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Tuesday 23 September, 2008

माँ : खोज एक गीत की

शायद सन 1991-92 की बात होगी, जब नरसिम्हा राव भारत के प्रधानमंत्री हुआ करते थे और एन डी ए सरकार के इण्डिया शाइनिंग की तरह उन दिनों टीवी पर एक विज्ञापन बहुत चला करता था, जिसमें बताया जाता था कि किस तरह नरसिम्हा राव ने भारत की तस्वीर बदल दी।
विज्ञापन में एक महिला खुशखुशाल भाग कर घर में आती है और अपनी संदूक में कपड़ों के नीचे से एक तस्वीर निकालकर अपनी साड़ी से पोंछती है, यह तस्वीर नरसिम्हाराव जी की होती है। पार्श्व में एक गीत भी चलता रहता है।
इस विज्ञापन के साथ उन दिनों एक गाना भी टीवी पर बहुत दिखता था। यह गाना सागरिका (मुखर्जी) के एक अल्बम का था और जिसमें सागरिका अपनी माँ के लिये कहती है...प्रेम की मूरत दया की सुरत, ऐसी और कहां है, जैसी मेरी माँ है

मुझे पॉप बिल्कुल नहीं भाते पर यह गीत एक पॉप गायिका ने गाया था और पता नहीं क्यों यह गाना मुझे बहुत पसंद था। धीरे धीरे इस गीत को सब भूलते गये, (शायद सागरिका भी) पर मैं इस गाने को बहुत खोजता रहा पर मुझे नहीं मिला। क्यों कि एल्बम का नाम पता नहीं था और सागरिका कोई बहुत बड़ी स्टार गायिका भी नहीं थी कि गीत की कुछ लाईनों से गीत खोज लिया जाता।
हैदराबाद में साईबर कॉफे चलाते हुए नेट पर भी बहुत खोजा पर यह गीत नहीं मिला, यूनुस भाई से अनुरोध किया तो उन्होने कहा, गीत छोड़िये हम सागरिका का एक इन्टर्व्यू ही कर लेते हैं। पर शायद सागरिका अपने परिवार के साथ विदेश में रहती है इस वजह से अब तक वह भी नहीं हो पाया।
कुछ दिनों पहले मैने एक सीडी की दुकान वाले को ५०/- एडवान्स दिये और उसे कहा तो उसने भी चार दिन पास पैसे वापस लौटा दिये और कहा कि भाई मुझे सीडी नहीं मिली।
मेरे एक मित्र कम ग्राहक अनुज से यह बात की तो उन्होने मुझे चैलेन्ज दिया कि वह इस गीत को दो दिन में खोज लेंगे और वाकई उन्होने खोज भी दिया। धन्यवाद अनुज भाई।
लीजिये आप भी इस गीत को सुनिये । और हाँ इस गीत को लिखा है निदा फ़ाज़ली ने। इस गीत को सागरिका ने जैसे सच्चे दिल से गाया है, अपनी माँ को याद करते हुए। तभी यह गीत इतना मधुर बन पाया है। गीत सुनते हुए मुझे मेरी माँ याद आती है। आपको आती है कि नहीं? बताईयेगा।

धूप में छाय़ा जैसी
प्यास में नदिया जैसी
तन में जीवन जैसे
मन मैं दर्पन जैसे
हाथ दुवा वाले
रोशन करे उजाले
फूल पे जैसे शबनम
साँस में जैसे सरगम
प्रेम की मूरत दया की सुरत
ऐसी और कहां है
जैसी मेरी माँ है

जहान में रात छाये
वो दीपक बन जाये
जब कभी रात जगाये
वो सपना बन जाये
अंदर नीर बहाये
बाहर से मुस्काये
काया वो पावन सी
मथुरा वृंदावन जैसी
जिसके दर्शन मैं हो भगवन
ऐसी और कहां है
जैसी मेरी माँ है
( इस प्लेयर को लगाने का सुझाव श्री अफलातूनजी ने दिया। वर्डप्रेस.कॉम पर गाने चढ़ाना बहुत मुश्किल काम है। यह जुगाड़ अच्छा है पर इसकी प्रक्रिया बहुत ही लम्बी है, फिर भी एक शुरुआत तो हुई, धन्यवाद अफलातूनजी।)

