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Wednesday 13 May, 2009

मज़हबी एकता का एक सुन्दर गीत !!!

देश में चुनाव सम्पन्न हो गये हैं और इस चुनाव में बहुत से लोगों ने हिन्दुस्तानियों को एक दूसरे से लडाने के प्रयास किये। इस गीत में ऐसे फ़िरकापरस्तों के लिये करारा जवाब भी है और अपने देश की संस्कृति की साझा झलकी भी,

फ़िल्म: धर्मपुत्र (1961)
संगीत: नारायण दत्ताजी
गीतकार: साहिर लुधियानवी
गायक कलाकार: महेन्द्र कपूर, बलबीर और साथी

ये गीत कुछ कुछ कव्वाली की शक्ल लिये हुये है। गीत में ताली की थाप प्रारम्भ से बिल्कुल अलग सुनायी देती है लेकिन उसके बाद ताली की थाप सुनना थोडा मुश्किल है, ऐसे में क्या इसे कव्वाली कह सकते हैं? फ़िलहाल आप इस गीत को सुने और अपनी बेशकीमती राय से हमें अवगत करायें।

Saturday 2 May, 2009

ज़मीन की खाक़ होकर आसमान से दिल लगा बैठे

कुछ भी नहीं कह सकेंगे इन सुंदर गीतों के बारे में; बस आप तो इन दो गीतों को सुन लीजिये, और इन गीतों को रचने वाले कलकारों को दाद दें. कि क्या खूबसूरत गीत उन्होने बनाये। दोनों ही फिल्म चोर बाजार Chor Bazar(1954) से चोरी किये हैं। गीतकार हैं शकील बूंदायूंनी और संगीतकार हैं सरदार मलिक, और गाया है लताजी ने। फिल्म के मुख्य कलाकार शम्मी कपूर और सुमित्रा देवी हैं।
हुई ये हम से नादानी तेरी महफ़िल में जा बैठे
ज़मीन की खाक़ होकर आसमान से दिल लगा बैठे
हुआ खून-ए-तमन्ना इसका शिक़वा क्या करें तुमसे
न कुछ सोचा न कुछ समझा जिगर पर तीर खा बैठे
ख़बर क्या थी गुलिस्तान-ए-मुहब्बत में भी खतरे हैं
जहाँ गिरती है बिजली हम उसी डाली पे जा बैठे
न क्यों अंजाम-ए-उल्फ़त देख कर आँसु निकल आये
जहाँ को लूटने वाले खुद अपना घर लुटा बैठे


Huyi yeh hum se na...

चलता रहे ये कारवां,
उम्र-ए-रवां का कारवां - २
चलता रहे ये कारवां,उम्र-ए-रवां का कारवां

शाम चले, सहर चले, मंज़िल से बेखबर चले-२
बस यूँ ही उम्र भर चले, रुक ना सके यहाँ वहाँ
चलता रहे ये कारवां, उम्र-ए-रवां का कारवां

फूले फले मेरी कली, ग़म ना मिले तुझे कभी-२
गुज़रे खुशी में ज़िन्दगी, आए ना मौसम-ए-खिज़ां
चलता रहे ये कारवां, उम्र-ए-रवां का कारवां

दुनिया का तू हबीब हो, मंज़िल तेरी क़रीब हो-२
इन्सां तेरा नसीब हो, तुझ पे ख़ुदा की हो अमां
चलता रहे ये कारवां, उम्र-ए-रवां का कारवां

Chalta rahe yeh ka...

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