मज़हबी एकता का एक सुन्दर गीत !!!
देश में चुनाव सम्पन्न हो गये हैं और इस चुनाव में बहुत से लोगों ने हिन्दुस्तानियों को एक दूसरे से लडाने के प्रयास किये। इस गीत में ऐसे फ़िरकापरस्तों के लिये करारा जवाब भी है और अपने देश की संस्कृति की साझा झलकी भी,
फ़िल्म: धर्मपुत्र (1961)
संगीत: नारायण दत्ताजी
गीतकार: साहिर लुधियानवी
गायक कलाकार: महेन्द्र कपूर, बलबीर और साथी
ये गीत कुछ कुछ कव्वाली की शक्ल लिये हुये है। गीत में ताली की थाप प्रारम्भ से बिल्कुल अलग सुनायी देती है लेकिन उसके बाद ताली की थाप सुनना थोडा मुश्किल है, ऐसे में क्या इसे कव्वाली कह सकते हैं? फ़िलहाल आप इस गीत को सुने और अपनी बेशकीमती राय से हमें अवगत करायें।
14 टिप्पणियाँ/Coments:
बहुत सुन्दर
आभार
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ
बहुत दिनों बाद सुना यह गीत .. अच्छा लगा।
वाकई बहुत दिनों बाद सुना..अच्छा लगा.
बहुत खूबसूरत !!
The music is by N.Datta whose real name was Datta Naik.
नीरज भाई,
बहुत सुन्दर गीत, मैने भी इसे एक लम्बे अरसे के बाद सुना।
धन्यवाद।
कव्वालीयों में शीर्ष स्थान के लिये चयनित कव्वाली!!
शुक्रिया.
Nice quwalli -- thanx Neeraj bhai
काबे के देश में हैं और इस कव्वाली का लुत्फ बार बार ले रहे हैं...बहुत बहुत शुक्रिया
इसलाम को लेकर आपके सवालों का जवाब यहाँ तलाशें
इसलाम क्या है , इसके बारे मे वाकई मे जानना चाहते हैं तो यहाँ किल्क करें
विशुध्द क़व्वाली ही है ये सागर भाई.
कई बार लाइव क़व्वाली प्रस्तुति में भी तालियों का दौर थम जाता है.क़व्वाली का अंदाज़े बयाँ ही उसे क़व्वाली बनाता है.तालिया,हारमोनियम,ढोलक तो उसके आभूषण हैं.
लाजवाब प्रस्तुति है यह
रेडिओ के जमाने में यह गीत ख़ूब सुना है। सुनवाने के लिए आभार।
घुघूती बासूती
इन उस्तादोँ की गायकी के तो क्या कहने !!
वाह वाह ...
एकता का सँदेश आज ओबामा भी दे रहे हैँ
पर जो कट्टरवादी हैँ
उनके दिलोँ मेँ किसी के लिये जगह ही नहीँ
:-(
- लावण्या
Post a Comment
आपकी टिप्प्णीयां हमारा हौसला अफजाई करती है अत: आपसे अनुरोध करते हैं कि यहाँ टिप्प्णीयाँ लिखकर हमें प्रोत्साहित करें।