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Thursday 30 August, 2007

कुछ और ज़माना कहता है, कुछ और है जिद मेरे दिल की

कुछ वर्षों पहले रविवार की सुबह सुबह दूरदर्शन पर रंगोली देखने का मजा ही कुछ और था। धीरे धीरे केबल टी वी आया और दिन रात फिल्म फिल्म होने लगा तब से टी वी से उब हो गई। ऐसे मैं लगबग दस बारह साल पहले एक दिन मैं रंगोली देख रहा था एक गाना शुरु हुआ और थोड़ी ही देर में करंट चला गया। गाने का कुछ ही अंश मैं सुन पाया पर उस अंश ने इतना बैचेन कर दिया कि मैं पता लगाने लगा कि आखिर वह गाना था कौनसा? क्यों कि वह आवाज लता , आशा, गीता दत्त, शमशाद बेगम, मुबारक बेगम आदि किसी भी जानी मानी गायिका की नहीं थी।
अब ऐसे तो कैसे पता चलता फिर याद आया कि उस गाने में नादिराजी नाव में बैठी गा रही थी। बस इतना सा क्लू था और गाने की वह लाईन "या बात सुनुँ अपने दिल की" बस इन दो क्लू पर बहुत मेहनत करने पर मुझे वह गाना मिला और वह था मीना कपूर की आवाज में गाया हुआ गाना : कुछ और जमाना कहता है, कुछ और है जिद मेरे दिल की" मैने उस गाने को ओडियो कैसेट में रिकार्ड करवाया और उसे एक ही दिन में इतनी बार सुना कि बार रिवाईन्ड करने की वजह से कैसेट खराब हो गई ।
कुछ दिनों पहले नैट पर से उस गाने को फिर से मैने ढूंढ़ निकाला जिसे मैं आज आप सबके लिये पेश कर रहा हूँ।
मीना कपूर अनिल विश्वास की पत्नी थी। और उन्होने राजकपूर की गोपीनाथ में सारे गाने गाये थे। उनकी आवाज उस जमाने की स्थापित गायिकाऒं से कहीं उन्नीस नहीं थी पर जैसा होता आया है उगते सूरज को सलाम सब करते है। मीनाजी ने ज्यादा गाने नहीं गाये। जितने गाये वे सब अपने आप में लाजवाब हैं।
प्रस्तुत गाना फिल्म छोटी छोटी बातें 1965 का है फिल्म के निर्देशक और मुख्य अभिनेता स्वयं मोती लाल थे और फिल्म की नायिका थी नादिरा।

खैर बातें बहुत कर ली अब गाना सुन लेते हैं। पिछले कुछ गाने कुछ ज्यादा ही पुराने हो गये थे पर मुझे विश्वास है कि आपको यह गाना जरूर पसन्द आयेगा क्यों कि यह बहुत ज्यादा पुराना नहीं है। और मीना कपुर की आवाज के तो क्या कहने ???

MeenaKapoor-KuchhA...



कुछ और ज़माना कहता है,
कुछ और है जिद मेरे दिल की
मैं बात ज़माने की मानूँ,
या बात सुनूँ अपने दिल की
कुछ और ज़माना कहता है

दुनिया ने हमें बेरहमी से
ठुकरा जो दिया, अच्छा ही किया
नादान हम समझे बैठे थे
निभती है यहाँ दिल से दिल की
कुछ और ज़माना कहता है

इन्साफ़, मुहब्बत, सच्चाई
वो रहमो करम के दिखलावे
कुछ कहते ज़ुबाँ शरमाती है
पूछो न जलन मेरे दिल की
कुछ और ज़माना कहता है

गो बस्ती है इन्सानों की
इन्सान मगर ढूँढे न मिला
पत्थर के बुतों से क्या कीजे
फ़रियाद भला टूटे दिल की
कुछ और ज़माना कहता है


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Tuesday 28 August, 2007

ये किसके इशारे जहाँ चल रहा है?

हेमंत कुमार संगीतकार के रूप में जितनी मधुर धुनें दी ही थी बतौर गायक उतने ही मधुर गाने गायेयहाँ प्रस्तुत गाना फिल्म पहली झलक (१९५४) का है फिल्म का संगीत दिया है सी रामचन्द्र ने और गीतकार है, राजेन्द्र कृष्णइस सुन्दर गाने में वाद्य यंत्रों का उपयोग बहुत कम हुआ है पर संगीतकार सी रामचन्द्र ने बांसुरी और तबले का उपयोग बहुत ही खूबसूरती से किया हैगाने के बोल नीचे दिये है

ज़मीं चल रही आसमां चल रहा है
ये किसके इशारे जहाँ चल रहा है
ज़मीं चल रही है...

