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किशोर कुमार भी क्या कलाकार थे, कुछ भी अगड़म बगड़म गा दें, मजेदार गीत बन जाता था! देखिये इस गीत में कैसे किशोरदा, देवानद को चिढ़ाते हुए कह रहे हैं "खाली पीली काहे को अक्खा दिन बैठ के बोम मारता है"
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7 टिप्पणियाँ/Coments:
शरारत से भरपूर गीत।
{ Treasurer-S, T }
आप भी ना मालूम कहां से मोती चुन कर लाते हैं.
अक्सर इस तरह के गीत सुने नहीं जाते और इस लिये इन्हे सुनकर जीने का मज़ा दुगना हो जाता है.
मुस्करा रहा हूं मैं...ऐसे ही गुदगुदाते रहो भाई...लाख बरस जियो....
फिल्म 'तमाशा' का गाना है जिसके एक निर्माता और कलाकार स्व. श्री अशोक कूमार भी थे । हरमंदिर सिंह हमराझ के फिल्मी गीत कोष के अनुसार इस फिल्म के तीन संगीत कार स्व. श्री खेम चंद प्रकाश, मन्ना डे और एस. के पाल में से यह गाना मन्ना दे साहबने स्वरवद्ध किया है । पर मूझे यह स्व. खेम चन्द प्रकाश का संगीत होनेकी सम्भवना ज्यादा लगती है ।
पियुष महेता ।
सुरत
किशोर दा का जवाब नही
अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी"में पिरो दिया है।
आप का स्वागत है...
सदाबहार कलाकार थे किशोर दा.....
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