फ़ूल ही फ़ूल खिल उठे मेरे पैमाने में: मेहदी हसन की आवाज और राग गौड़ मल्हार
दोस्तों सावन का महीना चालू हो गया है, भले ही जम के पानी ना बरस रहा हो लेकिन हल्की फुहारें ही सही; तन मन को शीतलता तो दे रही है, ऐसे में अगर राग मल्हार सुना जाये और वो भी शहंशाह ए गज़ल मेहदी हसन साहब के स्वर में तो कितना आनन्द आयेगा?
हसन साहब बीमार हैं, आपने उनकी कई गज़लें सुखनसाज़ पर सुनी ही है। आईये आज आपको हसन साहब की आवाज में और राग मल्हार (राग गौड़ मल्हार) में ढली एक छोटी सी नज़्म सुनाते हैं। आप आनन्द लीजिये और हसन साहब की सलामती के लिये दुआ कीजिये।
फ़ूल ही फ़ूल खिल उठे मेरे पैमाने में
आप क्या आये बहार आ गई मैखाने में
आप कुछ यूं मेरे आईना-ए-दिल में आये
जिस तरह चांद उतर आया हो पैमाने में
(यह शेर प्रस्तुत गज़ल में नहीं है, सुनने को भले ना मिले पढ़ने का आनन्द तो उठाया ही जा सकता है।
आपके नाम से ताबिन्दा है उनवा-ए- हयात
वरना कुछ बात नहीं थी मेरे अफ़साने में
Phool hi phool khi... |
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9 टिप्पणियाँ/Coments:
सागर भाई
मेहंदी हसन साहब की जो पहली ग़ज़ल मैंने सुनी थी वह यही थी.क्या लाजवाब कम्पोज़िशन और क्या गायकी. सुगम संगीत का वह स्वर्णिम दौर याद दिला दिया आपने.साधुवाद.
आनन्दम्...
:)
मेहदी हसन साहेब की ये मेरी बहुत पसंदीदा ग़ज़लों में से है...क्या गाया है उन्होंने...सुर की ऐसी गंगा बहाई है की जितनी बार डुबकी लगाओ मन ही नहीं भरता...
नीरज
बहुत खुबसुरत गज़ल!!
जरा इसके आगे के एक-दो शेर हमसे भी सुनिये:
मुफ़्त की जो "मै" मिल गई तुम्हे मैखाने में...
उल्टियाँ कर-कर के लोट लगाई पैखाने में....
पीने के बाद जो घुसे 'उनके' आशियाने में...
डण्डों से धोया था तुमको फ़िर शामियाने में...
देखा जो उन्होने साकी को तुम्हारे सिरहाने में...
दूरिया बढ़ गई थी 'तुम दोनो' के दरमियाने में...
उनको भी आया लुत्फ़ तुम्हें लतियाने में...
सूकुन मिल गया उन्हें तुम्हारे मिमियाने में...
कसर ना छोड़ी तुमने फ़िर उन्हें फ़साने में...
उनको जज्ब कर ही लिया अपने फ़साने में...
फ़ूल ही फ़ूल खिल उठे मेरे पैमाने में...
आप क्या आये बहार आ गई मैखाने में...
आप कुछ यूं मेरे आईना-ए-दिल में आये...
जिस तरह चांद उतर आया हो पैमाने में ...
कमाल का शेर है ! शुक्रिया.
कमाल की ग़ज़ल है, और साथ ही वडनेरे जी की मेहनत भी...
mehandihasan saheb ki aawaz ruh foonk deti hein shabdo mein hi nahihin sun ne walon mein bhi wah wah yah aawaz sada rahegi
तू फरिस्ता है, तू ही हूर है ना,
तुझको देखा, खुदा को देख लिया,
तुझमे ऐसा नूर है ना.....
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