अकेले में वो घबराते तो होंगे:शर्मा जी यानि खै़याम साहब का संगीतबद्ध गीत
मधुर संगीत के दौर की आखिरी कड़ी थे ख़ैयाम साहब, इस फ़ानी
दुनिया को अलविदा कह गए। रहमान वर्मा के
साथ मिलकर ख़ैयाम साहब ने “शर्माजी-वर्माजी के नाम से जोड़ी बनाई और 1948 में हीर रांझा फिल्म में संगीत दिया और गाना भी गाया “दिल
यूं-यूं करता है”! बाद में वर्माजी यानि
रहमान वर्मा ने पाकिस्तान जाना पसन्द किया और वहाँ बड़े संगीतकार बने और शर्माजी
यानि खैय्याम साहब यहाँ रह गए।
शर्मा जी के नाम से
ख़ैयाम साहब ने कुछ फिल्मों में गाने भी गाए जो बहुत प्रसिद्ध नहीं हुए जैसे –
रसीली फिल्म का गीत “नेह लगा के मुख मोड़
गया” जो उन्होने गीतारॉय के साथ गाया था इसके संगीतकार थे –हनुमान प्रसाद।
ख़ैयाम साहब ने बहुत कम फिल्मों में संगीत दिया पर जितना भी
काम किया उत्कृष्ट काम किया। ज्यादातर सुनाई देता रहता है। पर कुछ गीत ऐसे भी हैं
जो कभी सुनाई नहीं देते जैसे – आशा भोंसले का गाया हुआ फिल्म “धोबी डॉक्टर” का “पीहू पीहू बोले पपीहरा, आजा बदली के
संग मोरा जिया डोले रे” एवं “झिलमिल
झिलमिल तारे नील गगन में प्यार मेरे मन में झिलमिल”।
शर्मा जी- वर्माजी की जोड़ी के बाद भी भी उन्होने धनीराम के साथ मिलकर गुलबहार 1954में संगीत दिया। तलत महमूद साहब के
प्रशंसकों में से भी बहुतों ने गीत “गर
तेरी नवाजिश हो जाए” और तातार का चोर 1955 का गीत “कफ़स में
डाला मुझेअपने राज़दारों नें” जैसे गीत नहीं सुने होंगे।
एक गीत जो अपने दौर में बहुत हिट हुआ लेकिन आजकल कम सुनाई देता है और वह है “अकेले में वो घबराते तो होंगे-मिटा के मुझको पछताते तो होंगे” फिल्म थी 1950में बनी “बीवी”, गीतकार थे वली साहब और संगीतकार थे वे ही जिनका जिक्र उपर किया- शर्माजी-वर्माजी!
एक गीत जो अपने दौर में बहुत हिट हुआ लेकिन आजकल कम सुनाई देता है और वह है “अकेले में वो घबराते तो होंगे-मिटा के मुझको पछताते तो होंगे” फिल्म थी 1950में बनी “बीवी”, गीतकार थे वली साहब और संगीतकार थे वे ही जिनका जिक्र उपर किया- शर्माजी-वर्माजी!
अकेले में वो घबराते तो होंगे
मिटा के मुझको
पछताते तो होंगे
हमारी याद आ जाती तो होगी
अचानक वो तड़प जाते तो होंगे
वो दिन हाय, वो दिन हाय रे वो दिन
वो दिन उन को भी याद आते तो होंगे
पतंगे अपने दोनों पर जला कर
हमारी याद दिलवाते तो होंगे
अकेले में
6 टिप्पणियाँ/Coments:
सागर भाई, हमेशा की तरह ख़ैयाम साहब के भी अनसुने गीतों को हमारे तक पहुँचाने का शुक्रिया. इस गीत में भी उनकी वही झलक दिखाई देती है-कम साजों का मधुर उपयोग.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 24वीं पुण्यतिथि - सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
श्रद्धांजलि !
@डॉ. अजीत कुमार
बहुत बहुत धन्यवाद अजित भाई जी।
@HARSHVARDHAN
बहुत बहुत धन्यवाद हर्षवर्धन जी।
@गगन शर्मा, कुछ अलग सा
विनम्र श्रद्धान्जलि - नमन
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