बचपन की शरारतों की याद दिलाता एक अफ़लातून गीत… (Kitab, Gulzar, Masterji)
-- सुरेश चिपलूनकर
हिन्दी फ़िल्मों में बाल मानसिकता और बच्चों की समस्याओं से सम्बन्धित फ़िल्में कम ही बनी हैं। बूट पॉलिश से लेकर मासूम और मिस्टर इंडिया से होते हुए फ़िलहाल बच्चों की फ़िल्म के नाम पर कूड़ा ही परोसा जा रहा है जो बच्चों के मन की बात समझने की बजाय उन्हें “समय से पहले बड़ा करने” में समय व्यर्थ कर रहे हैं। बाल मन को समझने, उनके मुख से निकलने वाले शब्दों को पकड़ने और नये अर्थ गढ़ने में सबसे माहिर हैं सदाबहार गीतकार गुलज़ार साहब। “लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा, घोड़े की दुम पे जो मारा हथौड़ा” तो अपने आप में एक “लीजेण्ड” गाना है ही, इसी के साथ “जंगल-जंगल बात चली है पता चला है, चड्डी पहन के फ़ूल खिला है…” जैसे गीत भी गुलज़ार की पकड़ को दर्शाते हैं।
हालांकि हिन्दी फ़िल्मों में विशुद्ध बालगीत कम ही लिखे गये हैं, फ़िर भी मेरी पसन्द का एक गीत यहाँ पेश कर रहा हूँ… जो सीधे हमें-आपको बचपन की शरारतों में ले जाता है, वह क्लास रूम, वह यार-दोस्त, वह स्कूल, वह मास्टरजी, वह शरारतें और मस्ती सब कुछ तत्काल आपकी आँखों के सामने तैर जाता है… गीत है फ़िल्म “किताब” का, बोल हैं “अ आ इ ई, अ आ इ ई मास्टर जी की आ गई चिठ्ठी…”। गाया है पद्मिनी और शिवांगी कोल्हापुरे ने तथा धुन बनाई है पंचम दा ने। फ़िल्म में इसे फ़िल्माया गया है मास्टर राजू और अन्य बच्चों पर। मास्टर राजू गुलज़ार के पसन्दीदा बाल कलाकार रहे हैं और बच्चों के विषय पर ही बनी एक फ़िल्म परिचय में भी मास्टर राजू को लिया गया है, जब वे बहुत ही छोटे थे। फ़िल्म “किताब” एक बच्चे की कहानी पर आधारित है जिसका मन पढ़ाई में नहीं लगता था और एक दिन वह घर से भाग जाता है, लेकिन दुनिया की कठिनाईयों और संघर्षों को देखकर फ़िर से उसे अपना घर और माता-पिता की याद आती है और वह वापस आ जाता है।
इस गीत के बारे में गुलज़ार ने एक इंटरव्यू में कहा था कि यह लिखते समय मैंने खुद को बच्चा समझकर लिखा। बच्चे कैसी और किस प्रकार की तुकबन्दी कर सकते हैं और कितनी शरारतें कर सकते हैं यह कल्पना करके लिखा। आरडी बर्मन ने भी एक बार गुलज़ार के बारे में कहा है कि “हो सकता है कि यह आदमी किसी दिन अखबार की कटिंग लाकर कहे कि ये रहे गीत के बोल, इस पर धुन बनाओ…”, तो भाईयों और बहनों, अपने बचपन में खो जाईये और यह चुलबुला लेकिन मधुर, शरारती तुकबन्दियों से भरपूर फ़िर भी लय-ताल के ठेके देने वाला गीत सुनिये, तब पंचम दा तथा गुलज़ार जैसे लोग दिग्गज और महान क्यों हैं इसे समझना बेहद आसान हो जायेगा…
गीत के बोल कुछ इस प्रकार से हैं –
धुम तक तक धुम,
धुम तक तक धुम… (2)
अ आ इ ई, अ आ इ ई
मास्टर जी की आ गई चिठ्ठी
चिठ्ठी में से निकली बिल्ली… (2)
बिल्ली खाये जर्दा-पान
काला चश्मा पीले कान… (2)
अ आ इ ई, अ आ इ ई
मास्टर जी की आ गई चिठ्ठी
चिठ्ठी में से निकली बिल्ली… (2)
