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Monday 7 September, 2015

घन गरजत बादर आए.. मियां की मल्हार- अनोखी जुगलबन्दी


इस बार का सावन भी यूं ही सूखा बीत गया... आँखे तरस गई उन बूंदों के लिए जिन के तन पर गिरने से तन ही नहीं मन झूम भी उठता है। लेकिन तन को शीतलता तो जब मेहा आएंगे और बरसेंगे तब ही महसूस होगी  पर मन की शीतलता के लिए शास्त्रीय संगीत ने हमें बहुत से राग दिए उनमें से एक है राग "मियां की मल्हार"!

हम इस ब्लोग पर अक्सर पुराने और बहुत कम सुनाई देने वाले गीत ही सुनते हैं लेकिन इस बार नया संगीत सुनते हैं। कोक स्टूडियो में पाकिस्तान की अभिनेत्री और गायिका आयेशा ओमर ने आधुनिक वाद्य यंत्रों के साथ जुगलबन्दी का जो समा बांधा है वह मन को झूमने पर मजबूर कर देता है।

आइये सुनते हैं। इस बार पुराने गानों की बजाय शास्त्रीय संगीत और आधुनिक वाद्ययंत्रों की जुगलबन्दी सुनते हैं। मियां की मल्हार राग आपको झूमने पर मजबूर कर देगी। आईये सुनते हैं आयेशा ओमर को...
  घन गरजत बादर आये
उमंड घुमंड कर बादर छाये
घन गरजत ...
बिजुरी चमके जियरा तरसे
मेहा बरसे छम छम छम
घन गरजत..
उमंड घुमंड घन गरजे बादर
कारे कारे
अत ही डराये
अत ही डराये कारी कारी रतियां
उमंड घुमंड घन गरजे बादर
चमक चमक
चमक चमक चमके बिजुरिया
धमक धमक धमके दामनिया
चलत पुरवाईया सनन रूम झूम
उमंड घुमंड घन गरजे बादर
झूमे बादर कारे कारे
अत ही दराये कारी कारी रतिया
मा रूम झूम
बिजुरे चमके  गरजे बरसे
मेहरवा आई बदरिया
गरज गरज मोहे अतही डराये
घन गरजत ...
घनन घनन घन  बिजुरी चमके
पपीहा पीहू की टेर सुनाए
का करू कित जाऊं
मोरा जियरा लरज़े
बिजुरी चमके गरजे बरसे...
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