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Saturday 28 September, 2019

लता मंगेशकर-90: कुछ कम सुने-कुछ अनसुने गीत




संसार के सबसे कठिन प्रश्नों में से एक है कि किसी को लता मंगेशकर के 5-10-15-20-25 बढिया गीत चुनने को कहा जाए। मैने भी आज इस कठिन प्रश्न पत्र को हल करने की कोशिश की है। घण्टों तक मेहनत करने के बाद इतने ही गीत याद आए।

 इन गीतों में "आएगा आने वाला" जैसे मधुर पर बहुत चर्चित गीतों को शामिल करने से बचने की कोशिश की है (कुछ हुए भी हैं), और उन गीतों को शामिल करने की कोशिश की है जो थोड़े कम प्रचलित हैं या रेडियो-टीवी पर कम सुनाई-दिखाई देते हैं।

 इस सुचि में कुछ गीत और संगीतकार तो ऐसे भी हैं जिनके न तो नाम एकदम ही अंजाने से हैं जैसे कि वी डी बर्मन, या कुछ ऐसे भी हैं जिन्होने बहुत ही कम गीतों को संगीतबद्ध किए जैसे मन्ना डे, कनु घोष एवंअमरनाथ! बहुत से दूसरी भारतीय भाषाओं के और गैर फिल्मों के गीत भी है हिन्दी के गीतों की सुचि लम्बी हो जाने की वजह से दो ही गीत शामिल हो पाए। इनमें से कई गीतों को मैने अपने इसी ब्लॉग पर भी पोस्ट किए हुए हैं।


तूने जहाँ बना कर अहसान क्या किया है?

माँ का प्यार1949/गोविंदराम/ आई.सी.कपूर


रात जा रही है नींद आ रही है

उध्दार/पं.वसंत देसाई/पं.नरेन्द्र शर्मा


 सपना बन साजन आये

शोखियाँ/जमाल सेन/केदार शर्मा


 है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ

आँधियाँ/उस्ताद अली अकबर खाँ/ पं. नरेन्द्र शर्मा


 दर्दे दिल तू ही बता

जश्न 1959/रोशन/राजेन्द्र कृष्ण


 घर आजा मोरे राजा; तेरे बिन चंदा उदास फ़िरे

गरम कोट 1955/अमरनाथ/मजरूह सुल्तानपुरी


 हमारे बाद महफ़िल में ये अफ़साने बयाँ होंगे

बागी1953/मदन मोहन /मज़रूह सुल्तानपुरी


 जब तक जागे चाँद गगन में..

शिव कन्या 1954/ मन्ना डे/भरत व्यास


 साजन बिन निन्द ना आवे बिरहा सतावे

मुनीमजी/ सचिन देव बर्मन


 बदनाम ना हो जाऊं ए आस्मां

चार पैसे 1959/वी डी वर्मन


 माझी मेरी नैया को जी चाहे जहाँ ले चल

चार पैसे1959/वी डी बर्मन


 कैसे दिन बीते कैसे बीती रतिया पिया जाने ना

अनुराधा/पण्डित रविशंकर


 दुनिया हमारे प्यार से यूं ही जवां रहे

लाहौर1949/ श्याम सुन्दर


 चंदा रे जा रे जा रे जिद्दी

1948/ खेमचन्द प्रकाश/ प्रेम धवन


 ओ लेने वाले उस देने वाले के दाता के गीत क्यूं गाता नहीं

कारीगर1958/सी रामचन्द्र/राजेन्द्र कृष्ण


 बीता हुआ एक सावन एक याद तुम्हारी

ले देके ये दो बातें दुनिया है हमारी

शोखियाँ/ जमाल सेन/(पहले कदम) (unrealides)

 


