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Saturday 28 September, 2019

लता मंगेशकर-90: कुछ कम सुने-कुछ अनसुने गीत




संसार के सबसे कठिन प्रश्नों में से एक है कि किसी को लता मंगेशकर के 5-10-15-20-25 बढिया गीत चुनने को कहा जाए। मैने भी आज इस कठिन प्रश्न पत्र को हल करने की कोशिश की है। घण्टों तक मेहनत करने के बाद इतने ही गीत याद आए।

 इन गीतों में "आएगा आने वाला" जैसे मधुर पर बहुत चर्चित गीतों को शामिल करने से बचने की कोशिश की है (कुछ हुए भी हैं), और उन गीतों को शामिल करने की कोशिश की है जो थोड़े कम प्रचलित हैं या रेडियो-टीवी पर कम सुनाई-दिखाई देते हैं।

 इस सुचि में कुछ गीत और संगीतकार तो ऐसे भी हैं जिनके न तो नाम एकदम ही अंजाने से हैं जैसे कि वी डी बर्मन, या कुछ ऐसे भी हैं जिन्होने बहुत ही कम गीतों को संगीतबद्ध किए जैसे मन्ना डे, कनु घोष एवंअमरनाथ! बहुत से दूसरी भारतीय भाषाओं के और गैर फिल्मों के गीत भी है हिन्दी के गीतों की सुचि लम्बी हो जाने की वजह से दो ही गीत शामिल हो पाए। इनमें से कई गीतों को मैने अपने इसी ब्लॉग पर भी पोस्ट किए हुए हैं।


तूने जहाँ बना कर अहसान क्या किया है?

माँ का प्यार1949/गोविंदराम/ आई.सी.कपूर


रात जा रही है नींद आ रही है

उध्दार/पं.वसंत देसाई/पं.नरेन्द्र शर्मा


 सपना बन साजन आये

शोखियाँ/जमाल सेन/केदार शर्मा


 है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियाँ

आँधियाँ/उस्ताद अली अकबर खाँ/ पं. नरेन्द्र शर्मा


 दर्दे दिल तू ही बता

जश्न 1959/रोशन/राजेन्द्र कृष्ण


 घर आजा मोरे राजा; तेरे बिन चंदा उदास फ़िरे

गरम कोट 1955/अमरनाथ/मजरूह सुल्तानपुरी


 हमारे बाद महफ़िल में ये अफ़साने बयाँ होंगे

बागी1953/मदन मोहन /मज़रूह सुल्तानपुरी


 जब तक जागे चाँद गगन में..

शिव कन्या 1954/ मन्ना डे/भरत व्यास


 साजन बिन निन्द ना आवे बिरहा सतावे

मुनीमजी/ सचिन देव बर्मन


 बदनाम ना हो जाऊं ए आस्मां

चार पैसे 1959/वी डी वर्मन


 माझी मेरी नैया को जी चाहे जहाँ ले चल

चार पैसे1959/वी डी बर्मन


 कैसे दिन बीते कैसे बीती रतिया पिया जाने ना

अनुराधा/पण्डित रविशंकर


 दुनिया हमारे प्यार से यूं ही जवां रहे

लाहौर1949/ श्याम सुन्दर


 चंदा रे जा रे जा रे जिद्दी

1948/ खेमचन्द प्रकाश/ प्रेम धवन


 ओ लेने वाले उस देने वाले के दाता के गीत क्यूं गाता नहीं

कारीगर1958/सी रामचन्द्र/राजेन्द्र कृष्ण


 बीता हुआ एक सावन एक याद तुम्हारी

ले देके ये दो बातें दुनिया है हमारी

शोखियाँ/ जमाल सेन/(पहले कदम) (unrealides)

 