कान में झुमका, नाक में बत्ती…(2)
हाथ में जैसे अगरबत्ती
(नहीं मगरबत्ती, अगरबत्ती, मगरबत्ती, अगर-अगरबत्ती)
अगर हो बत्ती कछुआ छाप
आग पे बैठा पानी ताप… (2)
ताप चढ़े तो कम्बल तान
वीआईपी अंडरवियर-बनियान
वीआईपी अंडरवियर बनियान… (2)
धुम तक तक धुम,
धुम तक तक धुम… (2)
अ आ इ ई, अ आ इ ई
मास्टर जी की आ गई चिठ्ठी
चिठ्ठी में से निकला मच्छर
चिठ्ठी में से निकला मच्छर
मच्छर की दो लम्बी मूंछें
मूंछ पे बांधे दो-दो पत्थर
पत्थर पे एक आम का झाड़
मूंछ पे लेकर चढ़ा पहाड़
पहाड़ पे बैठा बूढ़ा जोगी,
जोगी की एक जोगन होगी
(गठरी में लागा चोर मुसाफ़िर देख चांद की ओर)
पहाड़ पे बैठा बूढ़ा जोगी,
जोगी की एक जोगन होगी
जोगन कूटे कच्चा धान
वीआईपी अंडरवियर-बनियान
वीआईपी अंडरवियर बनियान… (2)
धुम तक तक धुम,
धुम तक तक धुम… (2)
अ आ इ ई, अ आ इ ई
मास्टर जी की आ गई चिठ्ठी
चिठ्ठी में से निकला चीता
चिठ्ठी में से निकला चीता… (2)
थोड़ा काला थोड़ा पीला
चीता निकला है शर्मीला
थोड़ा-थोड़ा काला, थोड़ा-थोड़ा पीला
(अरे वाह वाह, चाल देखो)
घूंघट डाल के चलता है
मांग में सिन्दूर भरता है
माथे रोज लगाये बिन्दी
इंग्लिश बोले, मतलब हिन्दी
(इफ़ अगर इज़ है बट पर व्हाट, मतलब क्या)
माथे रोज लगाये बिन्दी
इंग्लिश बोले, मतलब हिन्दी
हिन्दी में अलजेब्रा छान…
वीआईपी अंडरवियर-बनियान
वीआईपी अंडरवियर बनियान… (2)
सावधान…
यह गीत इस जगह पर आकर अचानक थम जाता है, क्योंकि क्लास रूम में मास्टरजी आ जाते हैं और बच्चों की मस्ती बन्द हो जाती है, लेकिन मेरा दावा है कि यदि इसी गीत को गुलज़ार लगातार लिखते रहते तो कम से कम 40-50 पेज का गीत तो लिख ही जाते और वह भी बच्चों की उटपटांग, लेकिन भोली और प्राकृतिक तुकबन्दियों में। विश्वास नहीं होता कि यही गीतकार इसी फ़िल्म में “धन्नो की आँखों में रात का सुरमा…” लिखता है जिसमें “सहर भी तेरे बिना रात लगे, छाला पड़े चांद पे जो हाथ लगे…” जैसी गूढ़ पंक्ति भी लिखता है… है ना गजब का “कंट्रास्ट”, लेकिन इसीलिये तो गुलज़ार साहब महान हैं…
(सम्प्रति पद्मिनी कोल्हापुरे अपने बेटे के लिये फ़िल्मों में ज़मीन तलाश रही हैं, शिवांगी कोल्हापुरे का विवाह शक्ति कपूर के साथ हुआ है जबकि इनकी एक और छोटी बहन तेजस्विनी कोल्हापुरे भी फ़िल्मों में ही हैं, जबकि सबके प्यारे गुलज़ार साहब “बन्दिनी” से लेकर “कमीने” तक का सफ़र लगातार जारी रखे हुए हैं एक से बढ़कर एक हिट गीतों के साथ…)
इस गीत को सुनने के लिये नीचे प्ले बटन पर चटका लगायें…
इस गीत के लिये यू-ट्यूब की वीडियो लिंक यह है, तथा इसे सीधे यहाँ भी देखा जा सकता है…
इसकी Audio link यह है…
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12 टिप्पणियाँ/Coments:
बाल स्वाभाव के अंतरमन की मनौवैज्ञानिक अवधारणाओं की स्वप्निल प्रस्तुति करता हुआ यह गीत आज भी ह्रदय में बचपन की उम्मीदें जगा देता है |
प्रस्तुति के लिए सुरेश जी को बहुत - बहुत धन्यवाद |
AABHAAR.
