कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिये है
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगने के लिये है
स्व. मुकेश जी को पुण्य तिथी पर हार्दिक श्रद्धान्जली। आज मैं आपको मुकेशजी की गाई एक नायाब गैर फिल्मी गज़ल सुना रहा हूँ। इस गज़ल को लिखा है जानिंसार अख्तर ने और संगीत दिया है खैयाम साहब ने।
आईये सुनते हैं।
अशआर मेरे यूं तो ज़माने के लिये है
कुछ शेर फ़कत उनको सुनने के लिये है
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिये है
आँखो में जो भर लोगे तो काँटो से चुभेंगे
ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के लिये है
देखुं जो तेरे हाथों को लगता है तेरे हाथ
मन्दिर में फ़कत दीप जलने के लिये है
सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की
वर्ना तो बदन आग बुझाने के लिये है
कुछ शेर फ़कत उनको सुनने के लिये है
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिये है
आँखो में जो भर लोगे तो काँटो से चुभेंगे
ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के लिये है
देखुं जो तेरे हाथों को लगता है तेरे हाथ
मन्दिर में फ़कत दीप जलने के लिये है
सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की
वर्ना तो बदन आग बुझाने के लिये है
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12 टिप्पणियाँ/Coments:
बेमिसाल !
बहुत ही खुब सुरत जी, धन्यवाद इस अति सुंदर गजल को सुनाने केलिये
सागर ,आपके प्रेम के कारण मुझे भी खजाना मिल गया था। फ़कत दीप ’जलाने ’ के लिए होना चाहिए। सुन्दर पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई।
DHANYAWAD BHAI SAHEB............
kya kahun ! DIL khus kar diya
बहुत ही खूबूसूरत !!
मज़ा आ गया....
Sagar Bhai,
This is a wonderful selection.
I am not much of a Mukesh fan but love his non filmy ghazals and the combination of Mukesh and Salil Chowdhury.
बहुत अच्छा लगा सुन कर।
Sagarji... bahot hi khoobsoorat ghazal...though i m not a big fan of Mukeshji, it was a very good feel listening to this rare gem....
abhinandan sagarji...
सालों बाद सुनी, शुक्रिया....
कमाल की रचना है ! गज़ब ....
शुभकामनायें आपको !
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