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Wednesday 28 November, 2007

प्रिय पापा आपके बिना.......

आज महफिल में एक बेटी का दर्द.....

हमारे साहित्य में माता को बहुत सम्मान दिया गया है, उतना शायद पिता को नहीं मिलता। परन्तु बेटियाँ पिता की ज्यादा प्यारी होती है। शायद सभी महिलाएं इस बात से सहमत होंगी... सांभळो छो लावण्या बेन..?

आज गुजराती साईट्स को खोजते समय अचानक ही एक बहुत ही मधुर गुजराती गीत मिल गया। यह गीत सुरत के प्रसिद्ध साईकियाट्रिस्ट और कवि डॉ मुकुल चोकसी ने लिखा है। मुकुल चोकसी के पिता मनहर लाल चोकसी भी गुजराती के सुप्रसिद्ध कवि थे।

प्रस्तुत गीत में एक बेटी अपने विवाह के बाद सुसराल में अपने पिता को याद करते हुए कह रही है .. प्रिय पप्पा हवे तो तमारा वगर. मनने गमतो नथी गाम, फळीयु के घर... यानि प्रिय पापा आपके बिना मेरे मन को कुछ भी अच्छा नहीं लगता ना गाँव, ना मोहल्ला और ना घर। प्रस्तुत गीत जब मैने पहली बार सुना इतना पसन्द आया कि कई बार सुनते ही रहा और यकीन मानिये अंतिम पंक्तियों को सुनते समय आंख से आंसु निकल आये। मैने फटाफट अपने गुजराती चिट्ठे पर लिखा कि मुझे इस गीत के बारे में जानकारी चाहिये, परन्तु किसी का जवाब नहीं मिला। आखिरकार मैने खुद ही कई घंटों की मेहनत के बाद इसे ढूंढ निकाला। यह गीत मिला एक गुजराती ब्लोग पर और वह भी प्लेयर के साथ। मैं जयश्रीबेन का धन्यवाद करना चाहता हूँ कि उन्होने इस गीत को टहुको नामक सुप्रसिद्ध गुजराती ब्लॉग पर लगाया, और आखिरकार यह हिन्दी के पाठकों और श्रोताऒं के लिये सुलभ हो सका।

मैं गुजराती के साथ उनका सरल हिन्दी अनुवाद लिख रहा हूँ, आशा है आपको यह गीत बहुत पसन्द आयेगा। यह गीत नयना भट्ट ने गाया है और इसके प्रतिभावान संगीतकार हैं सुरत के ही... मेहुल सुरती।


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પ્રિય પપ્પા હવે તો તમારા વગર
પ્રિય પપ્પા હવે તો તમારા વગર
(प्रिय पापा आपके बिना)
મનને ગમતું નથી, ગામ ફળિયું કે ઘર
(मन को कुछ अच्छा नहीं लगता गाँव, मोहल्ला और घर)
આ નદી જેમ હું પણ બહુ એકલી
( इस नदी की तरह मैं भी बहुत अकेली हूँ)
શી ખબર કે હું તમને ગમું કેટલી
( क्या पता मैं आपकी कितनी लाड़ की हूँ)
આપ આવો તો પળ બે રહે છે અસર
( आप जब आते हो तो पल दो पल असर रहता है)
જાઓ તો લાગે છો કે ગયા ઉમ્રભર
( जाते हो तो यों लगता है कि उम्रभरके लिये जा रहे हों)
…મનને ગમતું નથી, ગામ ફળિયું કે ઘર …
યાદ તમને હું કરતી રહું જેટલી
( आपको मैं जितनी याद करती हूँ)
સાંજ લંબાતી રહે છે અહીં એટલી
( यहाँ शाम उतनी ही लंबी होती जाती है)
વ્હાલ તમને ય જો હો અમારા ઉપર
( अगर आपको हम पर लाड़ हो)
અમને પણ લઇને ચાલો તમારે નગર
( तो हमें भी ले चलो अपने/आपके नगर)
…મનને ગમતું નથી, ગામ ફળિયું કે ઘર …

यहाँ व्हाल शब्द का अनुवाद लाड़ लिखा है... क्यों कि शायद प्रेम शब्द उतना सही नहीं होता। पिता पुत्री के बीच में जो नेह का नाता होता है उसके लिये यही शब्द ज्यादा सही लगा मुझे।

Tuesday 20 November, 2007

मशहूर गायक जिन्हें अंतिम दिनों में भीख तक मांगनी पड़ी

पिछले दिनों मेरे अनुरोध पर यूनुस भाई ने अपने लेख में हमें बताया कि किस तरह मशहूर संगीतकार रामलाल ने मुफलिसी में अपने अंतिम दिन गुजारे। मैने नेट पर इस तरह के अन्य गायकों के बारे में जानकारी पाने की कोशिश की तो नलिन शाह के एक लेख से कई ऐसे गायक संगीतकारों के बारे में पता चला जिन्होने अपने अंतिम दिन भीख मांगते हुए गुजारे।

मशहूर अभिनेता मास्टर निसार जिन्होने फिल्म शीरी फरहाद 1931 से लोगों को अपनी मधुर आवाज से लोगों को दीवाना बनाया, अपने जीवन के अंतिम दिन ब्रेड के एक-एक टुकड़े के लिये भीख मांगते हुए गुजारे। आपने राजकुमारी का नाम तो सुना ही होगा जिन्होने महल फिल्म में घबरा जो हम सर को टकरा दें तो अच्छा हो और बावरे नैन के सुन बैरी सच बोल जैसे सुन्दर गीत गाये थे, और फिल्म जगत में अपनी आवाज से छा गई थी, अंतिम दिनों में बहुत गरीबी में लगभग भिखारी की तरह गुजारे। मास्टर परशुराम ने फिल्म दुनिया ना माने 1937 में भिखारी का रोल निभाया और मन साफ तेरा है या नहीं पूछ ले दिल से गाना गाया, बाद में अपनी असली जिंदगी में भिखारी बने।

