रूठ के तुम तो चल दिये: राग हेमन्त में एक खूबसूरत गीत
आईये आज आपको एक बहुत ही खूबसूरत गीत सुनवाते हैं, इस गीत को अनिलदा ने राग हेमन्त में ढ़ाला है, ताल है दादरा। लताजी जब इस गीत के पहले और दूसरे पैरा की पहली पंक्तिया गाती है तब वे लाईनें मन को छू सी जाती है।
आप ध्यान दीजिये इन दो लाईनों पर... हाल ना पूछ चारागर और रो दिया आसमान भी ... को। कमर ज़लालाबादी के सुन्दर गीत और अनिल दा के संगीत निर्देशन के साथ लता जी ने किस खूबसूरती से न्याय किया है; गीत 1955 में बनी फिल्म जलती निशानी का है।Download Link
रूठ के तुम तो चल दिए, अब मैं दुआ तो क्या करूँ
जिसने हमें जुदा किया, ऐसे ख़ुदा को क्या करूँ
जीने की आरज़ू नहीं, हाल न पूछ चारागर
दर्द ही बन गया दवा, अब मैं दवा तो क्या करूँ
सुनके मेरी सदा-ए-ग़म, रो दिया आसमान भी-२
तुम तक न जो पहुँच सके, ऐसी सदा को क्या करूँ
rooth ke tum to ch... |
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बहुत मधुर..
यह गीत की सुंदरता इसके मधुर सुरों में और भावपूर्ण बोलों में है!!
धन्यवाद.
सागरभाई,
इस गीत न जाने क्यों मैं अनिल दा का हस्ताक्षर गीत मानता हूँ ,जबकि उनके अन्य कई गीत हैं जो मानस पर छाए रहते हैं.अनिल दा से व्यक्तिगत मुलाक़ात का सौभाग्य मिला था . जैसी सरलता व्यक्तित्व में वैसा ही उनका संगीत.न जाने ज़माने ने उनके साथ न्याय क्यों नहीं किया. जब मैंने उनसे कहा कि दादा आज शाम के कार्यक्रम में मैं आपके नाम के आगे भारतीय चित्रपट संगीत का भीष्म-पितामह ऐसा विशेषण जोड़ने वाला हूँ तो झट से बोले एक चाँटा मारूंगा तुझे(दर असल ये उनका प्यार जताने का तकियाक़लाम था) शिरड़ी के साई बाबा में उन्हें और मीनाजी (कपूर) को अगाध आस्था थी.उन्हें समग्र संगीत की जो जानकारी थी वह अब उस बलन के लोग मुश्किल से मिलते हैं.आपने बड़ा अच्छा किया ये गीत सुनवा कर.
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