हुई ये हम से नादानी तेरी महफ़िल में जा बैठे

ज़मीन की खाक़ होकर आसमान से दिल लगा बैठे

चोर बाजार 1954/ सरदार मलिक/ शकील बूंदायूंनी


ए दिल ए बेक़रार जैसे भी हो गुज़ार

मांग1950/ गुलाम मोहम्मद/ सगीर उस्मानी


 गरीबों का हिस्सा गरीबों को दे दो

लाड़ली1949/ अनिल विश्वास /सफ़दर आह

 ना ना बरसो बादल आज बरसे नैन से जल

सम्राट पृथ्वीराज चौहान/ पं.वसन्त देसाई/ भरत व्यास

 कहाँ जाते हो, टूटा दिल, हमारा देखते जाओ

किए जाते हो हमको बेसहारा, देखते जाओ

नया जमाना 1957 /कनु घोष/ प्रेम धवन

 ऋतु आए ऋतु जाए सखी री, मन के मीत न आए

हमदर्द/ अनिल विश्वास / प्रेम धवन

 दिल-ए-नाशाद को जीने की हसरत हो गई तुम से

मुहब्बत की कसम हम को मुहब्बत हो गई तुम से

चुनरिया 1948/ हंसराज बहल

 भूल सके न हम तुम्हें, और तुम तो जाके भूल गये

रो रो के कहता है दिल , क्यों दिल को लगा के भूल गये

तमाशा1952/ मन्ना डे /भरत व्यास

 जा रे चंद्र, जा रे चंद्र, और कहीं जा रे-२

गोकुल के कृष्ण चंद्र जायेंगे सकारे

सजनी/सुधीर फड़के/पं. नरेन्द्र शर्मा

 ऐसे हैं सुख सपन हमारे

रत्नघर 1955/ सुधीर फड़के/पं. नरेन्द्र शर्मा

 ऐ प्यार तेरी दुनिया से हम बस इतनी निशानी लेके चले

एक टूटा हुआ दिल साथ रहा, एक रोती जवानी लेके चले

झांझर1953/सी रामचन्द्र/राजेन्द्र कृष्ण

 नववधू प्रिया मी बावरते, लाजते पुढ़ते सरते, फिरते

कळे मला तू प्राण सखा जरी तूज वाचूनि संसार फुका जरी

Marthi Bhav Geet

 सावन गगने घोर घनघटा

बंग्ला/Timira Daur Kholo

Monday 2 September, 2019

दाईम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं; पं.एसडी बातिश की भूली बिसरी गज़ल


हम सबने फिल्म “बरसात की रात” की मशहूर कव्वाली “ना तो कारवां की तलाश है” सुना ही है, उसे कई महान गायकों ने गाया है लेकिन उनमें एक स्वर ऐसा भी है जिनके हिस्से कुछ ही लाईनें आई है, लेकिन वे उतने में ही कमाल कर देते हैं- यह स्वर है  पंडित शिव दयाल बातिश जी का जिन्हें हम एस डी बातिश के नाम से भी जानते हैं
1914 में पटियाला में जन्मे एस डी बातिश ने कई गैर फिल्मी-फिल्मी गीत गाए-संगीतबद्ध किए, पंडित अमरनाथ के सहायक रहे अमरनाथ जी का संगीतबद्ध  “खामोश निगाहें ये  सुनाती  है कहानी, लो आज चली ठोकरे खाने को जवानी –दासी 1944 जैसे कई सुन्दर गीत गाए। 1949 में अनिल विश्वास के संगीत में फिल्म लाड़ली का गीत “इसी रंगीन दुनियां में क्या क्या जिंदगी देखी-रुला दे गम को भी एक बार ऐसी जिंदगी देखी”  एवं  “आँखे कह गई गई दिल की बात,  वो काली मतवाली आँखें/ जिनकी अनोखी घात/आँखें कह गईं दिल की बात” जैसे शानदार गीत  गाए। 


1952 में बेताब फिल्म में संगीत दिया एवं संगीतबद्ध फिल्म बेताब  में “देख लिया तूने गम का तमाशा गीत गाया। बहू बेटी फिल्म में एक गीत “मोसे चंचल जवानी संभाली नाही जाए” उस जमाने के हिसाब से अश्लील होने की वजह से हटा दिया गया। तलत महमूद से उनके सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक “खामोश है सितारे और रात रो रही है” (हार जीत-1954) गवाया। इस फिल्म में प्यारेलाल (लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल) उनके सहायक थे।
 तूफान 1952 में जलाकर आग दिल में जिंदगी बरबाद करते हैं, न हंसते हैं न  रोते हैं न कुछ फरियाद करते हैं  एवं दुनियां शिकायत कौन करे अरमान भरा दिल टूट गया ये कौन आया चुपके चुपके खु्शियों के चमन को लूट गया” बहुत ही सुंदर गीत संगीतबद्ध किए और गाए ।

शास्त्रीय संगीत के प्रकांड विद्वान बातिश जी ने भजन, गीत, गज़ल, ठुमरी एवं फिल्म संगीत सभी गाए  लेकिन उनको संगीत जगत ने उन्हें बहुत जल्दी भूला दिया। आजकल रेडियो पर न उनके गाए गीत सुनाई देते हैं न उनके संगीतबद्ध ही!
आज मैं उनकी गाई हुई एक गैर फिल्मी “दायम पड़ा हुआ तेरे सर पर नहीं हूं मैं”  गज़ल सुना रहा हूँ जिसे लिखा है “मिर्ज़ा गा़लिब” مرزا اسد اللہ خان  ने और संगीतबद्ध किया स्वयं एस डी बातिश ने।

दाईम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं
खाक़ ऐसी जिन्दगी पे के पत्थर नहीं हुँ मैं
क्यों गर्दिशें मदाम से घबरा ना जाए दिल
इन्सान  हूँ हाय इन्सान हूँ पियाला-ओ-सागर नहीं हूँ मैं
रखते हो तुम कदम मेरी आँखों से क्यूँ दरेग
रुतबे में मेहर-ओ-माह से कमतर नहीं हूँ
करते हो मुझ को मना-ए-क़दम बोस किस लिए
क्या आसमां के भी बराबर नहीं हूँ मैं

