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Thursday, 21 June 2018

क्या तुझपे नज़्म लिखूँ, और कैसा गीत लिखूँ..सुन्दर रागमाला


शास्त्रीय संगीत के विभिन्न रागों को एक गीत में उन के नामों का जिक्र करते हुए और उसी राग में गाना कितना मुश्किल रहा होगा ग्वालियर घराने के प्रख्यात ठुमरी गायक उस्ताद अफ़ज़ल हुसैन जयपुरी के चश्म-ओ-चिराग अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन साहब के लिए के लिए जिन्होने इस रागमाला में विभिन्न रागों के नाम लिखा और फ़िर उस अन्तरे को जिसका जिक्र उस पंक्ति में है उसी राग में गाया भी। यह है भारतीय संगीत का कमाल!
सुनिए इस सुन्दर रागमाला को।

क्या तुझपे नज़्म लिखूँ, और कैसा गीत लिखूँ
जब तेरी तारीफ़ करूँ, सुर-ताल में मीत लिखूँ
"कलावती" में तेरी छवि है, मुखड़ा रूप का दर्पण
तेरे लबों के रंग में पाए, मैंने लाली अमन
हवा में उड़ती लट का स्वागत करती "जयजयवंती"
महका-महका, खिला-खिला सा तेरा रंग बसंती
बाली कमर पे जैसे "पहाड़ी" पर घनघोर घटाएं
"मेघ" से नैना सावन भादों, प्रेम का रस बरसाये
तेरी "सोहनी" मोहनी सूरत, कोमल कंचन काया
जान-ए- ग़ज़ल किस्मत से पायी, तेरे हुस्न की "छाया"
जिसमें सुखन "रागेश्वरी", रूहे-संगीत लिखूँ
क्या तुझपे नज़्म लिखूँ, और कैसा गीत लिखूं
तेरी धानर चुनरिया लहरे, जैसे मधुर बयार
प्यार का गुलशन महका-महका, तुझसे जाने बाहर
तेरी एक झलक है "काफ़ी", मुझको जान से प्यारी
चाल नशीली देखकर तेरी, रख्श करें "दरबारी"
सर से पाँव तक दिलकश, अंदाज तेरा "शहाना"
तू मेरी "गुलकली" है जानम, मैं तेरा हूँ दीवाना
तेरी चाहत दिल मे लेकर, घूमा देश-विदेश
तुझसे जब भी दूर रहा हूँ, धारा "जोगिया" भेस
सदा सुहागन "भैरवी" तुझको, प्रीत की रीत लिखूं
क्या तुझपे नज़्म लिखूं, और कैसा गीत लिखूँ
जब तेरी तारीफ़ करूं, सुरताल में मीत लिखूँ।


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