"मै रोया परदेस मे भीगा माँ का प्यार ।" - जगजीत सिंह जी के गाये हुये कुछ खूबसूरत दोहे !
आसपास घटने वाली कुछ घटनायें मन मे अमित प्रभाव छॊड देती हैं । बात है तो बहुत साधारण सी लेकिन एक नन्हें से बालक का प्रशन और उसके पिता का उत्तर शायद बहुतों के लिये सोचने का सबब बन सके । कल दोपहर क्लीनिक मे जब जोहर की अजान का स्वर पास वाली मस्जिद से उभरा तो मेरे सामने बैठे एक नन्हें से बालक ने अपने पिता से पूछा कि यह क्या कह रहे हैं । उसके पिता ने उसको अपनी गोदी मे बैठाते और समझाते हुये कहा कि जैसे हम घर मे पूजा करने के लिये सबको बुलाते हैं वैसे ही यह भी पूजा करने के लिये ही बुला रहे हैं । एक छोटी सी बात मे उस बालक की जिज्ञासा पर विराम सा लग गया । गाड , अल्लाह , ईशवर , भगवान नाम अनेक लेकिन मकसद सिर्फ़ एक । सत्य की खोज । उपासना के ढंग और रास्ते अलग –२ हो सकते हैं , लोगों के मन मे उनकी छवियाँ अलग-२ हो सकती हैं लेकिन सत्य सिर्फ़ एक ।
जगजीत सिंह की गायी और निदा फ़ाजली द्वारा लिखी गयी यह नज्म (दोहे) मुझे बहुत पसन्द है।
मै रोया परदेस मे भीगा माँ का प्यार ।
दु:ख मे दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार ॥
छोटा कर के देखिये जीवन का विस्तार ।
आँखो भर आकाश है बाँहों भर संसार ॥
ले के तन के नाप को घूमें बस्ती गाँव ।
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव ॥
सब की पूजा एक सी अलग- 2 हर रीति ।
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत ॥
पूज़ा घर मे मूर्ति मीरा के संग शयाम ।
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम ॥
नदिया सींचें खेत को तोता कुतरे आम ।
सूरज ढेकेदार सा सबको बाँटे काम ॥
साँतों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर ।
जिस दिन सोये देर तक भूखा रहे फ़कीर ॥
अच्छी संगत बैठ कर संगी बदले रूप ।
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गयी धूप ॥
सपना झरना नींद का जाकी आँखीं प्यास ।
पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास ॥
चाहिये गीता बाँचिये या पढिये कुरान ।
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान ॥
11 टिप्पणियाँ/Coments:
बहुत अच्छा लग रहा है सुनते हुये।सुनते हुये टिपिया रहे हैं। कोई भरोसा नहीं किसी का कि हम सुनते रह जायें और कोई हमसे पहिले टिपिया के चला जाये।
डा साब क्या चीज़ लगाई है। बहुत खूब लिखा और गाया गया है।
मै रोया परदेस मे भीगा माँ का प्यार ।
दु:ख मे दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार ॥
बहुत ही सुन्दर गीत,लगता हे यह मेरे जेसो के लिये ही लिखा हे.
धन्यवाद
बहुत खूबसूरत है भाई. क्या बात है. मन प्रसन्न कर दिया .... हर सुबह की शुरुआत यूं ही हो तो क्या कहने ... वाह !
बहुत सुंदर है यह ..सुनवाने का शुक्रिया
प्रभात जी ये नज़्म नही है है निदा साहब के दोहे हैं, यकीनन जगजीत जी के बहतरीन संग्रह में से एक ....
मै रोया परदेस मे भीगा माँ का प्यार ।
दु:ख मे दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार ॥
छोटा कर के देखिये जीवन का विस्तार ।
आँखो भर आकाश है बाँहों भर संसार ॥
शानदार पेशकश है...
पूज़ा घर मे मूर्ति मीरा के संग शयाम ।
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम ॥
बहुत सुंदर ! आत्मा प्रशन्न हो गई ! आपको
बहुत धन्यवाद !
वाह डॉ साहब पहली ही पोस्ट में महफिल लूट ली आपने।
बधाई एक तो महफिल में पहली पोस्ट के लिये और दूसरी इतने बढ़िया दोहे सुनवाने के लिये।
मेरे भी सबसे पसंदीदा दोहों में से है ये।
ultimate gazal
ultimate gazal
Post a Comment
आपकी टिप्प्णीयां हमारा हौसला अफजाई करती है अत: आपसे अनुरोध करते हैं कि यहाँ टिप्प्णीयाँ लिखकर हमें प्रोत्साहित करें।