एस डी बातिश के संगीतबद्ध एवं गाए हुए अन्य गीतयहाँ सुने।

दाइम-दायम = eternal गर्दिश-ए-मदाम eternal movement हमेशा होने वाली गर्दिश या चक्कर
दरेग = hesitation /संकोच ,  मेहर-ओ-माह- सूरज-चाँद , बोस-बोसा- चूमना

अर्थ रेख़्ता के सौजन्य से

Wednesday 21 August, 2019

मोरे सैयां तो है परदेस- मैं क्या करूं सावन को- हिन्दी फिल्मों में वर्षा, सावन एवं विरहिणी नायिका




“मोरे सैयां तो है परदेस- मैं क्या करूं सावन को”
हिन्दी फिल्मों में वर्षा, सावन एवं विरहिणी नायिका

वैशाख और जेठ महीने की तपती दुपहरियों के बाद जैसे ही आषाढ़ और उसके बाद सावन का आगमन होने लगता है और धरती पर बारिश की बूंदें गिरती है, वातावरण में शीतलता छाने से भीषण गर्मी से राहत मिलती है। बारिश की बूँदें जैसे ही मिट्टी में घुलती है; सौंधी-सौंधी महक हर तरफ फैल जाती है । पेड-पौधे झूम-झूम कर मानों मेघों का-बरखा का  स्वागत करते दिखते हैं। वर्षा हर किसी को आत्मिक आनंद से  सराबोर करने लगती हैं। 
वर्षा ऋतु का भारतीय जनजीवन में बहुत बड़ा महत्व है। वर्षा की बूंदें किसानों के मन में भी  उत्साह का संचयन करती हैं। वर्षा ऋतु भारतीय जीवन परंपरा और साहित्य और फिल्मों में भी गहरा प्रभाव दिखता है। रामचरित मानस में भगवान श्रीराम अनुज लक्ष्मण से कहते हैं- 
"बरषा काल मेघ नभ छाए -  गरजत लागत परम सुहाए"
 शायर परवीन शाकिर कहती हैं – “बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए-मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक हो गए”
मलिक मोहम्मद जायसी अपने ऋतु वर्णन में कहते हैं-
रँग-राती पीतम सँग जागी।
गरजे गगन चौंकि गर लागी॥
सीतल बूँद, ऊँच चौपारा।
हरियर सब देखाइ संसारा॥

हिन्दी फिल्मी गीतों में भी गीतकारों ने एक से एक  लाजवाब वर्षा गीत लिखे हैं और संगीतकारों ने उन्हें इतनी सुन्दरता से विभिन्न रागों में ढा़ल कर  फिल्मों में पेश किया है कि वे गीत अमर हो गए हैं, पर आज हम उन गीतों का जिक्र नहीं कर रहे, आज बात हो रही है उन हिन्दी फिल्मों के उन वर्षा-विरह गीतों की जिनमें नायक अपनी नायिका को अकेले छोड कर परदेस गया हुआ है या जा रहा है। वर्षा होने के  बाद या बादल छाने पर नायक को याद करते हुए कभी बादल, कभी पपीहे तो कभी कोयल से कहती है-“जारे जारे ओ कारी बदरिया- परदेस गए हैं मोरे साँवरिया”!

हिन्दी फिल्मों के सबसे पुराने गीतों में से सबसे पहले जो गीत याद आता है वह है १९३८ की फिल्म भाभी का गीत- झुकी आई रे बदरिया सावन की!  इस गीत में विरह की नायिका  बारिश में कूकते पपीहे को कहती है – सुन रे हठी पपीहा पापी-पी को नाम न ले-सुन पावै कोई बिरहा की नारी, पी कारन कीजे”।

१९४४ की सुपरहिट फिल्म रतन में दो  गीतों के माध्यम से दु:खी नायिका अपना दर्द बादलों/वर्षा की बूंदों/सावन के सामने व्यक्त कर रही है- पहले गीत में  नायिका कहती है  - “रुम झुम बरसे बादरवा, मस्त हवाएं आई/ पिया घर आजा आजा/ काले काले बादल घिर-घिर आ गये आ गये/ ऐसे में तुम जाके जुलमवा ढा गये-ढा गये” और दूसरे गीत “सावन के बादलों/ उनसे ये जा कहो/ तक़दीर में यही था/ साजन मेरे ना रो” में तो नायिका ही नहीं विरह का  मारा नायक भी बारिश से कहता है- “छेड़ो ना हमें आ के/ बरसो कहीं और जा के/बरसो कहीं और जा के/ वो दिन ना रहे अपने- रातें ना रहीं वो/ सावन के बादलों”।

१९४५ की फिल्म गर्ल (गाँव की गोरी) के गीत “किस तरह भूलेगा दिल” की नायिका काली घटाओं से ना बरसने को कहती है- “ओ घटा काली घटा अब के बरस तू ना बरस/ मेरे प्रीतम को अभी परदेस है भाया हुआ”।

१९४५ की ही फिल्म मूर्ति का गीत है “बदरिया बरस गई उस पार” की नायिका कोयलिया से चिढ़ कर उलाहना देती है “कूक-कूक कर कूक कोयलिया/अपना पिया बुलाए/सोए दर्द जगा मत बैरन/याद किसी की आए मेरे मन के सूने द्वार”!