चली जा रही है जमाने की नय्या
नजर से ना देखा किसी ने खेवैया
ना जाने ये चक्कर कहाँ चल रहा है
ये किसके इशारे ...

ये हंसना ये रोना ये आशा निराशा
समझ में ना आये ये क्या है तमाशा
ये क्यों रात दिन कारवां चल रहा है
ये किसके इशारे ...

अजब ये महफ़िल अजब दास्तां है
ना मंजिल है कोई ना कोई निशां है
तो फिर किसके लिये कारवां चल रहा है
ये किसके इशारे....

भटकते तो देखे हजारों सयाने
मगर राज कुदरत का कोई ना जाने
ये सब सिलसिला बेनिशां चल रहा है
ये किसके इशारे जहाँ चल रहा है

Zameen Chal Rahi.m...


यह गाना पहले यहाँ प्रकाशित
किया था पर पोडकास्ट की फीड में कुछ तकलीफ थी अत: किसी एग्रीग्रेटर पर यह जुड़ नहीं पाया, फिर ब्लॉगस्पॉट पर नई महफिल सजानी पड़ी ।



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Monday 27 August, 2007

क्या आपने मुबारक बेगम का यह गाना सुना है ?

आज आपको एक ऐसी गायिका की आवाज में गाना सुनवाने जा रहा हूँ जिनको हिन्दी फिल्म जगत में उतनी सफलता नहीं मिल पाई जिसकी योग्यता उनमें थी। यानि मुबारक बेगम

मुबारक बेगम राजस्थान के झुंझनु जिले के सुजानगढ़ में जन्मी थी। जहाँ के प्रख्यात संगीतकार स्व. खेमचन्द्र प्रकाश थे। मुबारक बेगम ने शास्त्रीय संगीत की तालीम उस्ताद अब्दुल करीम खान के भतीजे समर खान रियाजुद्दीन खान से ली ,जो कि किराने घराने के थे। बाद में ऑल इण्डिया रेडियो पर गाने लगी और रेडियो पर एक बार रफीक गजनवी साहब ने उन्हें सुना और उन्हें अपनी फिल्म में गाने का आमंत्रण दिया। और जब मुबारक ने गाने की कोशिश की तो घबराहट के मारे गा ही नहीं पाई। उसके बाद श्याम सुन्दर जी ने उन्हें मौका दिया पर यहाँ भी मुबारक असफल रही।

मुबारक बेगम का पहला गाना फिल्म आईये 1949 से था जिसमें उन्होने दो गाने गाये जिसमें एक था मोहे आने लगी अंगड़ाई.. और दूसरा लताजी के साथ ड्यूएट था और उसके बोल थे आओ चले चले वहाँ

और बाद में आई फिल्म दायरा 1953 जिससे मुबारक बेगम की गायकी बुलंदियाँ छूने लगी। इस फिल्म के सारे गाने मुबारक बेगम ने गाये थे। और उसी फिल्म का गाना मैं आपको यहाँ सुना रहा हूँ मुझे विश्वास है आपको यह गाना बहुत पसन्द आयेगा। संगीतकार थे जमाल सेन जो कि खुद भी राजस्थानी थे। बोल थे कैफ भोपाली। गाने में मुबारक का साथ दिया है रफी साहब ने।

फिल्म के निर्देशक थे कमाल अमरोही और इस में अभिनय किया था मीना कुमारी और नासिर खान। इस फिल्म में एक गाना और भी था सुनो मेरे नैना- सुनो मेरे नैना जो फिर कभी सुनाया जायेगा।

लीजिये सुनिये यह मधुर गाना ( या भजन)। यहाँ मैं जो आपको गाना सुना रहा हूं उसमें अंतिम दो पैरा नहीं है अगर किसी के पास हो तो कृपया बतायें या भेजें ताकि उसे भी यहाँ जोड़ा जा सके।

मुबारक बेगम के कुछ प्रसिद्ध गाने:
कभी तन्हाईयों में- हमारी याद आयेगी (स्नेहल भाटकर)
वो ना पलट के आयेंगे- देवदास ( एस डी बर्मन)
मुझको अपने गले लगालो - हमराही ( शंकर जयकिशन)
हम हाले दिल सुनायेंगे- मधुमति ( सलिल चौधरी)
नींद उड़ जाये तेरी चैन से सोने वाले - जुआरी ( कल्याणजी आनंदजी)
बे मुर्रवत बे वफा -सुशीला

