सेक्सोफोन और बांसुरी पर राग मालकौंस: जुगलबन्दी
रोज आपको महफिल में फिल्मी गीत और गज़ले सुनाते रहे, कल संजय भाई ने एक तराना ऐसा सुना दिया की पूरे दिन तन मन पर वही छाया रहा। पता नहीं कितनी बार उसे सुना। फिर याद आया एक तराना ये तराना जो कर्नाटक शैली की सुप्रसिद्ध जोड़ी कादरी गोपालनाथ और प्रवीण गोदखिन्दी Kadri Gopalnath & Pravin Godkhindi ( उच्चारण में गलती हो तो क्षमा करें)
इस तराने के लिये दोनो कलाकारों ने सेक्सोफोन और बांसुरी पर जुगलबंदी की है। यह तराना सुनने के लिये आपको १४ मिनिट खर्च करने होंगे, क्यों कि बीच में द्रुत लय में सुन्दर आलाप भी है; हो सकता है कि १४ मिनिट आपके लिये बहुत ज्यादा हो परन्तु मुझे विश्वास है कि इस जुगलबंदी को सुनने के बाद आपको जो आनन्द मिलेगा वह बहुत बढ़िया होगा, आपको यह नहीं लगेगा कि टाइम खोटी किया।
हाँ पूरा आनन्द लेने के लिये पूरी जुगलबंदी सुननी होगी। देखते हैं आपको पसन्द आई तो खजाने में से कुछ और बन्दिशे निकालते हैं।
लीजिये सुनिये
चलते चलते
लखनऊ के डॉ प्रभात टण्डन भी अब महफिल के सदस्य हैं कल ही उनहोने जगजीत सिंह के गाये हुए और निदा फ़ाजली के लिखे दोहे पोस्ट किये है, आपने सुने कि नहीं? डॉ साहब का स्वागत है।
साथ ही नीरज भाई ने आशाजी के गाये हुए और मदनमोहन जी के संगीतबद्ध तीन सुन्दर गीत भी पोस्ट किये हैं, उन्हें भी जरूर सुनिये
7 टिप्पणियाँ/Coments:
waah time well invested
thank u sir
बडे भईया... मजा आ गया... सच कहूँ तो मै गीत कम ही सुनती हूँ, ऐसे तराने ज्यादा सुनती हूँ, अब तो रोज का इंतजार रहेगा :)
लाजाबबाब !!
जलतरंग वादन भी कभी सुनवाएं तो मजा आए.
बहुत सुंदर! आनंद आ गया!
bahut hi sundar
dhanywaad
क्या बात है. कर्नाटक शैली में भी बडी विविधता है. इस तराने में आनंदित किया. बीच में कुछ सुरों के गुच्छे परिचीत लगे. कब १४ मिनीट निकल गये पता नही चला. ऐसे संगीत के टुकडे ज़रूर सुनाया करें.
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