१९५१ की फिल्म शोखियां जिसके संगीत महान संगीतकार  जमाल सेन साहब थे; के गीत पड़े बरखा फुहार पड़े बूंदन फुहार में नायिका कह रही है, “दैया उन बिना कछु भाए ना सखी/ नैना तपत बालम बिना- गले मिलन को ब्याकुल सारे”।

१९४९ की फिल्म लेख  में भी दो गीतों में नायिक के विरह की पीड़ा दिखती है, पहले गीत- “बदरा की छाँव तरे/ नन्हीं-नन्हीं बून्दियाँ/ हिल-मिल बैठें दोनों यहीं मन भाये रे"  नायिका गाते हुए कहती है – “आई बहार बलमा मन नाहीं माने- तुझ बिन सैयां मोहे सूना जग लागे”। इसी फिल्म के एक और गीत –“सावन की घटाओं मेरे साजन को बुला दो” में नायिका घटाओं से कहती है –“आँसू मेरे ले जाओ ले जा के दिखा दो/ सावन की घटाओं/ कहना के तेरी याद में रोती हैं ये आँखें”।

१९५३ की फिल्म हमदर्द  में संगीतकार अनिल विश्वास ने एक ४ अलग -अलग राग क्रमश: गौड सारंग-गौड मल्हार-जोगिया और बहार को मिलाकर एक सुन्दर रागमाला बनाई है, इस रागमाला के गीत ऋतु आए सखी ऋतु जाए सखी री मन के मीत न आए में नायिका दूसरे हिस्से यानि बरखा ऋतु वाले गीत में कहती है  “बरखा ऋतु बैरी हमार/ जैसे सास ननदिया/ पी दरसन को जियरा तरसे/ अँखियन से नित सावन बरसे/ रोवत है कजरा नैनन का/ बिंदिया करे पुकार/ बरखा ऋतु बैरी हमार”। यह गीत हिन्दी फिल्मों की सबसे सुन्दर रागमालाओं में से एक है और कहा जाता है कि इस गीत के लिए संगीतकार अनिल विश्वास ने लता मंगेशकर एवं मन्ना डे से १४ दिनों तक रियाज़ करवाया था।  महफिल पर  पोस्ट "ऋतु आये ऋतु जाये सखी री... चार रागों में ढ़ला एक शास्त्रीय गीत"

१९५३ की ही फिल्म मयूरपंख के गीत में नायिका शिकायत करते हुए कहती है  “ये बरखा बहार- सौतनिया के द्वार न जा साँवरे न जा मोरे साँवरे पिया”।

१९५५ की फिल्म पहली झलक के गीत “कैसे भाये सखी ऋत सावन की” में नायिका कह रही है “छम छम छम छम बरसत बदरा/ रोये रोये नैनों से बह गया कजरा/ आग लगे ऐसे सावन को/ जान जलावे जो विरहन की/ कैसे भाये सखी रुत सावन की”।

१९५५ में सलिल चौधरी ने फिल्म ताँगेवाली फिल्म के अपनी ही बांग्ला फिल्म पाशेरबाड़ी के गीत “झिर-झिर बरोशाय हाय कि बोरोशा” के संगीत पर आधारित एक गीत “ रिमझिम रिमझिम झिम बरसे- नैना मोरे तरसे” संगीतबद्द किया है, इस गीत में नायिका “आशा के द्वार खड़ी खड़ी- राह तोरी देखूँ घड़ी-घड़ी” कहते हुए अपनी पीड़ा  व्यक्त करती है –“तरसाए सावन की झड़ी तेरे बिना सूना जग साँवरिया”।

१९५५ की फिल्म आजाद के गीत “जारे जारे ओ कारी बदरिया” में नायिका को कारी बदरिया अपने साँवरिया की याद दिला रहे हैं तो वह दु:खी हो कर उनसे कहती है “मत बरसो रे मेरी नगरिया- परदेस गए हैं साँवरिया”!

१९५६ की फिल्म जागते रहो की नायिका, नायक के साथ होकर भी नहीं है! नायक को उसके होने-न-होने की कोई परवाह नहीं है और वह उसे ठुकरा कर जाने लगता है तो नायिका कहती है  “ठण्डी-ठण्डी  सावन की फुहार/ पिया आज खिड़की खुली मत छोड़ो”। इस गीत में नायिका पपीहे के प्रेम से अपने प्रेम की तुलना करती हुई कह रही है  “पपीहे ने मन की अगन बुझा ली/प्यासा रहा मेरा प्यार”!