फिल्म : दायरा 1953
कलाकार:मीना कुमारी, नासिर खान
गायिका -गायक: मुबारक बेगम ,मोहम्मद रफी एवं कोरस
संगीत: जमाल सेन
गीतकार: कैफ भोपाली

डाल दी मैं ने जल-थल में नय्या
जागना हो तो जागो खेवय्या
जागना हो तो जागो खेवय्या
देवता तुम हो मेरा सहारा मैं ने थामा है दामन तुम्हारा
कोरस: - देवता तुम हो मेरा सहारा मैं ने थामा है दामन तुम्हारा

थाम लो अपनी राधा को भगवान
रुक न जाये कहीं दिल की धड़कन
ये न कहने लगी कोई बिरहन
मूँह छुपाकर साँवरिया ने मारा
देवता तुम हो मेरा सहारा
कोरस: - देवता तुम हो मेरा सहारा मैं ने थामा है दामन तुम्हारा

मेरे नैनों को तुम ऐसे पाये
दो घड़ी मुझ को निंदिया न आये
मेरी आँखों से आँखों लड़ाये
डूबता है सवेरे का तारा देवता तुम हो मेर सहारा...
कोरस: - देवता तुम हो मेरा सहारा मैं ने थामा है दामन तुम्हारा
( इससे आगे का गाना यहाँ नहीं है)
मो .रफी: रैन भरी है गेहरा अँधेरा
हाथ ले लो तुम हाथों में मेरा
सो गये मंदिरों के पुजारी गूँजती है मुरलिया तुम्हारी -२
आत्मा झूमती है हमारी

मुबारक: दिल खिंचा जा रहा है हमारा
देवता तुम हो मेरा सहारा
कोरस: - देवता तुम हो मेरा सहारा मैं ने थामा है दामन तुम्हारा- २

मुबारक :छोड़ कर मैन न भगवान को जाऊँ
रात भर यूँ ही जागूँ जगाऊँ
गीत गा गा के रोऊँ रुलाऊँ
ये वचन लूँ के मैं हूँ तुम्हारा - २
मो. रफी: मैं हूँ तुम्हारा

Devata tum ho mera...


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Saturday 25 August, 2007

मैं तो दिल्ली से दुल्हन लाया रे - सरस्वतीदेवी का दुर्लभ गाना

मैं तो बम्बई से दुल्हन लाया रे।
महफिल की पहली कड़ी में अन्नपूर्णा जी ने फरमाईश की थी कि उन्हें सरस्वती देवी का गाना सुनाया जाये। अन्नपूर्णाजी ने बताया था कि सरस्वती देवी पहली महिला संगीतकार थी। जी यह बात बिल्कुल सही है; परन्तु आपने जिस गाने का जिक्र किया " चल चल रे नौजवान" यह फिल्म बंधन का है और इस फिल्म का संगीत सरस्वती देवी और राम चन्द्र पाल दोनों ने ही दिया था परन्तु चल चल रे का संगीत रामचन्द्र पाल ने दिया था।

सरस्वती देवी ने बहुत सी फिल्मों में संगीत दिया था, उनमें से प्रमुख है अछूत कन्या, झूला, बंधन , कंगन, नया संसार, जीवन नैया आदि प्रमुख है।

चल चल रे नौजवान तो जाना माना गाना है, लगभग यह गाना हम अक्सर रेडियो और टीवी पर सुनते हैं, पर मेरी कोशिश रहती है कि आपको दुर्लभ गाना सुनाऊं। आज इस कड़ी में आपके लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ झूला फिल्म का गाना - मैं तो बम्बई से दुल्हन लाया रे ए बाबूजी। आशा है अन्न्पूर्णा जी को यह गाना पसन्द आयेगा।

अगली कड़ियों में सरस्वती देवी के एक ऐसा गाने को सुनाने का प्रयास करूंगा जिसके संगीत से प्रेरणा ( या नकल ? ) ले कर राहुल देव बर्मन ने पड़ोसन फिल्म के एक चतुर नार, कर के सिंगार... की रचना की थी, और किशोर दा के इस गाये इस गाने ने धूम मचा दी थी और आज तक यह गाना, हिन्दी के सबसे हिट गानों में से एक माना जाता है।

आज जो गाना मैं सुना रहा हूँ वह फिल्म झूला 1941 का है और इसे अशोक कुमार तथा रहमत बानो ने गाया है। सबसे पहले गीत के बोल और बाद में गाना। गाना बहुत पुराना है और उस जमाने में साऊंड प्रूफ रिकार्डिंग स्टूडियो नहीं होती थी, अत: हो सकता है गाने की क्वालिटी आपको उतनी अच्छी ना लगे, पर गाना आपको जरूर पसन्द आयेगा।

