प्रिय पापा आपके बिना.......
आज महफिल में एक बेटी का दर्द.....
हमारे साहित्य में माता को बहुत सम्मान दिया गया है, उतना शायद पिता को नहीं मिलता। परन्तु बेटियाँ पिता की ज्यादा प्यारी होती है। शायद सभी महिलाएं इस बात से सहमत होंगी... सांभळो छो लावण्या बेन..?
आज गुजराती साईट्स को खोजते समय अचानक ही एक बहुत ही मधुर गुजराती गीत मिल गया। यह गीत सुरत के प्रसिद्ध साईकियाट्रिस्ट और कवि डॉ मुकुल चोकसी ने लिखा है। मुकुल चोकसी के पिता मनहर लाल चोकसी भी गुजराती के सुप्रसिद्ध कवि थे।
प्रस्तुत गीत में एक बेटी अपने विवाह के बाद सुसराल में अपने पिता को याद करते हुए कह रही है .. प्रिय पप्पा हवे तो तमारा वगर. मनने गमतो नथी गाम, फळीयु के घर... यानि प्रिय पापा आपके बिना मेरे मन को कुछ भी अच्छा नहीं लगता ना गाँव, ना मोहल्ला और ना घर। प्रस्तुत गीत जब मैने पहली बार सुना इतना पसन्द आया कि कई बार सुनते ही रहा और यकीन मानिये अंतिम पंक्तियों को सुनते समय आंख से आंसु निकल आये। मैने फटाफट अपने गुजराती चिट्ठे पर लिखा कि मुझे इस गीत के बारे में जानकारी चाहिये, परन्तु किसी का जवाब नहीं मिला। आखिरकार मैने खुद ही कई घंटों की मेहनत के बाद इसे ढूंढ निकाला। यह गीत मिला एक गुजराती ब्लोग पर और वह भी प्लेयर के साथ। मैं जयश्रीबेन का धन्यवाद करना चाहता हूँ कि उन्होने इस गीत को टहुको नामक सुप्रसिद्ध गुजराती ब्लॉग पर लगाया, और आखिरकार यह हिन्दी के पाठकों और श्रोताऒं के लिये सुलभ हो सका।
मैं गुजराती के साथ उनका सरल हिन्दी अनुवाद लिख रहा हूँ, आशा है आपको यह गीत बहुत पसन्द आयेगा। यह गीत नयना भट्ट ने गाया है और इसके प्रतिभावान संगीतकार हैं सुरत के ही... मेहुल सुरती।
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પ્રિય પપ્પા હવે તો તમારા વગર
પ્રિય પપ્પા હવે તો તમારા વગર
(प्रिय पापा आपके बिना)
મનને ગમતું નથી, ગામ ફળિયું કે ઘર
(मन को कुछ अच्छा नहीं लगता गाँव, मोहल्ला और घर)
આ નદી જેમ હું પણ બહુ એકલી
( इस नदी की तरह मैं भी बहुत अकेली हूँ)
શી ખબર કે હું તમને ગમું કેટલી
( क्या पता मैं आपकी कितनी लाड़ की हूँ)
આપ આવો તો પળ બે રહે છે અસર
( आप जब आते हो तो पल दो पल असर रहता है)
જાઓ તો લાગે છો કે ગયા ઉમ્રભર
( जाते हो तो यों लगता है कि उम्रभरके लिये जा रहे हों)
…મનને ગમતું નથી, ગામ ફળિયું કે ઘર …
યાદ તમને હું કરતી રહું જેટલી
( आपको मैं जितनी याद करती हूँ)
સાંજ લંબાતી રહે છે અહીં એટલી
( यहाँ शाम उतनी ही लंबी होती जाती है)
વ્હાલ તમને ય જો હો અમારા ઉપર
( अगर आपको हम पर लाड़ हो)
અમને પણ લઇને ચાલો તમારે નગર
( तो हमें भी ले चलो अपने/आपके नगर)
…મનને ગમતું નથી, ગામ ફળિયું કે ઘર …
यहाँ व्हाल शब्द का अनुवाद लाड़ लिखा है... क्यों कि शायद प्रेम शब्द उतना सही नहीं होता। पिता पुत्री के बीच में जो नेह का नाता होता है उसके लिये यही शब्द ज्यादा सही लगा मुझे।
Technorati Tag: मुकुल चोकसी , नयना भट्ट , मेहुल सुरती , गुजराती ब्लोग , Mukul chokasi , Nayana Bhatt , Mehul surati , gujarati Blog
हमारे साहित्य में माता को बहुत सम्मान दिया गया है, उतना शायद पिता को नहीं मिलता। परन्तु बेटियाँ पिता की ज्यादा प्यारी होती है। शायद सभी महिलाएं इस बात से सहमत होंगी... सांभळो छो लावण्या बेन..?