रतन बाई जो फिल्म भारत की बेटी फिल्म में तेरे पूजन को भगवान बना मन मंदिर आलीशान जैसा गाना गाकर प्रसिद्ध हुई अपने आखिरी दिनों में हाजी अली की दरगाह के बाहर भीख मांगती पाई गई। मशहूर संगीतकार खेमचन्द्र प्रकाश जी की दूसरी पत्नी भी मशहूर संगीतकार नौशाद को भीख मांगती मिली। कहीं पढ़ा था कि हमराज फिल्म की सुन्दर नायिका विम्मी के अंतिम दिन भी बहुत बुरे गुजरे। भारत भूषण और भगवान दादा जैसे सुपर स्टारों का हाल भी बहुत बुरा हुआ।

मैं इस लेख में खास जिनका जिक्र करना चाह रहा हूँ वे थे मशहूर संगीतकार एच खान मस्ताना (H. Khan Mastana) जिन्होने मोहम्मद रफी साहब के साथ फिल्म शहीद में वतन की राह में वतन के नौजवां शहीद हो जैसे कई शानदार गीत गाये और मुकाबला 1942 जैसी कई फिल्मों में संगीत भी दिया; एक दिन मोहम्मद रफी साहब को हाजी अली की दरगाह के बाहर भीख मांगते मिले। मैं आज आपको उनके गाये दो गाने सुनवा रहा हूँ जिनमें एक तो यही है वतन की राह... इस गीत के संगीतकार गुलाम मोहम्मद हैं।

वतन की राह में

दूसरा गाना फिल्म मुकाबला 1942 का है गीत के बोल हैं हम अपने दर्द का किस्सा सुनायें जाते हैं। गीतकार एम करीम और संगीतकार खुद खान मस्ताना हैं।

Friday 16 November, 2007

चार महान गायकों के पहले गाने

 

मित्रों, आज महफिल में प्रस्तुत है हिन्दी फिल्मों के चार महान गायकों के गाये हुए पहले गाने। ये गाने क्रमश: मुकेश, मोहम्मद रफी लता मंगेशकर और किशोरकुमार ने गाये हैं।

मुकेश जी के बारे में कहा जाता है कि उन्होने स्व. कुन्दन लाल सहगल की शैली में अपना पहला गाना गाया तब सहगल साहब ने उन्हें बुला कर समझाया और अपनी खुद की आवाज में गाने की सलाह दी, और बाद में मुकेश ने अपनी शैली में  गाना शुरु किया। यहाँ प्रस्तुत गाना जो पहली नजर फिल्म (1945) का है, इस फिल्म  का संगीत दिया है मेरे पसंदीदा संगीतकार  अनिल बिश्वास ने और फिल्म के गीतकार हैं आह सीतापुरी। फिल्म में मुख्य भूमिका थी मोती लाल की।

इस गाने को पहली बार सुनने पर एक बार तो यही लगता है कि यह स्व. सहगल साहब ने ही गाया होगा।

आंसू ना बहा ना फरियाद ना कर दिल जलता है तो जलने दे....

 

दूसरा गाना स्व. मोहम्म्द रफी ने गाया है, ए आर कारदार की  फिल्म पहले आप (1944) के लिये।  मोहम्मद रफी ने इससे बाद  फिल्म  शाहजहाँ (1946) स्व. कुन्दन लाल सहगल के गाये गाने रूही रूही मेरे सपनों की रानी में  कोरस के रूप में रूही रूही रूही  मेरे सपनों की रानी पंक्तियां गाई थी। फिलहाल आप सुनिये हिन्दुस्तां के हम हैं हिन्दुस्तां हमारा।

हिनदुस्तां के हम है हिन्दुस्तां हमारा

 

तीसरा गाना स्वर कोकिला लता मंगेशकर का गाया हुआ है। लता जी ने यह गाना फिल्म आपकी सेवा में (1946)  उसए पहले  लता जी ने मराठी  फिल्म Pahili Mangalagaur (1942) अभिनय भी किया था। यानि हिन्दी फिल्मों के तीन महान गायकों की पहली फिल्म में पहला शब्द   किसी ना किसी रूप में जुड़ा रहा।

इस गाने का ओडियो उतना स्पष्ट नहीं है, इसलिये हो सकता है कि आपको उतना आनन्द नहीं आये, परन्तु लता मंगेशकरजी का पहला गाना सुनना कौन नहीं चाहेगा?

पाँव लागे कर जोरी रे...

 

इस कड़ी का अन्तिम और मस्तमौला कलाकार किशोर कुमार का गाया हुआ पहला गाना प्रस्तुत है। किशोर कुमार , सहगल साहब के बहुत बड़े प्रशंषक थे और शायद इसी वजह से अपने गायन कैरियर के शुरुआती दौर में उन्के गाये गाने  में स्व. सहगल साहब की शैली सुनाई देती है। ( खासकर इस पहले गाने में)

यह गाना किशोरकुमार ने फिल्म जिद्दी 1948 के लिये गाया था। इस के संगीत निर्देशक थे स्व. खेम चन्द्र प्रकाश और मुख्य भूमिकायें निभाई थी देवानन्द और कामिनी कौशल  ने।

मरने की दुवायें क्यों मांगू, जीने की तमन्ना कौन करे....

तो बताईये आपको कौन कौनसे गाने अच्छॆ लगे?

 

 

चिट्ठाजगत Tag: गाना, हिन्दी फिल्म

 

 

 

 

 

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