{ Treasurer-S, T }
शुरुआत में थोड़ा अजीब सा लगा पर जैसे जैसे सुनता- देखता गया मजा आता गया, जब एक बच्चा बोलता है वी आई पी अंडरवियर बनियान... तब तो बरबस हंसी आ जाती थी।
बहुत सुन्दर और मजेदार गीत सुनवाया आपने सुरेश भाई.. बहुत बहुत आभार।
Vakai anutha hai yeh Blog, Bahut accha laga.
मस्त मस्त .... जब भी ये गाना सुनता हूँ मस्त हो जाता हूँ. शुक्रिया.
सुरेशजी,
आज आप पर फ़िदा होने को जी किया जाता है, ;-)
बेहतरीन गाना है ये, वी.आई.पी. अंडरबीयर बनियान हमारा फ़ेवरिट पार्ट है। और वो लडका भी जो कमर मटका के डांस करता है, बचपन में बर्थडे पार्टीज में हमारे ऊपर इसी प्रकार के डांस करवा के पडौसियों ने बहुत जुल्म किये हैं।
बस खो गये इस गीत में, २ साल पहले ये फ़िल्म भी देखी थी, बालमन की गहराईयों को बहुत सशक्त रूप से उकेरा गया है इस फ़िल्म में।
धन्यवाद नीरज भाई। बहुत दिनों से इस गीत के बारे में कुछ लिखने का विचार चल रहा था…। गुलज़ार मेरे सबसे पसन्दीदा गीतकार हैं…
apki tippani mili, dhanywad. apke blog se ek nai duniya se parichay hua. jiwan kai rang hai, unme bachapan ko bhala kaun bhul sakta hai.
सम्पूर्णा नन्द सिंह जी लाजवाब लिखते हैं | चाहे उनके गाने हो, फिल्म का निर्देशन, पटकथा लेखन हर जगह उनका कोई जोड़ ही नहीं |
गच्चा खा गए क्या? अरे ये सम्पूर्णा नन्द सिंह कौन हैं ? अरे भाई गुलजार साहब का वास्तविक नाम है |
खैर गुलजार साहब ने जितने विविधता भरे गीत लिखे हैं शायद ही कोई और गीतकार उनके सामने ठहरता हो |
बहुत कम लोगों को पता होगा की गुलजार साहब ने बच्चों के लिए कई कहानियां, कवितायें भी लिखी है |
सुरेश जी बहुत बहुत धन्यवाद आपने ये गाना ढूंढ़ कर निकाला |
धन्यवाद राकेश जी
मैं बहुत छोटा था तब मैने एक बाल पत्रिका में गुलजार साहब की एक कविता पढ़ी थी "हमाली बोछकी" (हमारी बोस्की)। गुलजार साहब ने अपनी बिटिया मेघना (बोस्की) के लिये यह कविता लिखी थी जो कि तोतली भाषा में थी।
सन् २००६ में जब हम नये नये ब्लॉगर बने थे तब आदरणीय अनूपजी फुरसतियाजी से इस कविता की फरमाईश की थी, तब यह कविता तो नहीं मिल पाई पर बोस्की के विवाह पर लिखी कविता जरूर फुरसतिया जी ने पढ़वाई थी।
अगर आप में से किसी मित्र के पास अगर हमाली बोछकी कविता मिले तो अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर हमें जरूर बतायें, हम आपके आभारी रहेंगे।
और हां अनूप जी की उस पोस्ट का लिंक यह है।
गुलजा़र की कविता,त्रिवेणी
कल इस गीत के बारे में अपने बेटे को बता रहा था और आज ये पोस्ट पढ़ने को मिल गई। निसंदेह ये एक विशुद्ध बाल गीत है जो बच्चों की भाषा में लिखा गया है।
आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’
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