Sunday 21 September, 2008

मल्लिका-ए- तरन्नुम नूरजहाँ के जन्मदिन पर विशेष

एक जुगलबंदी और एक दुर्लभ गीत

आज मल्लिका ए तरन्नुम नूरजहां का जन्म दिन है। अपने जीवन के २१वें साल में नूरजहाँ ने भारत और हिन्दी फिल्में छोड़ दी और बँटवारे की वजह से पाकिस्तान चली गई। पाकिस्तान में भी उन्होने कई फिल्मों में काम किया, बहुत गाया पर मेरे मन में एक टीस है कि काश नूरजहां भारत में होती तो हमारे पास दो दो अनमोल रत्न होते। लता जी और नूरजहाँ।
लता मंगेशकर भी नूरजहाँ को अपना गुरु मानती हैं। आईये नूरजहाँ के स्वर में दो बढ़िया गीत सुनते हैं। पहला एक शास्त्रीय आलाप है। नूरजहाँ ने इस में सलामत अली खाँ साहब के साथ जुगलबंदी की है। यह कौनसा राग है हमें नहीं पता, शायद पारुलजी या मानोशीजी कुछ मदद कर सकें।


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और इस दूसरे गीत को नूरजहाँ ने अपनी बुलंद आवाज में गाया है। यह फिल्म बड़ी माँ से है। यह गीत ज़िया सरहदी ने लिखा और संगीतबद्ध किया दत्ता कोरेगाँवकर (के. दत्ता) ने।



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आ इंतज़ार है तेरा, दिल बेक़रार है मेरा
आजा न सता और, आजा न रुला
और आजा कि तू ही है मेरी उम्मीद का तारा
उम्मीद का तारा संगम
मेरी ख़ुशियों का निगाहों का सहारा
आ इंतज़ार है तेरा, दिल बेक़रार है

मेरा आकर मेरी जागी हुई रातों को सुला दे
खो जाऊँ, खो जाऊँ मुझे ऐसा कोई गीत सुना दे
आ इंतज़ार है तेरा, दिल बेक़रार है मेरा

अब और सितम, अब और सितम हम से उठाए नहीं जाते
और राज़ मोहब्बत के, और राज़ मोहब्बत के छुपाए नहीं जाते
छुपाये नहीं जाते
आ इंतज़ार है तेरा, दिल बेक़रार है मेरा

अभी पता नहीं कितने ऐसे संगीतकार हैं जिन्होने इतने बढ़िया गीत रचे और हमें उनके नाम तक नहीं पता। भविष्य में ऐसे ही और संगीतकारों के गीत महफिल में सुनाये जायेंगे।

Sunday 14 September, 2008

“तेरे भीगे बदन की खूशबू से ” मेहंदी हसन द्वारा गाया एक फ़िल्मी गीत

इसमे कोई शक नही कि जनाब मेहंदी हसन के चाहने  वाले न सिर्फ़ पाकिस्तान के आवाम मे बल्कि अपने देश मे भी लाखॊ की तादाद मे हैं । लेकिन हमसे अधिकतर मेहंदी हसन जी को  गजल और गैर फ़िल्मी गानों के रुप जानते रहे हैं । लेकिन उनकी दूसरी शख्सियत पाकिस्तान के उर्दू सिनेमा के साथ भी जुडी  है । पाकिस्तानी अदाकार नदीम और शबनम पर फ़िल्माया गया यह रोंमानटिक गाना  “शराफ़त” से लिया गया है । यह फ़िल्म १९७० के आसपास पाकिस्तान मे रिलीज हुयी थी । पेश है मेहंदी हसन जी की दिलकश आवाज :

तेरे भीगे बदन की खूशबू से 
लहरें भी हुयी मस्तानी सी
तेरी जुल्फ़ को छू कर आज हुई
खामोश हवा दीवानी सी
यह रुप का कुन्दन दहका हुआ
यह जिस्म का चंदन महका हुआ
इलजाम न देना फ़िर मुझको
हो जाये अगर नादानी सी
बिखरा हुआ काजल आंखॊ मे
तूफ़ान की हलचल सांसो मे
यह नर्म लबों की खामोशी
पलकों मे छुपी हैरानी सी
तेरे भीगे बदन की खूशूबू से
लहरे भी हुयी मस्तानी सी
तेरी जुल्फ़ को छू कर आज हुई
खामोश हवा दीवानी सी ।

