आ मुहब्बत की बस्ती बसायेंगे हम
किशोर कुमार और लता जी का गाये सबसे मधुर गीतों में से एक!
आज मैं आपको मेरे सबसे पसंदीदा गीतों में से एक सुनवा रहा हूँ। यह गाना है आ मुहब्बत की बस्ती बसायेंगे हम. यह गीत फिल्म फरेब (1953) का है और फिल्म के गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी और संगीतकार मेरे सबसे पसंदीदा संगीतकारों में से एक अनिल बिश्वास हैं। फिल्म के निर्देशक है शाहिद लतीफ और इस फिल्म की लेखिका है इस्मत आपा यानि इस्मत चुगताई।
इस गाने में किशोर दा का साथ दिया है लता जी ने।
किशोर कुमार:
आ मुहब्बत की बस्ती बसायेंगे हम
इस ज़मीं से अलग, आसमानों से दूर
मुहब्ब्त की बस्ती
लता जी
मैं हूं धरती तू आकाश है ओ सनम
देख धरती से आकाश है कितनी दूर
तू कहाँ-मैं कहाँ, है यही मुझको गम
देख धरती
किशोर कुमार:
दूर दूनिया से कोई नहीं है जहाँ
मिल रहे हैं वहां पर ज़मीं-आसमां
छुप के दुनिया से फिर क्यूं ना मिल जायें हम
इस ज़मीं से अलग आसमानों से दूर
लताजी:
तेरे दामन तलक हम तो क्या आयेंगे
यूं ही हाथों को फैला के रह जायेंगे
कोई अपना नहीं बेसहारे हैं हम
देख धरती से आकाश है कितनी दूर
5 टिप्पणियाँ/Coments:
सर जी, आप को क्या बताना ये गाने सुन कर कैसा लगता है. मज़ा आ गया बस. इस फ़िल्म का एक और गाना है जिसे मैं बहुत दिनों से खोज रहा हूँ. किशोर कुमार की आवाज़ में वो गाना है - "मेरे सुख दुःख का संसार, तेरे दो नैनन में ...." . कहीं से ढूंढ निकालिए सर. बहरहाल, इस गाने के लिए शुक्रिया. और आप भी कुछ भूले बिसरे सुनने को तैयार रहिये ...
priya bhai. shaandaar geet ki charcha ki. fareb ka ye geet mujhe bahut pasand hai.pichle kayi dino se ghar ka connection bigada pada hai. aur hum blogging se doooor ho gaye hai.
yunus
भई वाह. यह दोगाना तो मुझे भी बडा प्रिय है.
वाह भई शुक्रिया । मीत जी शायद ये गाना हमारे पास होगा ।
gana behad hi bohut madhurmayi hai. maine ise pahle kabhi nahi suna tha. par aaj ise sunkar atyant tanmayi laga. dhanyavad. krupaya mujhse 9391267272 par sampark karen ya phir mujhe aapke telephone number se soochit karein. rafimurty@gmail.com
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