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मैं तो दिल्ली से दुल्हन लाया रे ए बाबूजी
अ. कु. - मैं तो दिल्ली से दुलहन लाया रे ऐ बाबू जी -२
र. बा. - मेरा बम्बई से बालम आया रे ऐ बाबू जी -२
अ. कु.- मैं तो दिल्ली से दुलहन लाया रे ऐ बाबू जी

अ. कु. -बीवी मेरी नाज़ुक
र. बा. - सजन अलबेला -२
दोनों- नये ज़माने के मजनूं ओ लैला -२
सोने में सुहागा मिलाया रे ऐ बाबू जी-२

र. बा.- बाबू जी मैं हूँ सौदागर की छोरी -२
हाय सैंया ने कर ली मेरे धन की चोरी
अ. कु. - हें चोरी कैसी चोरी
र. बा.- इनने गुपचुप - इनने गुपचुप मेरा दिल चुराया रे ऐ बाबू जी -२
मेरा बम्बई से बालम आया रे ऐ बाबू जी

अ. कु. - बाबू जी इतनी अरज सुनो मोरी -२
अरे मैने कल ही तो दिल्ली में
इसके बाप का करजा चुकाया रे ऐ बाबू जी -२

र. बा.- मेरे बाप का नाम न लेना झूठों के सरदार
वरना ताना दूँगी गाली बीस हज़ार
देखो - देखो जी, देखो-देखो जी हज़ार
हमको छेड़ो ना बेकार
वरना मेरा भी गुस्सा सवाया रे ऐ बाबू जी -२

अ. कु. - प्यारी गुइयाँ आओ आओ सारी बातें भूल जाओ -२
र. बा. - बोलो मेरी क़सम,
अ. कु. - हाँ हाँ
र. बा. हाँ हाँ हाँ बोलों मेरी क़सम
अ. कु. हाँ हाँ तेरी क़सम
तेरे भाई की क़सम तेरी अम्मा की क़सम तेरे बाप की क़सम

दोनों- आज मौसम सलोना आया रे ऐ बाबू जी -२
आज मौसम सलोना - सलोना रे - हाँ सलोना रे
दिन सलोना रुत सलोनी मौसम सलोना रे
चमके चमाचम मेरे सपने -२ जैसे चांदी सोना रे
आज मौसम सलोना - सलोना रे
दिन सलोनी रुत सलोनी मौसम सलोना रे ..

संबधित पोस्ट तुम जाओ जाऒ भगवान बने, इन्सान बनों तो जाने


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Friday 24 August, 2007

ज्युथिका रॉय का गाया एक गाना - चुपके चुपके बोल

महफिल के इस अंक में आज मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ एक ऐसी गायिका की आवाज में गाया हुआ एक गाना जिन्हें आधुनिक मीरां भी कहा जाता था, मैं बात कर रहा हूँ पदम श्री ज्यूथिका रॉय की ज्यूथिका रॉय जी ने बहुत से फिल्मी और गैर फिल्मी गाने गाये परन्तु वे सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुई मीरां बाई के भजनों से। आपको इस महफिल के अगले अंको में ज्यूथिका जी के गाये मीरा के भजन भी सुनाये जायेंगे।

ज्यूथिका जी ने सात वर्ष की उम्र में गाना शुरु कर दिया था और मात्र १२ वर्ष की उम्र में तो उनका पहला भजन रिकार्ड भी हो चुका था। १५ अगस्त १९४७ को सुबह प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरू की गाड़ियों का काफिला तीन मूर्ति भवन से लाल किला की और जाने के लिये निकल चुका था और आल इण्डिया रेडियो के स्टूडियो में ज्युथिका जी अपना गाना समाप्त कर चुकी थी , तभी पं जवाहर लाल नेहरू जी का एक संदेश वाहक दौड़ता हुआ आया और नेहरू जी का सदेश उन्हें दिया की जब तके वे लाल किला तक झंडारोहण करने नहीं पहुँच जाते तब तक गाना जारी रखा जाये और ज्यूथिका जी ने वापस गाना शुरु किया सोने का हिन्दुस्तान...( The Telegraph 10th December 2005)

यानि ज्यूथिका रॉय के प्रशंषकों में महात्मा गांधी से लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरु तक थे। The Statesman के 6 अगस्त 2006 के अंक में अपनी महात्मा गांधी और सरोजिनी नाय़डू से मुलाकात का पूरा वर्णन किया है। अब ज्यादा ना लिखते हुए आपको सीधे गाने पर ले चलते हैं पहले गाने के बोल और बाद में गाना।

प्रस्तुत गाने का संगीत दिया है कमल दास गुप्ता ने,
और गाने में नायिका - मैना से चुप रह कर बोलने को कह कर अपने साजन की विरह व्यथा कह रही है। लीजिये इस मधुर गाने का आनन्द और टिप्प्णी से अवगत करायें कि आपको महफिल कैसी लगी?


