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Sunday, 23 December 2012

लखि बाबुल मोरे काहे को दीन्हीं बिदेस- मुकेश का एक अनसुना और अदभुद गीत

आजकल पंकज राग लिखित पुस्तक (ओनलाईन) "धुनों की यात्रा" को उल्टे सीधे क्रम में पढ़ रहा हूँ, जिस दिन जो पृ्‍सामने आ गया उसी को पढ़ने लगता हूँ।

कल अनिल विश्‍वास को पढ़ा आज गुलाम हैदर आदि को अभी कुछ देर पहले स्‍नेहल भाटकर जी का अध्याय पढ़ना शुरु किया है। भाटकर साहब को हम "कभी तन्हाईयों में हमारी याद आएगी और सोचता हूँ ये क्या किया मैने क्यूं ये सिरदर्द मोल ले लिया मैने जैसे सुन्दर-सुमधुर और प्रख्यात गीतों के लिए जानते हैं। लेकिन अपने शुरुआती दिनों में स्‍नेहल जी ने सुहागरात में मुकेशजी से अपने सर्वश्रेष्‍ठ गीतों में से एक गीत गवाया था जो इतना दर्दीला और सुरीला होते हुए भी पता नहीं क्यों उतना प्रसिद्ध नहीं हो पाया।

पंकज राग "धुनों की यात्रा" में लिखते हैं
:-
स्‍नेहल की विशिष्टता तो उनकी आरंभिक फिल्मों "सुहागरात( 1948), संत तुकाराम (1948), ठेस (1949) आदि से ही झलकने लगी थी। गीताबाली और भारत भूषण को लेकर बनाई गई ’सुहागरात 1948) में केदार शर्मा लिखित ’छोड़ चले मुँह मोड़ चले अब झूठी तसल्ली रहने दो’ (राजकुमारी) और ’ये बुरा किया जो साफ साफ कह दिया’ (राजकुमारी, मुकेश) जैसे तरन्नुम भरे गीत तो थे ही, साथ ही अमीर खुसरो की मशहूर रचना ’लखि बाबुल मोरे, काहे को दीन्ही विदेस’ को मुकेश के स्वर में पूरी करुणा उड़ेलकर गवाया था। इस गीत को कम लोगों ने सुना है, पर यह दुर्लभ गीत मुकेश के आरम्भिक दौर के सर्वश्रेष्‍ठ गीतों में गिना जायेगा।

आज यह गीत मैं आप सबके लिए यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ।


लखि बाबुल मेरे काहे को दीन्ही बिदेस
भाई को दीन्हों महल- दुमहला

मोहे दीन्हों परदेस

हो लखि बाबुल मेरे काहे को

बेटी तो बाबुल एक चिड़िया

जो रैन बसे उड़ जाए हो

लखि बाबुल मेरे काहे को दीन्हीं बिदेस

Friday, 5 October 2012

जा रे चंद्र: लताजी का एक और मधुर गीत



मैने अब तक महफिल में जिन  गीतों को शामिल किये हैं; कोशिश रही है कि वे अनसुने-दुर्लभ या उनमें कुछ खास बात हो। इन गीतों में से अधिकतर आज रेडियो पर सुनाई नहीं पड़ते। इस श्रेणी में आज एक और अदभुद गीत आपके लिए प्रस्तुत है।
जैसा
कि हम  जानते हैं  पं नरेन्द्र शर्मा का लिखासुधीर फड़के द्वारा संगीतबद्ध और लताजी  का गाया गीत हो तो वह एकदम लाजवाब ही होता है ( उदाहरण के लिए "ऐसे हैं सुख सपन हमारे", "बाँधी प्रीत फूल डोर", "मन सौंप दिया अन्जाने में", "लौ लगाती-गीत गाती"  आदि) इसी श्रेणी में  यह एक बहुत ही मधुर संगीत और  सुन्दर शब्दों से  रचा गीत आपके लिए!
इसे गाया है लताजी ने  फिल्म सजनी 1956  के लिए फिल्मांकन हुआ है अनूप कुमार और सुलोचना पर।
आइये गीत सुनते हैं और साथ-साथ नीचे दिए शब्दों को पढ़ कर गुनगुनाते हैं।