१९५९ की फिल्म कन्हैया की नायिका की पीड़ा और अलग ही है, वह कहती है- “सावन आवन कह गए कर गए कौल अनेक/गिनते-गिनते घिस गई ऊँगलियों की रेख”!

१९६१ में नई पीढ़ी के ’छोटे नवाब’ राहुल देव बर्मन संगीतकार बने और उन्होने अपनी पहली ही फिल्म “छोटे नवाब” में कमाल कर दिखाया। जब भी इस फिल्म की बात होती है तो एक ही गीत याद आता है – घर आजा घिर आए बदरा साँवरिया/ मोरा जिया धक-धक रे चमके बिजुरिया”!

७० और ८० के दसक में सावन, वर्षा और विरह की मारी नायिकाओं के गीत उतने नहीं आए; जो आए वे इतने मधुर या लोकप्रिय नहीं थे फिर भी  बीच बीच में कुछ गीत आते रहे जैसे १९७४ की फिल्म “रोटी कपड़ा और मकान” का गीत हाय हाय ये मजबूरी इस गीत की आधुनिक नायिका की शिकायत है कि “ये मौसम और ये दूरी/मुझे पल-पल है तड़पाए/ तेरी दो टकिया की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए”।

१९७७ में एक और शानदार फिल्म बनी थी “आलाप” इस फिल्म में अभिनय के साथ इसके गीत “कोई गाता मैं सो जाता” की अक्सर चर्चा होती है, रेडियो पर भी सुनाई देता रहता है लेकिन इसी फिल्म में एक गीत और था “आयी ऋतु सावन की पिया मोरा जा रे/ आयी ऋतु सावन की” यह हिन्दी फिल्मों के सबसे अच्छे विरह गीतों में से एक है। इसमें जिसमें विरह की मारी नायिका की पीड़ा  इन शब्दों में व्यक्त होती है (फिल्म में नायक पर फिल्माया गया है) बैरन बिजुरी चमकन लागी/बदरी ताना मारे रे ऐसे में कोई जाए पिया तू रूठों क्यों जाए रे”। इसी गीत में नायिका- नायक से शिकायत करती हुई कहती है ऋतु सावन की आई है और जब सब घर आ रहे हैं तुम ही एक अनोखे हो जो बिदेस जा रहे हो। देखिए कितने सुन्दर शब्दों में इस पीड़ा को व्यक्त किया गया है।  “तुम ही अनूक बिदैस जवैया/ सब आये हैं द्वारे रे/ ऐसे में कोई जाए पिया/ तू रूठो क्यों जाए रे”!

फिल्मों में सावन/वर्षा और विरह पर आधारित गीतों पर इतने सारे गीत बने हैं कि इन सभी का जिक्र करने पर एक पोथी तैयार की जा सकती है पर हमने यहाँ कुछ गिने-चुने गीतों का ही जिक्र किया है। उम्मीद है कि इनमें से कई गीत आपने नहीं सुने होंगे-पहली बार सुनेंगे और वह आपके तन-मन को आनंदित जरूर करेंगे।

