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Wednesday 29 July, 2009

अलविदा लीला नायडू...

अपनी पहली ही फिल्म में अपने सौंदर्य और अभिनय का लोहा मनवा देने वाली सुप्रसिद्ध अभिनेत्री लीला नायडू नहीं रही... उनको हार्दिक श्रद्धान्जली।



फिल्म समीक्षा: अनुराधा 1960
इस फिल्म के गीत अफलातून जी ने आगाज़ पर चढ़ाये हैं सो यहां गाने ना लगाकर उस पोस्ट का ही लिंक दे रहा हूं
लालित्यपूर्ण लीला नायडू की स्मृति में अनुराधा

Tuesday 21 July, 2009

रूठ के तुम तो चल दिये: राग हेमन्त में एक खूबसूरत गीत

आईये आज आपको एक बहुत ही खूबसूरत गीत सुनवाते हैं, इस गीत को अनिलदा ने राग हेमन्त में ढ़ाला है, ताल है दादरा। लताजी जब इस गीत के पहले और दूसरे पैरा की पहली पंक्‍तिया गाती है तब वे लाईनें मन को छू सी जाती है।
आप ध्यान दीजिये इन दो लाईनों पर... हाल ना पूछ चारागर और रो दिया आसमान भी ... को। कमर ज़लालाबादी के सुन्दर गीत और अनिल दा के संगीत निर्देशन के साथ लता जी ने किस खूबसूरती से न्याय किया है; गीत 1955 में बनी फिल्म जलती निशानी का है।

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रूठ के तुम तो चल दिए, अब मैं दुआ तो क्या करूँ
जिसने हमें जुदा किया, ऐसे ख़ुदा को क्या करूँ
जीने की आरज़ू नहीं, हाल न पूछ चारागर
दर्द ही बन गया दवा, अब मैं दवा तो क्या करूँ
सुनके मेरी सदा-ए-ग़म, रो दिया आसमान भी-२
तुम तक न जो पहुँच सके, ऐसी सदा को क्या करूँ


rooth ke tum to ch...

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Monday 13 July, 2009

अब कहाँ सुनने को मिलता है ऐसा भरा-पूरा मालकौंस ?-२

पिछले दिनों संजय पटेल जी ने संगीत मार्तण्ड ओमकारनाथ ठाकुर जी के स्वर में राग मालकौंस में रची बंदिश पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे.. सुनवाई और शीर्षक में एक हल्की सी शिकायत कर दी कि अब कहाँ सुनने को मिलता है ऐसा भरा-पूरा मालकौंस ?" उनकी शिकायत जायज भी तो है।
इस कड़ी में मैं भी यही शिकायत्त करना चाहूंगा साथ ही आपको राग मालकौंस की एक और बंदिश सुनवाना चाहूंगा। यह बंदिश लता मंगेशकर जी ने खुद द्वारा निर्मित मराठी फिल्म कंचन गंगा में गाई है। संगीतकार हैं पं वसंत देसाई।
आईये सुनते हैं...


यूट्यूब लिंक

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Shyam sundar roop ...


क्या बंदिश सुनने के बाद भी संजय भाई जी का प्रश्‍न अनुत्तरित ही रहा कि अब कहाँ सुनने को मिलता है ऐसा भरा-पूरा मालकौंस?

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Sunday 12 July, 2009

कैसे भाये सखी रुत सावन की: मल्हार राग, लताजी और सी रामचन्द्र जोड़ी की एक सुन्दर जुगलबन्दी

