संभव है कि होम पेज खोलने पर इस ब्लॉग में किसी किसी पोस्ट में आपको प्लेयर नहीं दिखे, आप पोस्ट के शीर्षक पर क्लिक करें, अब आपको प्लेयर भी दिखने लगेगा, धन्यवाद।

Wednesday, 6 April 2011

एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं

रफी साहब की एक दुर्लभ गज़ल
आज आपके लिए मो. रफी साहब की एक दुर्लभ गैर फिल्मी गज़ल, इसे लिखा है सुदर्शन फ़ाकि़र ने और संगीतकार के बारे में जानकारी नहीं है। अगर आप इस गज़ल के संगीतकार के बारे में जानते हैं तो टिप्पणी लिख कर बताईये। मैं उसे बाद में पोस्ट में जोड़ दूंगा।


एक ही बात जमाने की किताबों में नहीं
जो ग़म-ए-दोस्त में नशा है शराबों में नहीं
एक ही बात
हुस्‍न की भीख ना मांगेगे, ना ज़लवों की कभी-2
हम फ़कीरों से मिलो, खुल के, हिज़ाबों में नहीं
एक ही बात

हर जगह फिरते है, आवारा खयालों की तरह-2
ये अलग बात है, हम आपके ख्वाबों में नहीं-2
एक ही बात

ना डुबो सागर-ओ-मीना में, ये गम ए "फ़ाकिर"
के मकाम इनका दिलों में है, शराबों में नहीं
एक ही बात जमाने की किताबों में नहीं
एक ही बात

पिछली पोस्ट में दानिश साहब ने पूछा था कि क्या ये वही वली मोहम्म्द साहब हैं जिन्होने गाँव की गोरी के गीत लिखे थे? मेरी जानकारी में ये वली साहब गीतकार नहीं है। विकीपीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार वली मोहम्म्द साहब सिर्फ गायक ही थे। फिर भी यूनुस भाई शायद ज्यादा जानकारी दे सकें।
इसी पोस्ट में प्रवीण जी ने दीवाना फिल्म के गीत तीर चलाते जायेंगे की फरमाईश की थी उनके लिए यह वीडियो हाजिर है।

7 टिप्पणियाँ/Coments:

प्रवीण पाण्डेय said... Best Blogger Tips[Reply to comment]Best Blogger Templates

हम फकीरों से खुल के मिलो।

AVADH said... Best Blogger Tips[Reply to comment]Best Blogger Templates

सागर भाई,
उस्ताद हबीब वली मोहम्मद केवल गायक ही थे. गीतकार नहीं.
अवध लाल

AVADH said... Best Blogger Tips[Reply to comment]Best Blogger Templates

एक ज़माने के बाद यह ग़ज़ल सुनी.
वाह, सागर भाई, वाह! मज़ा आ गया.
बहुत बहुत शुक्रिया.
अवध लाल

daanish said... Best Blogger Tips[Reply to comment]Best Blogger Templates

एक अरसे के बाद सुनने को मिली
ये नायाब ग़ज़ल ... वाह !
"कि मक़ाम इनका दिलों में है, शराबों में नहीं...."
सुन कर अछा भी लगता है,, और हैरत भी होती है
शराबों का गहरा दोस्त होते हुए
कोई ऐसी यादगार बात कह जाए तो....
सुदर्शन फाकिर साहब को सलाम .
और ... जहां तक याद पड़ता है
इस ग़ज़ल को जनाब ताज अहमद खान साहब ने
अपने संगीत से संवारा था.....
पिछली पोस्ट के बारे में
जानकारी के लिए अवध लाल जी का शुक्रिया.

Parasmani said... Best Blogger Tips[Reply to comment]Best Blogger Templates
This comment has been removed by the author.
Parasmani said... Best Blogger Tips[Reply to comment]Best Blogger Templates

पहेले कभी नहीं सुनी. शायरी तो पसंद आयी मगर रफ़ी साहब का अंदाझ-ऐ-बयां भी लाजवाब है.
मेरी पसंद...
हर जगह फिरते हैं, आवारा ख़यालों की तरह
ये अलग बात है, हम आपके ख़्वाबों में नहीं

Chandra Kishore Bairagi, Ujjain (MP) said... Best Blogger Tips[Reply to comment]Best Blogger Templates

बहुत मीठी ग़ज़ल है, इसके संगीतकार थे - ताज अहमद खान .

Post a Comment

आपकी टिप्प्णीयां हमारा हौसला अफजाई करती है अत: आपसे अनुरोध करते हैं कि यहाँ टिप्प्णीयाँ लिखकर हमें प्रोत्साहित करें।

Blog Widget by LinkWithin

गीतों की महफिल ©Template Blogger Green by Dicas Blogger.

TOPO