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कल जल्दबाजी में बहुत बड़ी गड़बड़ हो गई। रूना लैला के गीत पर पोस्ट लिखना चाह रहा था, मैटर लिख दिया और कॉफे में कुछ ग्राहक आ गये तो उन्हें निबटाने के बाद जब वापस काम शुरु किया तो यह याद ही नहीं रहा कि गीत कौनसा पोस्ट करना है। गाना सुना... वह मिर्जा गालिब का था। और उस पर मैटर को लिख कर पहले मैटर के साथ जोड़ कर पोस्ट कर दिया। मैं क्षमा चाहता हूँ , महफिल के चाहकों से क्यों कि मिर्ज़ा गालिब की वह गज़ल सुमन कल्याणपुर की आवाज में थी ना कि रूना लैला की! सुमन कल्याणपुर के स्वर में गाई इस गज़ल के संगीतकार का फिलहाल पता नहीं चला है।
आपने मिर्ज़ा गालिबمرزا اسد اللہ خان की सुप्रसिद्ध गज़लदिलेनादांतुझेहुआक्याहै... कई गायकों की आवाज में सुनी होगी। लगभग सभी गायकों ने इस सुन्दर गज़ल को अपने अपने तरीके से गाया। कुछ बहुत प्रसिद्ध हुई और कुछ गुमनामी के अंधेरे में खो गई। आज सुनिए इस सुन्दर गज़ल को सुमन कल्याणपुर की आवाज में। यह भी एकदम दुर्लभ है।
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है आखिर इस दर्द की दवा क्या है
हम हैं मुश्ताक़ और वो बेज़ार या इलाही, ये माजरा क्या है
मैं भी मुँह में ज़ुबान रखता हूँ काश पूछो की मुद्दआ क्या है
हमको उनसे वफ़ा कि है उम्मीद जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
बहुत दिनों के बाद ही सही पर जो कुछ आप सुनेंगे, आनंदित हुए बिना नहीं रह पायेंगे। यह एक मराठी नाट्य संगीत का गीत है। इसे गाया है बकुल पण्डित ने। और १९४६ में प्रदर्शित हुए नाटक पाणिग्रहम में गाया जाता था। आप भाषा भले ही ना समझ पायें लेकिन आपको इस गीत को सुनने के बाद एक अलग तरह का सुकून मिलेगा।