सावन की ऋतु, बरखा की बूंदे और मल्हार राग...अगर यह तीनों एक साथ मिल जायें तो किसको नहीं सुहायेगा! पर हमारी नायिका को भी सावन की रुत नहीं भा रही, अपनी सखी से शिकायत कर रही है कि कैसे भाये सखी रुत सावन की.......! क्यों कि उसके पिया उसके पास नहीं है, मिलना तो दूर की बात आने की पाती का भी पता ठिकाना नहीं,ऐसे में नायिका अपनी मन की बात अपनी सखी को ही गाकर सुना रही है।
आप सब जानते हैं अन्ना साहब यानि सी रामचन्द्र और लताजी ने एक से एक लाजवाब गीत हमें दिये। फिल्म पहली झलक का यह गीत सुनिये देखिये सितार और बांसुरी का कितना सुन्दर प्रयोग मल्हार राग में अन्ना साहब ने किया है।
और हां.... यह गीत फिल्म पहली झलक का है।


कैसे भाये सखी रुत सावन की-२
पिया भेजी ना पतियां आवन की-२
कैसे भाये सखी रुत सावन की
छम छम छम छम बरसत बदरा-२
रोये रोये नैनों से बह गया कजरा
आग लगे ऐसे सावन को-२
जान जलावे जो बिरहन की
कैसे भाये सखी रुत सावन की-२
धुन बंसी की सावनिया गाये
आऽऽऽ सावनिया गाये
धुन बंसी की सावनिया गाये-२
घायल मन, सुर डोलत जाये
बनके अगन अँखियन में भड़के-२
आस लगी पिया दरशन की
कैसे भाये सखी रुत सावन की-२
पिया भेजी ना पतियां आवन की-२
कैसे भाये सखी रुत-२
आलाप आपके गुनगुनाने के लिये
म म रे सा, नि सा रे नि ध नि ध नि सा
म प द नि सा, रे सा रे नि सा ध निऽऽ प
म रे प ग म रे सा, प म रे प म नि द सा
म प द नि सा, नि नि प म ग म रि सा नि सा
प म ग म रे सा नि सा
प म ग म रे सा नि सा
सावन की
कैसे भाये सखी रुत आऽ सावन की

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यूट्यूब लिंक




Pahli Jhalak 1954 ...

Saturday 11 July, 2009

तुम जाओ जाओ भगवान बने इन्सान बनो तो जानें; एक दुर्लभ गीत

वर्षों पहले जब मुझे पुराने गाने सुनने का शौक लगा था तब बहुत से ऑडियो कैसेट्स खरीदे। एक दिन एक बढ़िया सैट हाथ लगा नाम था The Sentimental Era- 1936-46 इस सैट में कई बढ़िया गीत थे जिसमें से रहमत बानो का गाया हुआ एक गीत मैं तो दिल्ली से दुल्हन लाया रे ओ बाबूजी आपको मैं महफिल में आपको सुनवा चुका हूं । इस संग्रह में एक और भी गीत था (शायद अछूत कन्या फिल्म का है) कित गये ओ खेवनहार... जो मैं ऐसा जानती प्रीत किये दुख: होय नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत ना करियो कोय.. कभी मौका मिला तो आपको यह गीत भी सुनवाया जायेगा। बहुत सारे बढ़िया गीतों में एक गीत मुझे बहुत पसन्द आया था क्यों कि इसमें नायिका भगवान को ही चुनौती देती है।
आज मैं आपको जो गीत सुनवाने जा रहा हूं वह फिल्म चित्रलेखा का है। गीत की बात करने से पहले आपको एक आश्‍चर्यजनक बात बताना चाहूंगा कि इस फिल्म के निर्देशक स्व. केदार शर्मा ने चित्रलेखा नाम से दो बार फिल्म बनाई पहली के नायक- नायिका थे मिस मेहताब और नंदरकर यह 1941 में बनी थी तथा दूसरी बार 1964 में बनी थी और उसके मुख्य कलाकार पद्‍म श्री अशोक कुमार, मीना कुमारी और प्रदीप कुमार थे। 1964 में बनी चित्रलेखा का मशहूर गाना आपने सुना ही होगा- संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे?
जैसा कि मैने उपर जिक्र किया था कि The Sentimental Era एल्बम के एक गीत में नायिका भगवान को चुनौती देती है यह गाना 1941 में बनी चित्रलेखा में भी था गीत में नायिका भगवान से कहती है ...... तुम जाओ जाओ भगवान बनो इन्सान बने तो जाने.... यह गीत रामदुलारी ने गाया था। इस फिल्म के लिये निर्देशक केदार शर्मा ने संगीतकार उस्ताद झंडे खां साहब को सारे गीत भैरवी में ढालने को कहा था और उस्ताद जी ने वैसा किया भी। आईये अब गीत सुनते हैं।