Tuesday 20 August, 2019

अकेले में वो घबराते तो होंगे:शर्मा जी यानि खै़याम साहब का संगीतबद्ध गीत


मधुर संगीत के दौर की आखिरी कड़ी थे ख़ैयाम साहब, इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गए।  रहमान वर्मा के साथ मिलकर ख़ैयाम साहब ने “शर्माजी-वर्माजी के नाम से जोड़ी बनाई और 1948 में हीर रांझा  फिल्म में संगीत दिया और गाना भी गाया “दिल यूं-यूं करता है”!  बाद में वर्माजी यानि रहमान वर्मा ने पाकिस्तान जाना पसन्द किया और वहाँ बड़े संगीतकार बने और शर्माजी यानि खैय्याम साहब यहाँ रह गए।
 शर्मा जी के नाम से ख़ैयाम साहब ने कुछ फिल्मों में गाने भी गाए जो बहुत प्रसिद्ध नहीं हुए जैसे – रसीली फिल्म का गीत  “नेह लगा के मुख मोड़ गया” जो उन्होने गीतारॉय के साथ गाया था इसके संगीतकार थे –हनुमान प्रसाद।
ख़ैयाम साहब ने बहुत कम फिल्मों में संगीत दिया पर जितना भी काम किया उत्कृष्ट काम किया। ज्यादातर सुनाई देता रहता है। पर कुछ गीत  ऐसे भी हैं जो कभी सुनाई नहीं देते जैसे – आशा भोंसले का गाया हुआ फिल्म “धोबी डॉक्टर”  का “पीहू पीहू बोले पपीहरा, आजा बदली के संग  मोरा जिया डोले रे” एवं “झिलमिल झिलमिल तारे नील गगन में प्यार मेरे मन में झिलमिल”।
शर्मा जी- वर्माजी की जोड़ी के बाद भी  भी उन्होने धनीराम के साथ मिलकर गुलबहार 1954में संगीत दिया। तलत महमूद साहब के प्रशंसकों में से भी बहुतों ने  गीत “गर तेरी नवाजिश हो जाए” और तातार का चोर 1955 का गीत “कफ़स में डाला मुझेअपने राज़दारों नें” जैसे गीत नहीं सुने होंगे।
 एक गीत जो अपने दौर में बहुत हिट हुआ लेकिन आजकल कम सुनाई देता है और वह है “अकेले में वो घबराते तो होंगे-मिटा के मुझको पछताते तो होंगे” फिल्म थी
1950में बनी “बीवी”, गीतकार थे वली साहब और  संगीतकार थे वे ही जिनका जिक्र उपर किया- शर्माजी-वर्माजी!
अकेले में वो घबराते तो होंगे
मिटा  के मुझको पछताते तो होंगे
हमारी याद आ जाती तो होगी
अचानक वो तड़प जाते तो होंगे
वो दिन हाय, वो दिन हाय रे वो दिन
वो दिन उन को भी याद आते तो होंगे
पतंगे अपने दोनों पर जला कर
हमारी याद दिलवाते तो होंगे

अकेले में 

दिल ही बुझा हुआ हो तो फ़स्ले बहार क्या: मुकेश की कम सुनी-अनसुनी गज़ल

हिन्दी फिल्मों के लिए शकील बूंदायूनी, हसरत जयपुरी, साहिल लुधियानवी, नक़्श ल्यालपुरी, निदा फ़ाज़ली, नीरज, कैफ़ी आज़मी, जावेद अख्तर, मख़दूम मोईनुद्दीन, गुलज़ार, शहरयार, फ़ैज़ अहमद ’फ़ैज़’ जैसे कई गीतकारों-शायरों ने गज़लें लिखी है तो मिर्ज़ा गालिब, मीर तकी ’मीर’ ( दिखाई दिए यूं कि बेखुद किया- बाज़ार), बहादुर शाह ‘ज़फ़र’, जैसे कई legendary शायरों की गज़लें भी अक्सर फिल्मों में आती रही है- रहती हैं।
 इन गज़लों को अनिल विस्वास, मदनमोहन, नौशाद, एस. एन. त्रिपाठी, रवि, रोशन और कई संगीतकारों ने संगीतबद्ध कर अमर कर दिया है, जो बहुत चर्चित हैं और अक्सर हम उन्हें सुनते रहते हैं।
 आज मैं जिस गज़ल को पोस्ट कर रहा हूँ वह उस फिल्म की है जिससे महान गायक मुकेश जीने बॉलिवुड में अभिनेता-गायक के रूप में अपनी शुरूआत की थी। यह फ़िल्म थी 1941 में बनी "निर्दोष"। गज़ल को लिखा है नीलकांत तिवारी नेऔर संगीतकार हैं अशोक घोष।

दिल ही बुझा हुआ है तो फ़सले बहार क्या
साक़ी हँसा, शराब हँसा, अब बजार क्या
दुनिया से ले चला है जब हसरतों का बोझ
काफ़ी नहीं है, सर पे गुनाहों का बोझ क्या
बाद-ए-पना क़ुज़ून है नाम-ओ-निशां किसी के
जब हम नहीं रहे तो रहेगा मज़ार क्या

दिल ही बुझा हुआ ..







Monday 19 August, 2019

उठ लखन लाल प्रिय भाई - राम की आकुलता पर आधारित सुन्दर गीत


प्रेम अदीब एवं शोभना समर्थ की जोड़ी ने 1938 में अपनी पहली फिल्म industrial India के बाद 1954 तक कई फिल्मों में एक साथ काम किया। पौराणिक एवं धार्मिक फिल्मों का दौर था सो ज्यादातर फिल्में इन्हीं विषयों पर आधारित होती थी। प्रेम अदीब एवं शोभना समर्थ की जोड़ी उस समय राम एवं सीता की जोड़ी के रूप में बहुत प्रसिद्ध हुई। दोनों ने साथ में तथा अलग-अलग भी कई फिल्मों में राम एवं सीता के पात्र अदा किए। 


प्रस्तुत गीत फिल्म मेघनाद एवं लक्ष्मण युद्ध के दौरान लक्ष्मण के मूर्छित होने एवं हनुमान जी द्वारा सुषेण वैद्य के कहने पर संजीवनी बूटी लाने के समय के दौरान हो रही  देर पर राम की आकुलता- विकलता आधारित है। इसमें राम अपने भाई लक्ष्मण को उठने को कह रहे हैं। यह गीत फिल्म रामबाण 1948 का है । इसके निर्देशक विजय भट्ट थे एवं राम सीताके पात्र जैसा उपर बताया प्रेम अदीब एवं शोभना समर्थ ने अदा किए 