आज गुजराती साईट्स को खोजते समय अचानक ही एक बहुत ही मधुर गुजराती गीत मिल गया। यह गीत सुरत के प्रसिद्ध साईकियाट्रिस्ट और कवि डॉ मुकुल चोकसी ने लिखा है। मुकुल चोकसी के पिता मनहर लाल चोकसी भी गुजराती के सुप्रसिद्ध कवि थे।
प्रस्तुत गीत में एक बेटी अपने विवाह के बाद सुसराल में अपने पिता को याद करते हुए कह रही है .. प्रिय पप्पा हवे तो तमारा वगर. मनने गमतो नथी गाम, फळीयु के घर... यानि प्रिय पापा आपके बिना मेरे मन को कुछ भी अच्छा नहीं लगता ना गाँव, ना मोहल्ला और ना घर। प्रस्तुत गीत जब मैने पहली बार सुना इतना पसन्द आया कि कई बार सुनते ही रहा और यकीन मानिये अंतिम पंक्तियों को सुनते समय आंख से आंसु निकल आये। मैने फटाफट अपने गुजराती चिट्ठे पर लिखा कि मुझे इस गीत के बारे में जानकारी चाहिये, परन्तु किसी का जवाब नहीं मिला। आखिरकार मैने खुद ही कई घंटों की मेहनत के बाद इसे ढूंढ निकाला। यह गीत मिला एक गुजराती ब्लोग पर और वह भी प्लेयर के साथ। मैं जयश्रीबेन का धन्यवाद करना चाहता हूँ कि उन्होने इस गीत को टहुको नामक सुप्रसिद्ध गुजराती ब्लॉग पर लगाया, और आखिरकार यह हिन्दी के पाठकों और श्रोताऒं के लिये सुलभ हो सका।
मैं गुजराती के साथ उनका सरल हिन्दी अनुवाद लिख रहा हूँ, आशा है आपको यह गीत बहुत पसन्द आयेगा। यह गीत नयना भट्ट ने गाया है और इसके प्रतिभावान संगीतकार हैं सुरत के ही... मेहुल सुरती।
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પ્રિય પપ્પા હવે તો તમારા વગર
પ્રિય પપ્પા હવે તો તમારા વગર
(प्रिय पापा आपके बिना)
મનને ગમતું નથી, ગામ ફળિયું કે ઘર
(मन को कुछ अच्छा नहीं लगता गाँव, मोहल्ला और घर)
આ નદી જેમ હું પણ બહુ એકલી
( इस नदी की तरह मैं भी बहुत अकेली हूँ)
શી ખબર કે હું તમને ગમું કેટલી
( क्या पता मैं आपकी कितनी लाड़ की हूँ)
આપ આવો તો પળ બે રહે છે અસર
( आप जब आते हो तो पल दो पल असर रहता है)
જાઓ તો લાગે છો કે ગયા ઉમ્રભર
( जाते हो तो यों लगता है कि उम्रभरके लिये जा रहे हों)
…મનને ગમતું નથી, ગામ ફળિયું કે ઘર …
યાદ તમને હું કરતી રહું જેટલી
( आपको मैं जितनी याद करती हूँ)
સાંજ લંબાતી રહે છે અહીં એટલી
( यहाँ शाम उतनी ही लंबी होती जाती है)
વ્હાલ તમને ય જો હો અમારા ઉપર
( अगर आपको हम पर लाड़ हो)
અમને પણ લઇને ચાલો તમારે નગર
( तो हमें भी ले चलो अपने/आपके नगर)
…મનને ગમતું નથી, ગામ ફળિયું કે ઘર …
यहाँ व्हाल शब्द का अनुवाद लाड़ लिखा है... क्यों कि शायद प्रेम शब्द उतना सही नहीं होता। पिता पुत्री के बीच में जो नेह का नाता होता है उसके लिये यही शब्द ज्यादा सही लगा मुझे।
Technorati Tag: मुकुल चोकसी , नयना भट्ट , मेहुल सुरती , गुजराती ब्लोग , Mukul chokasi , Nayana Bhatt , Mehul surati , gujarati Blog
17 टिप्पणियाँ/Coments:
भाई सागर चन्द जी,
इतना मर्म स्पर्शी गीत सुनवाने के लिए आभार स्वीकार कीजिए.
