल की दुनियां
मैने बदलते देखा है-२
आज उसे फिर देखा है
देखा है।

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(स्व. तलत महमूद को नमन, यह उनकी एक गैर फिल्मी रचना है। आपने कई सुन्दर गैर फिल्मी गीत- गज़लें गाई है। और कभी मौका मिला तो सुनाई जायेंगी। इस गीत के संगीतकार-गीतकार के बारे में जानकारी नहीं मिली अगर आप में से किसी को पता हो तो बतायें, ताकि इसे सुधारा जा सके)

Sunday 7 December, 2008

फ़िल्म ममता का लता जी आवाज में एक नायाब गीत

१९६६ की फ़िल्म ममता में संगीतकार रोशन ने बेहतरीन संगीत दिया था | इसी फ़िल्म का एक प्रसिद्ध गीत है "रहे न रहे हम" | इस गीत को रोशन साहब ने सचिन देव बर्मन के गीत "ठंडी हवाएं लहरा के आयें" की धुन पर बर्मन जी की सहमति से रचा था | लेकिन आज जो गीत हम आपके लिए लेकर आए हैं वो विशेष है | कव्वालियों के सरताज रोशन साहब ने "विकल मोरा मनवा" गीत में जितनी सरलता से लोक गीतों के शब्दों को लेकर ताना बाना बुना है वो बस सुनते ही बनता है |




हम गवनवा न जाइवे हो बिना झूलनी,
हम गवनवा न जाइवे हो बिना झूलनी...

अम्बुआ की डारी पड़ रही बुंदिया,
अचरा से उलझे लहरिया,
लहरिया...बिना झूलनी.
हम गवनवा न जाइवे हो बिना झूलनी,

सकल बन गगन पवन चलत पुरवाई री,
माई रुत बसंत आयी फूलन छाई बेलरिया
डार डार अम्बुअन की कोहरिया
रही पुकार और मेघवा बूंदन झर लाई..
सकल बन गगन पवन चलत पुरवाई री

विकल मोरा मनवा, उन बिन हाय,
आरे न सजनवा रुत बीती जाए,
विकल मोरा मनवा, उन बिन हाय,

भोर पवन चली बुझ गए दीपक
चली गयी रैन श्रृंगार की
केस पे विरह की धूप ढली
अरी ऐ री कली अँखियाँ की
पड़ी कुम्हलाई...
विकल मोरा मनवा....

युग से खुले हैं पट नैनन के मेरे
युग से अँधेरा मोरा आंगना
सूरज चमका न चाँद खुला
अरी ऐ री जला रही अपना,
तन मन हाय
विकल मोरा मनवा...

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