ज्यादातर हम गायक की एवं संगीत की चर्चा करते हैं, गीत के हिट या चलने या ना चलने का पैमाना भी स्वर और संगीत ही मानते हैं; लेकिन पता नहीं क्यों गीतकार की मेहनत को उतना नहीं आंखा जाता, जबकि उनका योगदान किसी से भी कम नहीं होता। प्रसिद्ध गीत भी उसी तरह का माना जा सकता है। गीतकार मोती बीए  ने कितने सुन्दर शब्दों में राम की व्यथा का वर्णन किया है, आईये गीत सुनते हैं। 



स्वर-शंकर दास गुप्ता
संगीत-पं.शंकर राव व्यास
गीतकार- मोती बीए

उठ लखन लाल प्रिय भाई
दशा तुम्हारी देख राम की
अंखियां भर भर आयी
उठ लखन लाल प्रिय भाई

मात-पिता पत्नि की माया
भाई के कारण सब बिसराया
छोड़ आयोध्या का सुख तुमने
जोगी रूप बनाया
जिस भाई के लिए युद्ध में
प्राण की बाजी लगाई
उठ लखन लाल प्रिय भाई

पहले मुझे खिला कर खाते
और सुला कर सोते
अलग तुम्हारे कौन सभी तो
बाद राम के होते
स्वर्गपुरी के सुख (?)  से
पहले पहुंची जाई
उठ लखन लाल प्रिय भाई

मात कौशल्या और सुमित्रा
जोवत बाट तिहारी
पंथ हेरती हाय उर्मिला  
की अंखिया बेचारी
आँख मूँद के हुए तुम्ही क्या
तनिक दया ना आई
उठ लखन लाल प्रिय भाई

सीता रावण के घर बंदी
मेघनाठ चढ़ आयो
जगत कहेगा नारी के कारण राम ने बंधु गवाँयो
धीरज छूटो जात सभी का, कब से टेर लगाई
उठ लखन लाल प्रिय भाई

Tuesday 21 May, 2019

जाते हो तो जाओ हम भी यहां, वादों के सहारे जी लेंगे-सज्जाद हुसैन की कठिन रचना

हिन्दी फिल्मों में सबसे जटिल और perfectionist संगीतकार अगर कोई थे तो वे सज्ज़ाद हुसैन यानि सज्ज़ाद। मैंडोलिन, सितार, वीणा, बैंजो, एकॉर्डियन, गिटार, क्लेरिनेट के अलावा अन्य कई वाद्यंयंत्रों के सिद्धस्त सज्ज़ाद ऐसे संगीतकार थे जिनके गीतों को गाना हर किसी के बस में नहीं था, गाते या रियाज़ करते समय जरा सी चूक हुई नहीं कि सज्ज़ाद साहब का गुस्सा फूटा नहीं। लता जी को एक मौके पर डाँट देने वाले सज्ज़ाद उनकी गायकी से प्रभावित भी बहुत थे, वे सिर्फ लता जी और नूरजहां को अच्छी गायिका मानते थे। जटिल रचनाएं और गुस्सैल स्वभाव के कारण कई फिल्में हाथ से छूट गई- छोड़ दी; पर जिन फिल्मों में संगीत दिया लाजवाब दिया।

प्रस्तुत गीत ... मिश्र भैरवी में रचित सज्जाद हुसैन साहब की यह रचना अदभुद है। लता जी से शानदार तानें इस गीत में सज्ज़ाद साहब ने गवाई हैं जैसे पहले अंतरे की लाईनें रुसवा न करेंगे हम तुमको.... सीने से लगा लेंगे.... और दूसरे अंतरे की पहली लाईन सीने से लगा कर वादों को खामोश रहेंगे रातों को.....इन लाइनों में ".सीने से लगा लेंगे॓ऽऽऽऽऽ" और "खामोश रहेंगे रातों कोऽऽऽऽऽऽ ..." पर खास ध्यान दीजिए एकदम स्पष्ट होगा कि इन्हें गाना कितना मुश्किल है और सज्ज़ाद साहब ने लता जी से इसे गवा लिया था।

 फिल्म:  खेल
गायिका: लता मंगेशकर
गीतकार : सागर निज़ामी
संगीतकार :
कलाकार : देवानंद - निगार सुल्ताना



 जाते हो तो जाओ हम भी यहां,
वादों के सहारे जी लेंगे-२
खुद दे के किसी को दिल अपना,
कुछ खेल नहीं जीना लेकिन
घुट घुट के सही मर मर के सही-२
जैसे भी बनेगा जी लेंगे

रुसवा न करेंगे हम तुम को
सीने से लगा लेंगे ग़म को
उमड़े जो कभी दिल से आंसू
हम दिल ही दिल में पी लेंगे
जाते हो तो जाओ
वादों के सहारे जी लेंगे

सीने से लगा कर यादों को
खामोश रहेंगे रातों को
शिकवे जो ज़बान पर आये कभी
होठों से ज़बान को सी लेंगे
जाते हो तो जाओ
वादों के सहारे जी लेंगे.

