तस्वीर बनाता हूँ तेरी, खून-ए-जिगर से- एक गीत दो आवाजों में
एक और गीत- रफी साहब और हबीब वली मोहम्मद साहब आवाजों में
पिछली पोस्ट में आपने हबीब वली मोहम्म्द की आवाज में एक सुन्दर गज़ल शमशीर बरहना माँग गज़ब सुनी। चलिए आज आपको आज एक और सुन्दर गीत सुनाते हैं। आज आपके लिए एक प्रश्न है कि आप इन दोनों गीतों को सुनकर दिल से और बिना पक्षपात किए :) बताइये कि आपको कौनसी आवाज में गीत ज्यादा अच्छा लगा?
भई मुझे तो हबीब वली मोहम्मद حبیب ولی محمد की आवाज यहाँ रफी साहब से इक्कीस लगी। मुझे यह समझ में नहीं आता कि जब यह गीत वली साहब की आवाज में भी इतना अच्छा बना है तो फिर फिल्म में रफी साहब की आवाज में ही क्यों रखा गया!
यह गीत फिल्म दीवाना (Deewana 1952) का है। इस फिल्म के संगीतकार हैं नौशाद साहब और गीतकार हैं शकील बूँदायूनी। आपको याद होगा इस फिल्म में एक और भी बढ़िया गीत है - तीर खाते जायेंगे, आँसू बहाते जायेंगे, जिन्दगी भर अपनी किस्मत आजमाते जायेंगेऽऽऽऽ यह लता जी की आवाज में है।
खैर ... गीत सुनते हैं।
पहले मोहम्म्द रफी साहब की आवाज में....
तसवीर बनाता हूँ तेरी ख़ून-ए-जिगर से-2
देखा है तुझे मैं ने मुहब्बत की नज़र से
अरे, मुहब्बत की नज़र से
जितने भी मिले रंग वो सभी भर दिये तुझ में
हाय, भर दिये तुझ में
इक रंग-ए-वफ़ा और है,
लाऊँ वो किधर से
अरे लाऊँ वो किधर से
तसवीर बनाता हूँ तेरी...
सावन तेरी ज़ुल्फ़ों से घटा माँग के लाया
हाय, माँग के लाया
बिजली ने चुराई है तड़प तेरी नज़र से
अरे, तड़प तेरी नज़र से
तसवीर बनाता हूँ तेरी
मैं दिल में बिठा कर तुझे रुख़्सत न करूँगा
हाय, रुख़्सत न करूँगा
मुश्किल है तेरा लौट के जाना मेरे घर से
अरे जाना मेरे घर से
तसवीर बनाता हूँ तेरी
और अब हबीब वली मोहम्म्द साहब की आवाज में....