अद्भुत गीत है यह.
एक बार फिर से धन्यवाद.
सागर भाई , ऐमना सरस गीत साम्भाड़वानो तमारे अति धन्यवाद, बहु सरस छे।
बहुत ही मर्मस्पर्शी गीत , जितनी बार सुनो उतना कम !
सागर भाईजी,आपके अनुवाद के कारण गीत अच्छे से समझ मे आ गया । इतने बढिया गीत को अपने चिट्ठे पर सजाने के लिये साधुवाद,
अगली बार महफ़िल के लिये तलत महमूद साहब के गीतों का पाडकास्ट कैसा रहेगा ?
नाहर भाइस्सा,
तमे, आ, मार्मिक गीत सम्भळावी मन ने, फरी पूज्य पापा जी ने मारी अम्मा नी यादोँ ने सथवारे मोकली आप्युँ छे..
Chale Gaye Raghu Naath : ~~
Dukh Samet Jan jan ka, Jyon chale gaye Raghu Nath
Reh Gayee bilakhtee reeti, Ayodhya Puri anath !
Haa , " PITA " , " PARAM - YOGI " , avichal,
Kyon ker ho gaye Maun ?
Kya ant yehi hai Jan - Jeevan ka,
Meri Sudhee lega Kaun ?
Lavanya
Written in 1989
[ Yeh ooprokta , panktiyaan , maine , mere " Papaji " ke jane ke baad likhee theen .......
aaj punah : bhure Hriday se, unki Pawan Smriti ko Shraddhanjali dete hue, mere shabd .......jod rahee hoon
Sabhi PITAON ke liye , sadar , samarpit hain,
suniye,
" PITA "
Leker fauladee veerta pahadon ki,
Ghtadaar Bargad see aseemitta ,
Greeshma ka prakhar Sooraj liya,
Liya Mahasaagar ka Gambheerya,
Prakruti sa liya , Hriday Vishaal,
Raaton sa diya aaram, parishram ko,
Sadiyon kee jod de dee Vidwatta fir,
Garud see Unchhaiyaan bhee deen!
Vasant se leker dee Suhanee Bhor -
Aur diya Vishwaas, ka BEEJ - jo Fale,
Cheer - KAAL see de dee fir, Dheer ,
Parivaar ki avashyaktaon see gahanta!
Prabhu ne mila diye yeh sare GUN -
Aur raha nahi tub kuch aur - SHESH
Hanse we, dekh ker Apratim - Pratima
Aur De diya use, naam pyara sa ....PITA ka !!
[ Mere Shraddhey, Pita = Papaji , Pandit Naredra Sharma ki Smriti mein , unhe sadar , samarpit ]
प्रश्न-: के जानेमाने गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा की बेटी होने का सौभाग्य आपके साथ है । आप स्वयं को एक गीतकार या पं.नरेन्द्र शर्मा जी की पुत्री किस रूप में देखती हैं ? और क्यों ?