जा रे चंद्र, जा रे चंद्र, और कहीं जा रे-
गोकुल
से  कृष्ण चंद्र जायेंगे सकारे
जा
रे चंद्र जा रे

बृन्दावन सुना है सुना मन मेरा
विघना
कुछ ऐसी कर कल हो सवेरा

झरते
नयन, भरते , नयन, डूब रहे तारे

गोकुल
 से  कृष्ण चंद्र जायेंगे सकारे ,  
जा रे चंद्र जा रे
नयन नीर, मन में पीर, इतनी सी कहानी
है
ये प्रीत, रीत  सखी, पहले क्यूँ जानी
कल
कि सुन कल ना पडे विकल मन पुकारे
गोकुल
से कृष्ण चंद्र जायेंगे सकारे ,  

जा रे चंद्र जा रे
प्राण हरे कान पड़े मुरली धुन आली
मोहन
मन नाम सखी मोहन वनमाली
कैसे
रहे प्राण रहे जब प्राण प्यारे
गोकुल
से कृष्ण चंद्र जायेंगे सकारे ,
जा
रे चंद्र जा रे

download link  

Song Title: Ja Re Chandra  Ja re
Film :   Sajani 1956
Music: Sudhir Fadke
Lyric: Pt. Narendra Sharma
Singer : Lata mangeshkar

(गीत की Lyric में मदद करने के लिए लावण्या (दी) शाह  का विशेष धन्यवाद)


Monday, 23 July 2012

तू मेरा चाँद मैं तेरी चांदनी- गीता रॉय

कई बार मैं सोचता हूँ कि अगर कि  कि फंला गीत को फलां गायक के बजाए फंला गायक/ गायिका ने गाया होता तो?  इसी पर शोध करते हुए और युट्यूब पर सर्फिंग करते हुए मुझे कई बार कमाल की  चीजें मिल जाती है। 
कई ऐसे गाने मिले हैं जो प्रसिद्ध  हुए किसी और गायक के गाने पर लेकिन उनका दूसरा वर्जन भी बहुत सुन्दर है। आझ मैं आपको सुना रहा हूँ फिल्म  दिल्लगी (Dillagi- 1949)  का गीत " मैं तेरा चाँद तू मेरी चाँदनी" दो अलग-अलग गायिकाओं की आवाज में
आपने यह गीत श्याम और सुरैया की आवाज़ में  सुना है लेकिन आज सुनिए  अभिनेत्री श्यामा पर फिल्माया हुआ  दूसरा वर्जन श्याम  और गीता रॉय की आवाज में।  चूँकि यह गीत  रिकॉर्ड में नहीं है सो बहुत कम ही सुनाई देता है। 

पहला वर्जन श्याम और सुरैया दूसरा वर्जन गीता रॉय और श्याम Download Link 
 

Thursday, 23 February 2012

रातें थी चाँदनी, जोबन पे थी बहार- हबीब वली मोहम्मद

मेरी चाहत में तो कोई भी कमी भी नहीं थी। मैने हर पल तुम्हें ही चाहा, हर पल तुम्हें ही पूजा। फिर भी जैसे ही मौका मिला तुमने मुझे टुकरा दिया।



वह दिन मुझे आज भी याद है
जब जब मेरी गोदी में सर रख कर सोते
और कहते कि
तुम्हारी गोद में दुनिया का सूकून है
मैं इतराती
अपनी ही किस्मत से इर्ष्या करती
क्या सुन्दर दिन होते थे वे
और रातें सुहानी
फिर अचानक एक दिन
शायद तुमने किसी और का दामन थाम लिया
सूकून किसी और में पा लिया
मेरी सुन्दर दुनियां तुमने उजाड़ी और
किसी और की बसा ली
मेरे सारे सपने बिखर गए
मुझे लगा इस गुलाब और
मेरी किस्मत में क्या फर्क है
उसकी दुनियां किसी भँवरे ने बर्बाद की
और मेरी भी !


रातें थी चाँदनी और जोबन पे थी बहार
स्वर : हबीब वली मोहम्मद

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