लखि बाबुल मोरे काहे को दीन्हीं बिदेस- मुकेश का एक अनसुना और अदभुद गीत
आजकल पंकज राग लिखित पुस्तक (ओनलाईन) "धुनों की यात्रा" को उल्टे सीधे क्रम में पढ़ रहा हूँ, जिस दिन जो पृष्ठ सामने आ गया उसी को पढ़ने लगता हूँ।
कल अनिल विश्वास को पढ़ा आज गुलाम हैदर आदि को अभी कुछ देर पहले स्नेहल भाटकर जी का अध्याय पढ़ना शुरु किया है। भाटकर साहब को हम "कभी तन्हाईयों में हमारी याद आएगी और सोचता हूँ ये क्या किया मैने क्यूं ये सिरदर्द मोल ले लिया मैने जैसे सुन्दर-सुमधुर और प्रख्यात गीतों के लिए जानते हैं। लेकिन अपने शुरुआती दिनों में स्नेहल जी ने सुहागरात में मुकेशजी से अपने सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक गीत गवाया था जो इतना दर्दीला और सुरीला होते हुए भी पता नहीं क्यों उतना प्रसिद्ध नहीं हो पाया।
पंकज राग "धुनों की यात्रा" में लिखते हैं :-
आज यह गीत मैं आप सबके लिए यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ।
कल अनिल विश्वास को पढ़ा आज गुलाम हैदर आदि को अभी कुछ देर पहले स्नेहल भाटकर जी का अध्याय पढ़ना शुरु किया है। भाटकर साहब को हम "कभी तन्हाईयों में हमारी याद आएगी और सोचता हूँ ये क्या किया मैने क्यूं ये सिरदर्द मोल ले लिया मैने जैसे सुन्दर-सुमधुर और प्रख्यात गीतों के लिए जानते हैं। लेकिन अपने शुरुआती दिनों में स्नेहल जी ने सुहागरात में मुकेशजी से अपने सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक गीत गवाया था जो इतना दर्दीला और सुरीला होते हुए भी पता नहीं क्यों उतना प्रसिद्ध नहीं हो पाया।
पंकज राग "धुनों की यात्रा" में लिखते हैं :-
स्नेहल की विशिष्टता तो उनकी आरंभिक फिल्मों "सुहागरात( 1948), संत तुकाराम (1948), ठेस (1949) आदि से ही झलकने लगी थी। गीताबाली और भारत भूषण को लेकर बनाई गई ’सुहागरात 1948) में केदार शर्मा लिखित ’छोड़ चले मुँह मोड़ चले अब झूठी तसल्ली रहने दो’ (राजकुमारी) और ’ये बुरा किया जो साफ साफ कह दिया’ (राजकुमारी, मुकेश) जैसे तरन्नुम भरे गीत तो थे ही, साथ ही अमीर खुसरो की मशहूर रचना ’लखि बाबुल मोरे, काहे को दीन्ही विदेस’ को मुकेश के स्वर में पूरी करुणा उड़ेलकर गवाया था। इस गीत को कम लोगों ने सुना है, पर यह दुर्लभ गीत मुकेश के आरम्भिक दौर के सर्वश्रेष्ठ गीतों में गिना जायेगा।
आज यह गीत मैं आप सबके लिए यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ।
लखि बाबुल मेरे काहे को दीन्ही बिदेस
भाई को दीन्हों महल- दुमहला
मोहे दीन्हों परदेस
हो लखि बाबुल मेरे काहे को
बेटी तो बाबुल एक चिड़िया
जो रैन बसे उड़ जाए हो
लखि बाबुल मेरे काहे को दीन्हीं बिदेस
6 टिप्पणियाँ/Coments:
सच में अद्भुत गीत ..विडियो पहली बार देखा ...
Nice ..
दिखवाने का आभार..
अद्भुत गीत...बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
behad khoobsurat geet..
Lovely blogg you have
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