तुम जाओ जाओ भगवान बने
इन्सान बने तो जाने

तुम उनके जो तुमको ध्यायें
जो नाम रटें, मुक्ति पावें
हम पाप करें और दूर रहे
तुम पार करो तो माने

तुम जाओ बड़े भगवान बने
तुम जाओ जाओ भगवान बने...
तुम उनके...



1941 Ramdulari···...

Thursday 9 July, 2009

फ़ूल ही फ़ूल खिल उठे मेरे पैमाने में: मेहदी हसन की आवाज और राग गौड़ मल्हार

दोस्तों सावन का महीना चालू हो गया है, भले ही जम के पानी ना बरस रहा हो लेकिन हल्की फुहारें ही सही; तन मन को शीतलता तो दे रही है, ऐसे में अगर राग मल्हार सुना जाये और वो भी शहंशाह ए गज़ल मेहदी हसन साहब के स्वर में तो कितना आनन्द आयेगा?

हसन साहब बीमार हैं, आपने उनकी कई गज़लें सुखनसाज़ पर सुनी ही है। आईये आज आपको हसन साहब की आवाज में और राग मल्हार (राग गौड़ मल्हार) में ढली एक छोटी सी नज़्म सुनाते हैं। आप आनन्द लीजिये और हसन साहब की सलामती के लिये दुआ कीजिये।

फ़ूल ही फ़ूल खिल उठे मेरे पैमाने में
आप क्या आये बहार आ गई मैखाने में
आप कुछ यूं मेरे आईना-ए-दिल में आये
जिस तरह चांद उतर आया हो पैमाने में

(यह शेर प्रस्तुत गज़ल में नहीं है, सुनने को भले ना मिले पढ़ने का आनन्द तो उठाया ही जा सकता है।

आपके नाम से ताबिन्दा है उनवा-ए- हयात
वरना कुछ बात नहीं थी मेरे अफ़साने में

Phool hi phool khi...

Download Link: फूल ही फूल खिल उठे

Monday 6 July, 2009

दुखियारे नैना ढंढे पिया को: मदनमोहन जी द्वारा संगीतबद्ध सुन्दर गीत

महान संगीतकार मदनमोहन जी के बारे में अल्पना वर्मा जी ने अपने लेख में विस्तृत जानकारी दी, उनके गाये गीत भी सुनवाये। आज मैं आपको उनके बारे में ज्यादा ना बताते हुए सीधे उनका संगीतबद्ध एक सुन्दर गीत सुनवाता हूं। यह गीत राग गौड़ सारंग में ढला हुआ है पर इसमें अन्य रागों की छाया भी महसूस की जा सकती है, इस सुंदर गीत की कल्पना मदनमोहन जी से ही की जा सकती है।

यह गीत फिल्म निर्मोही (Nirmohi 1952) का है।इस गीत को गाया है लता मंगेशकर ने और गीतकार हैं इन्दीवर।
इस फिल्म में मुख्य भूमिकायें नूतन और सज्जन ने निभाई थी।

दुखियारे नैना ढूँढ़ें पिया को
निसदिन करें पुकार
दुखियारे नैना

फिर क्या आएँगीं वो रातें
लौट गईं हैं जो बारातें
बीते दिन और बिछड़ा साथी
बहती नदी की धार
दुखियारे नैना ...

राह में नैना दिया जलाएँ
आप जलें और जिया जलाएँ
जिस से जीवन भी जल जाए
वो कैसी जलधार
दुखियारे नैना ...

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