Saturday 13 September, 2008

सेक्सोफोन और बांसुरी पर राग मालकौंस: जुगलबन्दी

रोज आपको महफिल में फिल्मी गीत और गज़ले सुनाते रहे, कल संजय भाई ने एक तराना ऐसा सुना दिया की पूरे दिन तन मन पर वही छाया रहा। पता नहीं कितनी बार उसे सुना। फिर याद आया एक तराना ये तराना जो कर्नाटक शैली की सुप्रसिद्ध जोड़ी कादरी गोपालनाथ और प्रवीण गोदखिन्दी Kadri Gopalnath & Pravin Godkhindi ( उच्चारण में गलती हो तो क्षमा करें)
इस तराने के लिये दोनो कलाकारों ने सेक्सोफोन और बांसुरी पर जुगलबंदी की है। यह तराना सुनने के लिये आपको १४ मिनिट खर्च करने होंगे, क्यों कि बीच में द्रुत लय में सुन्दर आलाप भी है; हो सकता है कि १४ मिनिट आपके लिये बहुत ज्यादा हो परन्तु मुझे विश्वास है कि इस जुगलबंदी को सुनने के बाद आपको जो आनन्द मिलेगा वह बहुत बढ़िया होगा, आपको यह नहीं लगेगा कि टाइम खोटी किया।
हाँ पूरा आनन्द लेने के लिये पूरी जुगलबंदी सुननी होगी। देखते हैं आपको पसन्द आई तो खजाने में से कुछ और बन्दिशे निकालते हैं।
लीजिये सुनिये

चलते चलते

लखनऊ के डॉ प्रभात टण्डन भी अब महफिल के सदस्य हैं कल ही उनहोने जगजीत सिंह के गाये हुए और निदा फ़ाजली के लिखे दोहे पोस्ट किये है, आपने सुने कि नहीं? डॉ साहब का स्वागत है।

साथ ही नीरज भाई ने आशाजी के गाये हुए और मदनमोहन जी के संगीतबद्ध तीन सुन्दर गीत भी पोस्ट किये हैं, उन्हें भी जरूर सुनिये

आशा भोंसले की आवाज में मदन मोहन के तीन अमर गीत !!!

जब जब मदन मोहन के संगीत का जिक्र होता है साथ में हमेशा लता मंगेशकरजी की बात होती है । ठीक उसी तरह ओ. पी. नैय्यर साहब के संगीत के साथ आशा भोसले का नाम अपने आप जुबां पर आ जाता है । लेकिन ये भी सत्य है कि आशा भोंसले ने भी मदन मोहन और गीता दत्त ने ओ. पी. नैय्यर के साथ अनेकों अनमोल नग्में गाये हैं ।

मदन मोहन जी के २० साल के संगीत के सफ़र में उनके साथ आशा भोंसले ने १९० और लता मंगेशकर ने २१० फ़िल्मी गीत गाये । कुछ दिन पहले आशा भोसले का जन्मदिन था लेकिन अपनी व्यस्तता के चलते मैं कुछ पोस्ट नहीं कर पाया । आशाजी और मदन मोहन के अनमोल नग्मों में से मेरे कुछ पसंदीदा गीत हैं ।

१) सबा से ये कह दो कि कलिया बिछायें (बैंक मैनेजर)
२) जमीं से हमें आसमा पर (अदालत)
३) अश्कों से तेरी हमने तस्वीर बनाई है (देख कबीरा रोया)
४) जाने क्या हाल हो कल शीशे का पैमाने का (मां का आंचल)
५) हमसफ़र साथ अपना छोड चले
६) कोई शिकवा भी नहीं, कोई शिकायत भी नहीं (नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे)

फ़िल्म "नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे" में तो मदनजी के सारे गीत आशाजी ने गाये और इस फ़िल्म का एक एक गीत अनमोल है । पहला नग्मा असल में एक गजल है, जाने क्या हाल हो कल शीशे का पैमाने का । इस गीत को सुनें और बस डूब के रह जायें ।



दूसरा गीत है, "सबा से ये कह दो कि कलियाँ बिछायें"



और तीसरा अनमोल नग्मा है, "कोई शिकवा भी नहीं"



आईक की हवायें बढती जा रही हैं और थोडी देर में शायद बिजली गुल हो जाये, इससे पहले इस पोस्ट को छाप देते हैं ।

Friday 12 September, 2008

"मै रोया परदेस मे भीगा माँ का प्यार ।" - जगजीत सिंह जी के गाये हुये कुछ खूबसूरत दोहे !