चुपके चुपके बोल मैना, चुपके बोल
तू चुपके चुपके बोल , चुपके चुपके बोल
साजन कब घर आयेंगे
, मोरे साजन

मोरे साजन कब घर आयेंगे तू चुपके तू चूपके- तू चुपके चुपके बोल मैना, चुपके चुपके बोल


सोने की बिंदिया मोतियन माला, नथन(?) कब घर लायेंगे
तू चुपके तू चुपके
....

जरी की साड़ी, हाथ हाथ का कंगना कब मुझको पहनायेंगे
अपनी अपनी प्रेम की बतियाँ मिल जुल हम दोहरायेंगे
साजन कब घर आयेंगे
, तू चुपके ...

लुटी है भेद ये खुलने ना पाये ए मैना ,ना तेरे चेहरे(?)कोई रुलाये मैना
तू जानती है किस देस में वो साजन है
बता- बता दे मुझे चैन आये अ मैना
फिर ना बिसरने दूंगी उनको , चैन से दिन कट जायेंगे
साजन कब घर आयेंगे तू चुपके चुपके बोल
...

chupke chupke bol ...




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Tuesday 21 August, 2007

एक दुर्लभ गाना पहाड़ी सान्याल/ कानन देवी की आवाज में


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी"><span title=चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" title="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" border="0">

नमस्ते मित्रों! गीत संगीत की महफिल में आपका स्वागत है। यह जाल स्थल उन लोगों के लिये बनाया गया है जिन्हें भारतीय भाषाओं के पुराने और दुर्लभ गाने पसन्द हैं। जिसमें नामी और अनामी गायकों के और फिल्मी गैर- फिल्मी गाने भी शामिल होंगे। यह जाल स्थल निर्माण करने में गिरिराज जोशी ने बहुत सहायता की अत: उनका धन्यवाद।

इस महफ़िल के पहले अंक में एक बहुत ही दुर्लभ गाना प्रस्तुत कर रहे हैं।
पुराने गानों कभी प्रीलूड होता था जैसे आयेगा आने वाला से गाने से पहले खामोश है जमाना और एक मैं हूँ एक मेरी बेकसी की शाम है गाने से पहले जली जो शाखे चमन....। इस तरह कई गानों में पहले कुछ देर तक सिर्फ संगीत बजता था जैसे एक बंगला बने न्यारा। प्रस्तुत गाने में भी गाना शुरु होने से पहले कुछ देर तक संगीत ही बजता है और उसके बाद गायक गाना शुरु करते हैं।
जब तक आप गायकों की आवाज नहीं सुनेंगे विश्वास ही नहीं कर सकते कि यह गाना सन 1940 में बनी फिल्म का है। यानि एकदम पाश्चात्य संगीत सी धुन लगती है। कुछ हद तक यूं कहा जा सकता है कि हिन्दी फिल्म के गानों में पाश्चात्य संगीत का प्रभाव सबसे पहले आर सी बोराल ने शुरु किया।

प्रस्तुत गाना फिल्म हार जीत का है जिसे संगीतबद्ध किया है आर सी बोराल यानि राय चन्द बोराल ने और गाया है कानन देवी तथा पहाड़ी सान्याल ने। लीजिये लुत्फ उठाईये इस मधुर गाने का। मुझे विश्वास है कि नये गानों को पसन्द करने वालों को यह गाना निराश नहीं करेगा।

मस्त पवन शाख़ें, लहराये
बन हे मस्त पवन शाख़ें, लहरायें
बन-बन मोर पपीहे गायें
हे मस्त पवन शाख़ें, लहरायें
फूल,फूल -फूल पर भँवरे जायें
जाकर , प्रीत के, गीत सुनायें
फुल-फूल पर भँवरे जायें जाकर प्रीत के गीत सुनायें
जो हृदय में गीत है व्याकुल तू भी उसे सुना सुना-२
गा सजनवा गा सनवा गा सजनवा गा
मस्त पवन शाख़ें लहरायें बन-बन मोर पपीहे गायेंऽऽऽ
हे मस्त पवन शाख़ें


Mast pwan shakhen....



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