फ़िल्म ममता का लता जी आवाज में एक नायाब गीत
१९६६ की फ़िल्म ममता में संगीतकार रोशन ने बेहतरीन संगीत दिया था | इसी फ़िल्म का एक प्रसिद्ध गीत है "रहे न रहे हम" | इस गीत को रोशन साहब ने सचिन देव बर्मन के गीत "ठंडी हवाएं लहरा के आयें" की धुन पर बर्मन जी की सहमति से रचा था | लेकिन आज जो गीत हम आपके लिए लेकर आए हैं वो विशेष है | कव्वालियों के सरताज रोशन साहब ने "विकल मोरा मनवा" गीत में जितनी सरलता से लोक गीतों के शब्दों को लेकर ताना बाना बुना है वो बस सुनते ही बनता है |
हम गवनवा न जाइवे हो बिना झूलनी,
हम गवनवा न जाइवे हो बिना झूलनी...
अम्बुआ की डारी पड़ रही बुंदिया,
अचरा से उलझे लहरिया,
लहरिया...बिना झूलनी.
हम गवनवा न जाइवे हो बिना झूलनी,
सकल बन गगन पवन चलत पुरवाई री,
माई रुत बसंत आयी फूलन छाई बेलरिया
डार डार अम्बुअन की कोहरिया
रही पुकार और मेघवा बूंदन झर लाई..
सकल बन गगन पवन चलत पुरवाई री
विकल मोरा मनवा, उन बिन हाय,
आरे न सजनवा रुत बीती जाए,
विकल मोरा मनवा, उन बिन हाय,
भोर पवन चली बुझ गए दीपक
चली गयी रैन श्रृंगार की
केस पे विरह की धूप ढली
अरी ऐ री कली अँखियाँ की
पड़ी कुम्हलाई...
विकल मोरा मनवा....
युग से खुले हैं पट नैनन के मेरे
युग से अँधेरा मोरा आंगना
सूरज चमका न चाँद खुला
अरी ऐ री जला रही अपना,
तन मन हाय
विकल मोरा मनवा...
हम गवनवा न जाइवे हो बिना झूलनी,
हम गवनवा न जाइवे हो बिना झूलनी...
अम्बुआ की डारी पड़ रही बुंदिया,
अचरा से उलझे लहरिया,
लहरिया...बिना झूलनी.
हम गवनवा न जाइवे हो बिना झूलनी,
सकल बन गगन पवन चलत पुरवाई री,
माई रुत बसंत आयी फूलन छाई बेलरिया
डार डार अम्बुअन की कोहरिया
रही पुकार और मेघवा बूंदन झर लाई..
सकल बन गगन पवन चलत पुरवाई री
विकल मोरा मनवा, उन बिन हाय,
आरे न सजनवा रुत बीती जाए,
विकल मोरा मनवा, उन बिन हाय,
भोर पवन चली बुझ गए दीपक
चली गयी रैन श्रृंगार की
केस पे विरह की धूप ढली
अरी ऐ री कली अँखियाँ की
पड़ी कुम्हलाई...
विकल मोरा मनवा....
युग से खुले हैं पट नैनन के मेरे
युग से अँधेरा मोरा आंगना
सूरज चमका न चाँद खुला
अरी ऐ री जला रही अपना,
तन मन हाय
विकल मोरा मनवा...
6 टिप्पणियाँ/Coments:
नीरज भाई
पहली भार सुना इस गीत को। बहुत ही मधुर लगा। लोकगीतों/उनकी धुनों पर आधारित गीतों को सुनने का मजा ही कुछ और है। गाँव-देहात सब कुछ गीत के साथ याद आ गये।
धन्यवाद इतना सुन्दर गीत सुनवाने के लिये।
मैं भी सागरजी के ठीक पीछे खडा हूं । मैं ने भी पहली बार सुना है यह गीत । लोकगीतों की जमीन पर कोई भी धुन रोप दी जाए, फलक पर छा जाएगी ।
सुन्दर गीत सुनवाने के लिए आभार ।
मेरे पसँदीदा गीत को सुनवाने के लिये
बहुत बहुत शुक्रिया
- लावण्या
kya baat hai...dasiyon saal se vaakai suna nahin tha,lokgeeton kee mitti khaas tarah ki hoti hai, jo sadiyon se aapke man mein baj raha hota hai...iska surur bhi gazab kaa hai...badi mehnat se khoj kar aapne sunaaya hai...hamaara abhaar sweekaar karein|
बहुत ही मधुर गीत!
यह मेरा बहुत ही प्रिय गीत है. You Tube पर खोजा पर मिला नहीं. आपके ब्लॉग पर अचानक सर्फ़ करते करते जैसे लाटरी हाथ लग गयी. क्या बताएँगे इसे कहाँ से डाउन लोड किया जा सकता है? धन्यवाद और नमस्कार.
रमेश बाजपाई
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