Friday 17 May, 2019

रूम झूम बादोलो आजि बोरोशे: कमला झारिया

कई सालों पहले इस बांग्ला गीत का टुकड़ा मिला तब यह मुश्किल से तीस चालीस सैकंड का था, बरसों तक खोजने के बाद एक दिन आखिरकार यह  पूरा गाना मिल गया। तब से मैं इस गीत को अगड़म बगड़म गाते हुए सुन रहा था। कुछ दिनों पहले शुभ्रा जीजी (सम्प्रति : आकाशवाणी दिल्ली)
 से अनुरोध किया तो उन्होंने उस गीत के सही शब्द बता दिए,और उसके बाद गाने को सुनने का आंनद अब कई गुना बढ़ गया। बहुत बहुत धन्यवाद शुभ्रा जिज्जी
आहा-आहा, तन-मन झूम रहा है। 
नजरुल संगीत/गायिका: कमला झारिया

रूम झूम बादोलो आजि बोरोशे
आकुल शिखी नाचे घनो मेघो दोरोशे।
बारिरो दोर्शन आजि खोने खोने। 
नोवो नीरद श्याम मुख पोड़े मोने। 
ना जानि कोन देशे, कोन प्रिया शोने। 
रोयेछे भुलिया नोवो हर्षे।

রুম ঝুম বাদল আজি বরষে
আকুল নিশি নাচে ঘন দরশে ।।

বারির দরশনে আজি ক্ষণে ক্ষণে
নব নীরদ শ্যাম রূপে পড়ে মনে
না জানি কোন দেশে কোন প্রিয়া সনে
রয়েছে ভুলিকা নটবর সে ।।



भावार्थ: आज झूम झूम कर बादल बरस रहे हैं। घने बादलों को देख व्याकुल मोर नाच रहा है, आज क्षण क्षण पानी का दर्शन हो रहा है  नए बादलों को देख श्याम की याद आ रही है  जाने कौन से देश में, कौनसी प्रिया के साथ होंगे ।  यही सोच सोच के नया हर्ष भुलाकर रोने लगती हूं।






एक और वर्जन

 

Thursday 16 May, 2019

ले चल मोहे अपनी नागरिया: नलिनी जयवन्त/हुस्न बानो का दुर्लभ भजन

नलिनी जयवन्त को हमने ज्यादातर अभिनय करते ही देखा है, लेकिन उन्होने कई गीत भी गाए हैं। हिन्दी फिल्मों की शुरुआती फिल्मों की सबसे खूबसूरत और अच्छी अभिनेत्री नलिनी जयवन्त जी ने 12 वर्ष की उम्र में बतौर बाल कलाकार बहन 1941 फिल्म में अभिनय किया था और इस फिल्म में गाने भी गाए हैं। इन्हीं नलिनी जयवन्त का नाम आगे चल कर बड़ी अभिनेत्रियों में शुमार किया जाने लगा।

बहन फिल्म का निर्देशन महान निर्माता- निर्देशक महबूब खान ने किया था एवं इस फिल्म में शेख मुख्तार, प्रख्यात गायिका-अभिनेत्री , कन्हैयालाल, एवं नलिनी जयवन्त ने अभिनय किया था।

 प्रस्तुत है इस फिल्म का एक अदभुत एवं दुर्लभ भजन/गीत। इसे लिखा है सफ़दर आह "सीतापुरी" नें एवं संगीत दिया है अनिल विश्वास ने।

प्रस्तुत गीत को नलिनी जयवन्त एवं हुस्न बानों ने गाया है और वीडियो में दोनों ही दिखाई भी दे रही है। हुस्न बानो की चर्चा फिर कभी! DailyMotion
  YouTube

 ले चल अपनी नागरिया
मुझे ले चल अपनी नागरिया
गोकुल वाले साँवरिया
मुझे ले चल अपनी नागरिया

तेरे नशे में चूर रहूं
इस संसार से दूर रहूं
ये है पाप की बाजरिया
गोकुल वाले साँवरिया

शुभ दरशन दरसाता जा
राह मुझे दिखाता जा
छाई काली बादरिया
गोकुल वाले साँवरिया

 बहन 1941 Sister हुस्न बानो एवं नलिनी जयवन्त संगीतकार गीतकार : सफ़दर आह Sheikh Mukhtar , Nalini Jaywant , Harish , Kanhaiyalal , Husn Banu and Swaroop Rani. Director: Mehboob Khan.

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