आसपास घटने वाली कुछ घटनायें मन मे अमित प्रभाव छॊड देती हैं । बात है तो बहुत साधारण सी लेकिन एक नन्हें से बालक का प्रशन और उसके पिता का उत्तर शायद बहुतों के लिये सोचने का सबब बन सके । कल दोपहर क्लीनिक मे जब जोहर की अजान का स्वर पास वाली मस्जिद से उभरा तो मेरे सामने बैठे एक नन्हें से बालक ने अपने पिता से पूछा कि यह क्या कह रहे हैं । उसके पिता ने उसको अपनी गोदी मे बैठाते और समझाते हुये कहा कि जैसे हम घर मे पूजा करने के लिये सबको बुलाते हैं वैसे ही यह भी पूजा करने के लिये ही बुला रहे हैं । एक छोटी सी बात मे उस बालक की जिज्ञासा पर विराम सा लग गया । गाड , अल्लाह , ईशवर , भगवान नाम अनेक लेकिन मकसद सिर्फ़ एक । सत्य की खोज । उपासना के ढंग और रास्ते अलग –२ हो सकते हैं , लोगों के मन मे उनकी छवियाँ अलग-२ हो सकती हैं लेकिन सत्य सिर्फ़ एक ।

जगजीत सिंह की गायी और निदा फ़ाजली द्वारा लिखी गयी यह नज्म (दोहे) मुझे बहुत पसन्द है।

मै रोया परदेस मे भीगा माँ का प्यार ।
दु:ख मे दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार ॥
छोटा कर के देखिये जीवन का विस्तार ।
आँखो भर आकाश है बाँहों भर संसार ॥
ले के तन के नाप को घूमें बस्ती गाँव ।
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव ॥
सब की पूजा एक सी अलग- 2 हर रीति ।
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत ॥
पूज़ा घर मे मूर्ति मीरा के संग शयाम ।
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम ॥
नदिया सींचें खेत को तोता कुतरे आम ।
सूरज ढेकेदार सा सबको बाँटे काम ॥
साँतों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर ।
जिस दिन सोये देर तक भूखा रहे फ़कीर ॥
अच्छी संगत बैठ कर संगी बदले रूप ।
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गयी धूप ॥
सपना झरना नींद का जाकी आँखीं प्यास ।
पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास ॥
चाहिये गीता बाँचिये या पढिये कुरान ।
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान ॥

पंछी बावरा... नय्यरा आपा की आवाज में एक मधुर गीत

खुर्शीद की आवाज में आपने भक्त सूरदास फिल्म का यह गीत अनेको बार सुना होगा। इस गीत को पंडित ज्ञानदत्त जी ने राग केदार में ढ़ाला था, और लिखा था डी एन मधोक ने। भक्त सूरदास के बरसों बाद नय्यरा नूर ने एक प्राइवेट एल्बम के लिये इस गीत को गाया था।

नय्यरा आपा का जन्म असम में हुआ था और बाद में वे पाकिस्तान में रहीं। लीजिये इस सुन्दर गीत को नय्यरा आपा की आवाज में सुनिये











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पंछी बावरा
चांद से प्रीत लगाये

छाया देखी नदी में मूरख
फूला नहीं समाया
वो हरजाई तारों के संग
अपनी रात रचाये
पंछी बावरा

कौन बताये तुझे चकोरा
गोरे मन के काले
ज्यूं ज्यूं प्रीत बढ़ायेगा तू
त्यूं त्यूं ये घट जाये
चांद से प्रीत लगाये
पंछी बावरा

नय्यरा आपा हिन्दी ब्लॉग जगत में

कभी हम खूबसूरत थे विमलजी की ठुमरी

जिसके बिना काम नहीं चलता.. प्रमोदजी का अज़दक



Tuesday 2 September, 2008

एक नया अनमोल जीवन मिल गया: तलत महमूद

तलत महमूद का गाया हुआ एक दुर्लभ और मधुर गैर फिल्मी गीत

मखमली आवाज के मालिक तलत महमूद साहब के लिये कुछ कहने की जरूरत है? मुझे लगता है शायद उनकी लिये यहाँ कुछ शब्दों में लिखना बड़ा मुश्किल होगा। फिलहाल आप उनकी मधुर आवाज में एक दुर्लभ गीत सुनिये। यह गैर फिल्मी गीत है और इसका संगीत दिया है दुर्गा सेन ने और इसे लिखा है फ़ैयाज़ हाशमी ने.. लीजिये सुनिये।









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एक नया अनमोल जीवन मिल गया, मिल गया
हार की बांहे गले में पड़ गई
क्या हुआ गर चार आँखे लड़ गई
क्या गया गर दिल के बदले दिल गया
एक नया अनमोल जीवन

प्रेम अब छाया है मन के गाँव में
एक सुनहरा है कमल इस छाँव में
खुल के वो मुझसे मिली ये खिल गया
एक नया अनमोल जीवन

मेरे दिन में रात में आई बहार
वो जो आई साथ में लाई बहार-२
दिल जो गया तो दर्द भी शामिल गया-२
एक नया अनमोल जीवन


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