संगीतकार रोशन साहब का एक ही धुन का दो फिल्मों में सुंदर प्रयोग !!!
दोस्तों, पिछले कई दिनों से रोशन साहब के संगीत को सुनते सुनते मन में आया कि उनके दो गीत सुनवाये जायें |
पहला गीत फ़िल्म "बरसात की रात" का है जो १९६० में आयी थी | इसी फ़िल्म में रोशन साहब ने एक के बाद एक तीन शानदार कव्वालियां ("जी चाहता है चूम लूँ अपनी नजर को मैं", "निगाह-ऐ-नाज़ के मारों का हाल क्या होगा" और "ये इश्क इश्क है" ) प्रस्तुत की थीं | इस फ़िल्म में राग मल्हार में एक सुंदर सा गीत "गरजत बरसात सावन आयो, लायो न संग में अपने बिछडे बलमवा" है | इस गीत को सुमन कल्यानपुर ने गाया था |
गरजत बरसत सावन आयो रे,
लायो न संग में अपने बिछडे बलमवा, सखी क्या करूं हाय |
रिम झिम रिम झिम मेहा बरसे, तडपे जियरवा मीन समान,
पड़ गयी फीकी लाल चुनरिया, पिया नहीं आये...
गरजत बरसत आयो रे...
पल पल छिन छिन पवन खाकोरे, लागे तन पर तीर समान,
नैनं जल सो गीली चदरिया, अगन लगाये,
गरजत बरसत सावन आयो रे...
नीचे दिये लिंक पर चटका लगाकर इस गीत को सुने |
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लेकिन कमाल की बात है कि रोशन साहब ने इसी धुन पर लगभग यही गीत १९५१ की फ़िल्म "मल्हार" में पहले ही प्रस्तुत कर दिया था | इस गीत को स्वर साम्रागी लता मंगेशकरजी ने अपनी आवाज से सजाया था |
गरजत बरसत भीजत आई लो,
तुम्हरे मिलन को अपने प्रेम पिहरवा, लो गरवा लगाय |
गरजत बरसत भीजत आयी लो...
नीचे दिये लिंक पर चटका लगाकर इस गीत का आनंद लीजिये |
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