( उत्तर - - ६ ) आपने यह छोटा - सा प्रश्न पूछ कर मेरे मर्म को छू लिया है -- सौभाग्य तो है ही कि मैँ पुण्यशाली , सँत प्रकृति कवि ह्रदय के लहू से सिँचित, उनके जीवन उपवन का एक फूल हूँ -- उन्हीँके आचरणसे मिली शिक्षा व सौरभ सँस्कार, मनोबलको हर अनुकूल या विपरित जीवन पडाव पर मजबूत किये हुए है --
उनसे ही ईश्वर तत्व क्या है उसकी झाँकी हुई है -- और, मेरी कविता ने प्रणाम किया है --
" जिस क्षणसे देखा उजियारा,
टूट गे रे तिमिर जाल !
तार तार अभिलाषा तूटी,
विस्मृत घन तिमिर अँधकार !
निर्गुण बने सगुण वे उस क्षण ,
शब्दोँ के बने सुगँधित हार !
सुमन ~ हार, अर्पित चरणोँ पर,
समर्पित, जीवन का तार ~ तार !!
( गीत रचना ~ लावण्या )
SACH ME DIL KO CHULIYA,
MERI DONO BEHEN ABBA KI LADLI HAIN AUR MAIN APNI AMMI KA :)
सच आपके दिए अनुवाद के कारण ही इस अच्छे गीत का अर्थ समझ आया. आपको धन्यवाद.
सुनने के बाद अब पूरा अर्थ भी जान लिया . बहुत मर्मस्पर्शी रचना है . खास कर वे पंक्तियां कि 'आपको जितना याद करती हूं,शाम उतनी ही लंबी होती जाती है' . गायन भी लाजवाब है .
प्रस्तुत करने के लिए आभार .
सुन्दर । वाह सागर भाई आप तो गुजराती के भी मास्टर हैं।
बेहद शानदार प्रयास. पहली बार आपके इस दुसरे चिट्ठे पर आया हूँ फ़िर भी, वाही अपनापन मिल रहा है आपके शब्दों में जो आपको अनायास ही पाठक से जोड़ देता है. अब तो हमेशा ही आना पड़ेगा.
भाई नाहर जी, आपने गुजराती के साथ हिन्दी अनुवाद देकर बड़ा उपकार किया है. यह बात और है कि गीत के मार्मिक भाव किसी भाषा के मोहताज नहीं हैं. अद्भुत गीत है यह. इसे सुनवाने के लिए धन्यवाद!
सागर भाई नया साल मुबारक हो आपको...
सागर भाई
मज़ा आ गया गीत सुनकर। तुमने जो लिखा है वह भी अपने में विशिष्ट है । माँ-बेटी के बारे में अक्सर सुना तथा पढ़ा था तुमने नई और सही खोज की है । इसी तरह नई-नई बातें बताते रहें और मीठे गीत सुनवाते रहें । सफलता के लिए बधाई
बहुत ही सुंदर गीत दिल को छु जाने वाला सुन के आँखे गीली हो गयीं !!
हाँ,मेरे पिताजी भी मुझे "लाड" से ही "बाळू" कहते थे।बहुत याद आ रहे है वो।
प्रिय श्रीसागरजी,
मैं भी इस गीत को सुनकर बहुत रोया था। वैसे मैं एक गुजराती कॉलमिस्ट-पत्रकार-गीतकार-संगीतकार हूँ। आइंदा आपको किसी भी गुजराती गीत या साहित्य संदर्भ की आवश्यकता हो तो बिना संकोच आप मेरा संपर्क कर सकते हैं।
आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
मार्कण्ड दवे।
mdave42@gmail.com
http://mktvfilms.blogspot.com
सागरभाई सुंदर अने मर्मस्पर्शी गीत संभळाववा बदल खुब खुब धन्यवाद , सागरभाई ये गीत पढकर मुजे मेरी बेटी का भविष्य का चेहरा दिख रहा है आप कमाल हैँ सागरभाई गजब का उत्साह है आप मे आप अपने पाठकोँ का कितना ध्यान रखते हैँ पुनश्च धन्यवाद .............!
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