हुई ये हम से नादानी तेरी महफ़िल में जा बैठे

ज़मीन की खाक़ होकर आसमान से दिल लगा बैठे

चोर बाजार 1954/ सरदार मलिक/ शकील बूंदायूंनी


ए दिल ए बेक़रार जैसे भी हो गुज़ार

मांग1950/ गुलाम मोहम्मद/ सगीर उस्मानी


 गरीबों का हिस्सा गरीबों को दे दो

लाड़ली1949/ अनिल विश्वास /सफ़दर आह

 ना ना बरसो बादल आज बरसे नैन से जल

सम्राट पृथ्वीराज चौहान/ पं.वसन्त देसाई/ भरत व्यास

 कहाँ जाते हो, टूटा दिल, हमारा देखते जाओ

किए जाते हो हमको बेसहारा, देखते जाओ

नया जमाना 1957 /कनु घोष/ प्रेम धवन

 ऋतु आए ऋतु जाए सखी री, मन के मीत न आए

हमदर्द/ अनिल विश्वास / प्रेम धवन

 दिल-ए-नाशाद को जीने की हसरत हो गई तुम से

मुहब्बत की कसम हम को मुहब्बत हो गई तुम से

चुनरिया 1948/ हंसराज बहल

 भूल सके न हम तुम्हें, और तुम तो जाके भूल गये

रो रो के कहता है दिल , क्यों दिल को लगा के भूल गये

तमाशा1952/ मन्ना डे /भरत व्यास

 जा रे चंद्र, जा रे चंद्र, और कहीं जा रे-२

गोकुल के कृष्ण चंद्र जायेंगे सकारे

सजनी/सुधीर फड़के/पं. नरेन्द्र शर्मा

 ऐसे हैं सुख सपन हमारे

रत्नघर 1955/ सुधीर फड़के/पं. नरेन्द्र शर्मा

 ऐ प्यार तेरी दुनिया से हम बस इतनी निशानी लेके चले

एक टूटा हुआ दिल साथ रहा, एक रोती जवानी लेके चले

झांझर1953/सी रामचन्द्र/राजेन्द्र कृष्ण

 नववधू प्रिया मी बावरते, लाजते पुढ़ते सरते, फिरते

कळे मला तू प्राण सखा जरी तूज वाचूनि संसार फुका जरी

Marthi Bhav Geet

 सावन गगने घोर घनघटा

बंग्ला/Timira Daur Kholo

Monday 2 September, 2019

दाईम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं; पं.एसडी बातिश की भूली बिसरी गज़ल


हम सबने फिल्म “बरसात की रात” की मशहूर कव्वाली “ना तो कारवां की तलाश है” सुना ही है, उसे कई महान गायकों ने गाया है लेकिन उनमें एक स्वर ऐसा भी है जिनके हिस्से कुछ ही लाईनें आई है, लेकिन वे उतने में ही कमाल कर देते हैं- यह स्वर है  पंडित शिव दयाल बातिश जी का जिन्हें हम एस डी बातिश के नाम से भी जानते हैं
1914 में पटियाला में जन्मे एस डी बातिश ने कई गैर फिल्मी-फिल्मी गीत गाए-संगीतबद्ध किए, पंडित अमरनाथ के सहायक रहे अमरनाथ जी का संगीतबद्ध  “खामोश निगाहें ये  सुनाती  है कहानी, लो आज चली ठोकरे खाने को जवानी –दासी 1944 जैसे कई सुन्दर गीत गाए। 1949 में अनिल विश्वास के संगीत में फिल्म लाड़ली का गीत “इसी रंगीन दुनियां में क्या क्या जिंदगी देखी-रुला दे गम को भी एक बार ऐसी जिंदगी देखी”  एवं  “आँखे कह गई गई दिल की बात,  वो काली मतवाली आँखें/ जिनकी अनोखी घात/आँखें कह गईं दिल की बात” जैसे शानदार गीत  गाए। 


1952 में बेताब फिल्म में संगीत दिया एवं संगीतबद्ध फिल्म बेताब  में “देख लिया तूने गम का तमाशा गीत गाया। बहू बेटी फिल्म में एक गीत “मोसे चंचल जवानी संभाली नाही जाए” उस जमाने के हिसाब से अश्लील होने की वजह से हटा दिया गया। तलत महमूद से उनके सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक “खामोश है सितारे और रात रो रही है” (हार जीत-1954) गवाया। इस फिल्म में प्यारेलाल (लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल) उनके सहायक थे।
 तूफान 1952 में जलाकर आग दिल में जिंदगी बरबाद करते हैं, न हंसते हैं न  रोते हैं न कुछ फरियाद करते हैं  एवं दुनियां शिकायत कौन करे अरमान भरा दिल टूट गया ये कौन आया चुपके चुपके खु्शियों के चमन को लूट गया” बहुत ही सुंदर गीत संगीतबद्ध किए और गाए ।

शास्त्रीय संगीत के प्रकांड विद्वान बातिश जी ने भजन, गीत, गज़ल, ठुमरी एवं फिल्म संगीत सभी गाए  लेकिन उनको संगीत जगत ने उन्हें बहुत जल्दी भूला दिया। आजकल रेडियो पर न उनके गाए गीत सुनाई देते हैं न उनके संगीतबद्ध ही!
आज मैं उनकी गाई हुई एक गैर फिल्मी “दायम पड़ा हुआ तेरे सर पर नहीं हूं मैं”  गज़ल सुना रहा हूँ जिसे लिखा है “मिर्ज़ा गा़लिब” مرزا اسد اللہ خان  ने और संगीतबद्ध किया स्वयं एस डी बातिश ने।

दाईम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं
खाक़ ऐसी जिन्दगी पे के पत्थर नहीं हुँ मैं
क्यों गर्दिशें मदाम से घबरा ना जाए दिल
इन्सान  हूँ हाय इन्सान हूँ पियाला-ओ-सागर नहीं हूँ मैं
रखते हो तुम कदम मेरी आँखों से क्यूँ दरेग
रुतबे में मेहर-ओ-माह से कमतर नहीं हूँ
करते हो मुझ को मना-ए-क़दम बोस किस लिए
क्या आसमां के भी बराबर नहीं हूँ मैं

एस डी बातिश के संगीतबद्ध एवं गाए हुए अन्य गीतयहाँ सुने।

दाइम-दायम = eternal गर्दिश-ए-मदाम eternal movement हमेशा होने वाली गर्दिश या चक्कर
दरेग = hesitation /संकोच ,  मेहर-ओ-माह- सूरज-चाँद , बोस-बोसा- चूमना

अर्थ रेख़्ता के सौजन्य से

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